लाख जतन कर लो तुम अपना, “रतन” कभी मरता नहीं
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
रख देंगे हथियार तो, अपनी जिंदादिली किससे कहोगे,
पत्रकार कभी मरता नहीं, यह बात तुम कब समझोगे।
अरे सरकार हो या सरकारी तंत्र, सब में समाए हैं हम,
तुम अपनी बुजदिली के मातम से, आखिर कब तक छलोगे।
लाख जतन कर लो तुम अपना, “रतन” कभी मरता नहीं,
कानपुर वाली पुलिसिया अंदाज, क्या बलिया में भी चलोगे।
चलो मानते हैं हम, मेरी वर्दी खाकी या खादी है नहीं,
क्या सच में तुम कोई, न्याय का अचूक मंजर अब चलोगे।
सांत्वना मुझे देना नहीं, अगर हौसला तेरा कमजोर हो,
हैं जो जिन्दा “रतन”, उनकी कीमत तुम कब समझोगे।
कीमत तुम कब समझोगे