चर्चा में

उल्लू नहीं है पब्लिक जो तुम उल्लू बनाते हो, बोल-बोल कर अपना खिल्ली उड़ाते हो।

मेरी कलम से…
आनन्द कुमार

तेरे मन की बात करें तो हम अच्छे हैं,
अपने मन की बात करें तो कच्चे हैं।
वाह गजब की बात हो करते नेताजी,
तुम क्या समझते हो कि हम बच्चे हैं।
जहर उगलते तुम तो, सब सच्चा है,
तेरी ही हम बातें कह दें, तो क्यों गच्चा है।
शब्दों का तुम हर क्षण आग लगाते हो,
भूल कर फिर अपनी बातों पर दाग लगाते हो।
खुद गलती कर खुद ही नहीं समझते हो,
फिर बिन मतलब के हम सबको क्यूं समझाते हो।
उल्लू नहीं है पब्लिक जो तुम उल्लू बनाते हो,
बोल-बोल कर अपना खिल्ली उड़ाते हो।
वक्त बहुत कम है, समझ जाओ तुम नेताजी,
वर्ना तुम खुद ही तुम लुटिया अपनी डुबाते हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *