खास-मेहमान

सर्वेश सिंह सहर ने लिखी ख़्वाबों का दरीचा बुक

मऊ। उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद के अति पिछड़े इलाक़े रतनपुरा ब्लॉक के भुड़सुरी गाँव में जन्मे सर्वेश सिंह ‘सहर’ की कविताओं का संग्रह ख़्वाबों का दरीचा किताब एमेजॉन पर उपलब्ध है, पहले सप्ताह में उनकी यह बुक बेस्ट सेलर हुई है और आउट ऑफ स्टॉक भी हो गई, फिर से रीप्रिंट होकर एमेजॉन पर उपलब्ध है। उन्होंने यह किताब अपने दादाजी स्व. बृजकिशोर सिंह एवं दादी स्व. मुनेश्वरी देवी को समर्पित किया है।
बचपन से ही कविताएँ, ग़ज़लें और कहानियाँ पढ़ने का शौक़ रखने वाले सर्वेश सिंह ‘सहर’ ने इंटरमीडिएट की पढ़ाई के समय से कविताएँ और ग़ज़लें लिखनी भी शुरू कर दी थीं।
सर्वेश सिंह ‘सहर’ के घर वालों को इनका लिखना पसंद नहीं था, इसलिए कभी खुलकर लेखनी नहीं कर पाए। लेकिन जब भी मौक़ा मिलता, तो अपने कुछ ख़ास दोस्तों के साथ बैठकी में अपनी रचनाएँ सुनाते और फिर जब उन्हें सराहना मिलती तो एक अद्भुत आनंद से भरकर दोगुनी ऊर्जा से रचना करने लगते। अपने दोस्तों के सहयोग से ही सर्वेश अपनी रचनाओं को पत्र-पत्रिकाओं में छपने के लिए भेजने लगे और फिर उनकी रचनाएँ पत्र-पत्रिकाओं में छपने लगीं। यही वजह है कि इन्होंने अपनी अधिकांश रचनाएँ अपने अज़ीज़ दोस्तों के लिए ही की हैं।
दो विषयों में पोस्ट ग्रेजुएशन और फिर बीएड की डिग्री हासिल करने वाले सर्वेश सिंह ‘सहर’ वर्तमान में अपने भुड़सुरी गाँव के ही एक उच्च प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक के पद पर कार्यरत हैं।

उनके रचनाओं के बीस वर्षों से फ़ैन “राजीव सिंह”, सर्वेश सिंह ‘सहर’ की बुक ख़्वाबों का दरीचा पढ़ते हुए

उनके मित्र व स्क्रिप्ट राइटर वसीम अकरम सर्वेश सहर के बारे में लिखते हैं…

कोई रचना वैसे तो दिल की नाज़ुक रगों से ध्वनित होकर रचने वाले के ज़ेहन तक पहुँचती है, और रचनाकार तभी उसे काग़ज़ पर उतार पाता है। लेकिन दिल की नाज़ुक रगें तभी मचलती हैं जब उन्हें किसी मन-कामिनी का ख़याल छू जाए। ‘ख़्वाबों का दरीचा’ में दर्ज सर्वेश सिंह ‘सहर’ की रचनाओं को पढ़ते हुए यह एहसास पुख़्ता हो जाता है कि इनके दिल के तारों को किस क़दर झंकृत किया गया है। दरअसल, कविताएँ लिखना तो सर्वेश के लिए बहाना है, यह तो उनकी मुहब्बत है जिसे उन्होंने अपनी रचना का नाम दिया है। छोटे-छोटे लफ़्ज़ों में इश्क़ की बड़ी-बड़ी बातें लिखने वाले सर्वेश की रचनाएँ अपने वजूद में मुकम्मल हैं। यही वजह है कि ‘ख़्वाबों का दरीचा’ उनकी पहली किताब होकर भी कविताओं, गीतों और ग़ज़लों की एक मुकम्मल किताब है और सर्वेश सिंह ‘सहर’ एक मुकम्मल रचनाकार हैं। आइए ‘ख़्वाबों का दरीचा’ में उनकी एक कविता को पढ़ते हैं।

हाँ मैं मेरी बेटी से, माँ की तरह प्यार करता हूँ…

भीड़ में दुनिया की मैं,खुद को तन्हा पाता हूँ
समझ न आने वाली,
उलझने सुलझता हूँ
थका हारा हुआ पहुँचता हूँ,जब घर वापस
नन्ही बाँहों में उसकी,जाकर सिमट जाता हूँ
दूर हूँ उससे तो, एहसास हो रहा है मुझे
बग़ैर उसके मैं तो, जीता हूँ न मरता हूँ
हाँ मैं मेरी बेटी से, माँ की तरह प्यार करता हूँ।
हाँ मैं मेरी बेटी से ,माँ की तरह…..
वो पांच मिनट का निवाला,मुझे पचास मिनट में खिलाना
वो अपने दिनभर की बातें, मुझे देर रात तक सुनाना
उसके सर से जो कभी,हाथ मेरा हट जाए
तो नींद में भी रोते-रोते,पापा-पापा चिल्लाना
बड़ी होकर वो मुझसे दूर चली जायेगी
बस यही सोचकर दिनरात आह भरता हूँ
हाँ मैं मेरी बेटी से, माँ की तरह प्यार करता हूँ।
हाँ मैं मेरी बेटी से, माँ की तरह….


One thought on “सर्वेश सिंह सहर ने लिखी ख़्वाबों का दरीचा बुक

  • Kedar Nath

    सर्वेश जी को बहुत-बहुत बधाई …शुभकामनाएँ

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