रचनाकार

लद्युकथा : मैं विरोध करती हूँ

@शब्द मसीहा केदारनाथ…

मैं विरोध करती हूँ

“हे राम! ये क्या हुआ ?” पत्नी अखबार पढ़ते ही ज़ोर से बोली ।

“अरे क्या हुआ ऐसा जो उछल रही हो , रोज ही तो अखबार पढ़ती हो तुम ।” पूजा करता हुआ पति बोला।

“देश की सेना का बलात्कार हो गया ।”पत्नी ने कहा ।

“क्या बकवास कर रही हो तुम, कोई देश की सेना का बलात्कार कैसे कर सकता है ? और ऐसा हुआ होता तो नेताओं के ब्यान आ जाते टी वी पर । ये गलती से छाप दिया होगा किसी पागल ने ।”

“विपक्ष का ब्यान आया है । सत्ता की तरफ से सेना के भूतपूर्व जनरल जो केंद्रीय मंत्री रहे , सेना के कैप्टन की मंगेतर के थाने में बलात्कार पर सिर्फ एक ट्वीट कर खानापूर्ति कर देते हैं । लिखा कि हर किसी को पीड़िता की आवाज़ सुननी चाहिए । कोलकाता में ज़िंदा लोगों ने लोकतान्त्रिक विरोध किया , क्या उड़ीसा में सब मर गए ? और ये हर किसी को कहने का मतलब क्या है ? शर्म पुलिस को आणि चाहिए तो वहाँ की सरकार को क्यों नहीं?”

“मैं चालीसा पाठ कर रहा हूँ , जरा चुप रहो।” पति ने ज़ोर से कहा।

“सब चालीसा पाठ ही कर रहे हैं, उड़ीसा हो या मध्य प्रदेश या बिहार में दलितों की बस्तियों की आग । ये अखबार और केवल कटवा दो , आज से मैं विरोध में खड़ी हूँ, ब्रेन वाश के ये टूल्स सत्ता की चाबी होकर अगर बेटियों पर जुल्म करें तो मर्द चाहें पूंछ दबा लें , मैं विरोध करती हूँ ।”

घंटी की लय ताल अब बेताला हो गई थी ।

 

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चरित्र का रेप

“अरे तुम्हें कुछ पता है ।” वह आंखे चौड़ी करते हुए बोली ।
“किस बारे में ?”
“अरे वो जो थर्ड कवालिटी का फ़ोर्थ क्लास आदमी है न , जो कोटे से आया है , कलुआ सा।” वह बोली।
“ओह , तुम राज रत्न की बात कर रही हो , वह तो बहुत नेक आदमी है।”
“माय फुट …नेक नहीं घाघ है । उस सफाई वाली को प्रेग्नेंट कर दिया है और उसके लिए खाना भी लाता है , मनुहार कर के खिलाता है अपने हाथ से ।” वह बोली ।
“तुम जानती भी हो उसके बारे में कुछ ? हर आदमी उसकी तारीफ़ करते नहीं थकता और तुम इल्ज़ाम लगा रही हो उसके चरित्र पर । लगता है तुम्हें घास नहीं डाली उस खुद्दार ने, तो उसके चरित्र का ही रेप कर रही हो । मालूम है मुझे सब …कभी औरत को औरत के नजरिए से देखो …. वो उसे बहन कहता है।” कहते हुए उसने घृणा से आँखें बंद कर लीं।

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मेरी पेंशन
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पिता रिटायर होकर पुराने ट्यूब वाले रेडियो से टर्राते रहते थे । बस उस दिन अच्छे लगते जिस दिन वे अपनी पेंशन घर लाते और कुछ खाने का सामान भी । अब पिता को लगता कि कभी भी वे दुनिया से चले जाएंगे , सो एक दिन बेटे को बुलाया और बोले-

“बेटा मैं गया जाना चाहता हूँ ।”

गया का नाम सुनते ही बेटा बोला -” क्या करोगे वहाँ जाकर? घर में बैठो आराम करो , मैं ये श्राद्ध बगाइरा नहीं मानता हूँ ।”

“इसलिलिए तो जाना चाहता हूँ । मैं अपने माँ-बाप और पितरों के निमित्त ये काम करना चाहता हूँ और सोचता हूँ कि तुम्हारी माँ और अपना भी श्राद्ध ख़ुद ही कर आऊँ…. तुम तो कुछ मानते ही नहीं हो ।”

“पर मैं साथ न जा सकूँगा ।” बेटा तुरंत बोला।

“कोई बात नहीं , मेरी पेंशन तो मेरे साथ है।”

 

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मोहब्बत
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वे दोनों बहुत समय बाद मिले तो एक-दूसरे को देख बहुत ख़ुश हुए । बातों का सिलसिला शुरू हुआ ।

“यार, एक बात बताओ कि वो तुम्हारा लंगोटिया यार आजकल क्या कर रहा है ?”

“भाई , किसकी बात कर रहे हो ?”

“अरे वही, जिसकी मदद करने के लिए तुमने अपनी गाड़ी बेचकर स्कूटर खरीदी थी और भाभी से झगड़ा हुआ था ।”

“हा हा हा …. अब मैं उसके दुश्मनों की लिस्ट में हूँ । महंगी होती है दुश्मनी , ठीक डब्ल्यू की तरह ….बहुत से सवाल उठते हैं ….तब जाकर दुश्मनी मिलती है।”

“हम्म …. वैसे एक बात कहूँ । ये डब्ल्यू वाली अङ्ग्रेज़ी छोड़ो जमा घटा की जो सवाल पैदा करती है और इसे उल्टा कर के मजे लो एम के ।”

“एम के मजे ?”

“हाँ, सारे सवाल गिराकर ही मोहब्बत हो सकती है न ….हा हा हा ।”

 

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तरक्की
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“अरे भाई साहब, क्या बात है ….हमें बताया ही नहीं ।” वह विनोद करते हुए बोले।

“अरे भैया , क्या नहीं बताया हमने ?” वह भी बोले।

“अरे तुम्हारा पप्पू कल कार लिए घूम रहा था । तुमने कब कार ली हमें बताया ही नहीं ।” वह बोले ।

“हा हा हा ….कार , कार किस्तों पे ली है और मजदूरों का ठेकेदार बन गया है।”

“वाह …ठेकेदार बन गया है । ये तो तरक्की की निशानी है।”

“मैं खून चूसने और दलाली को तरक्की नहीं मानता ।” और वे चुपचाप तमतमाए से आगे बढ़ गए ।

 

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