उत्तर प्रदेश

अफसरों को देखना होगा फैसला रांग है या राइट! बदले-बदले से हैं योगी!

० डीजीपी मुकुल गोयल के प्रति कार्यवाही को हल्के में न लें अफसर,

डीजीपी मुकेश गोयल पर तलवार चलने के बाद यह कहावत मुख्यमंत्री योगी पर बिल्कुल फिट बैठ रही है कि योगी दरबार में अब देर है अंधेर नहीं!

@ आनन्द कुमार…

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी पर अब यह कहावत, डीजीपी मुकुल गोयल पर तलवार चलने के बाद बिल्कुल फिट बैठ रही है कि योगी दरबार में अब देर है अंधेर नहीं आदित्यनाथ ने पुलिस महानिदेशक मुकुल गोयल को शासकीय कार्यों की अवहेलना करने, विभागीय कार्यों में रुचि न लेने एवं अकर्मण्यता के चलते डीजीपी पद से मुक्त करते हुए डीजी नागरिक सुरक्षा के पद पर भेजा है। इतना बड़ा फैसला कई छोटी बड़ी लापरवाही के कारण लिया गया है। ऐसे में पिछला 2017 के सरकार का कार्यकाल अफसरशाही चला रहे हैं, जो चर्चा का दौर था 2022 बदला-बदला सा नजर आ रहा है। यह कार्यवाही छोटी मोटी व बड़ी गलतियों को नजर अंदाज करने का नतीजा है, ऐसा सोचने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
सरकार की कार्यशैली बदल रही है लेकिन सरकारी लोग उसी रास्ते उसी पुरानी व्यवस्था में अपने आपको अभी तक ढाले हुए हैं। चौकी इंचार्ज, कोतवाल से लेकर लेखपाल व तहसीलदार तक अपने में परिवर्तन नहीं ला पा रहे। इनके अफसर भी आंख मूंदे इक्का-दुक्का कार्रवाई कर शासन को बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी के असल रूप में आ रहे हैं। वे जिस पद व गोपनीयता की शपथ लिए हैं उस पर पूरी ईमानदारी से कार्य करने की चेष्टा कर रहे हैं। ऐसे में सूबे के डीजीपी मुकेश गोयल के प्रति मुख्यमंत्री योगी की इतनी बड़ी कार्रवाई को हल्के में लेना, प्रशासनिक अफसरों की सबसे बड़ी चूक व भूल होगी।


मुख्यमंत्री के इस फैसले पर अफसर सकते में तो हैं लेकिन वह यह सोच रहे हों कि मुख्यमंत्री फिर शान्त हो जाएंगे या भूल जाएंगे तो यह उनकी भूल होगी। हमें लगता है मुख्यमंत्री पूरी तरीके से बदल चुके हैं, यह वर्ष 2017-2022 वाले मुख्यमंत्री नहीं हैं। उन्होंने 2022 से ही अपने आपको काफी अंदर ही अंदर बदल लिया है ऐसा लगता है। यह सिर्फ उनके कार्यशैली से प्रतित होता दिख रहा है।
जिस प्रदेश की सबसे अधिक जिम्मेदारी आइएएस व आईपीएस अफसरों की होती है उन्हें अपनी जिम्मेदारी अब निभानी होगी। उन्हें अपने मातहतों पर केवल छोटी मोटी कार्यवाही कर अपनी नौकरी नहीं बचानी होगी, उन्हें देखना होगा कि उनका अफसर जो फैसला दे रहा है वह रांग है या राइट। हर एक फैसले, जनता की समस्याओं, पर उन्हें पैनी नजर रखनी होगी। मुख्यमंत्री पहले ही घोषणा कर चुके हैं वह जिले-जिले जाएंगे, अगर जनपदों के दौरे पर कहीं मुख्यमंत्री की भेंट वास्तविक पीड़ित से हो गई तो सोचिए परिणाम क्या होगा? और अब तो लखनऊ में होने वाले जनता दरबार का स्वरूप भी बदला बदला सा है। वहां रोते और बिलखते लोग काफी उम्मीदें लेकर लौटने लगे हैं। लेकिन अभी सब कुछ सही नहीं हो रहा है। ये अधिकारी व कर्मचारी जनता के प्रति सरकार को बरगलाने से बाज नहीं आ रहे हैं। लेकिन एक कहावत है न भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। अब यह कहावत डीजीपी मुकेश गोयल पर तलवार चलने के बाद बिल्कुल फिट बैठ रही है कि योगी दरबार में अब देर है अंधेर नहीं।
तो बदलना होगा नायक फिल्म के मुख्यमंत्री अनिल कपूर की तरह मुख्यमंत्री योगी को, जी बिल्कुल नहीं। बदलना होगा उत्तर प्रदेश के शासन के इर्द गिर्द बैठे बड़े अफ़सरों से लेकर जिले में तैनात डीएम से लेकर चपरासी तक, एसपी से लेकर सिपाही तक। क्योंकि योगी आदित्यनाथ एक दिन के मुख्यमंत्री नहीं हैं। वे पूरे 1825 दिन मुख्यमंत्री बने हैं, जिसमें से अभी कुछ दिन ही बीता है। और वे अपने आपको फिल्मी किरदार या पटकथा के सहारे लेकर नहीं चल रहे बल्कि वे अपने कार्यों से अपनी पटकथा खुद लिख रहे और किरदार को बखूबी निभा रहे।

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