हिंसा के जरिए पाई गई उपलब्धि हिंसक ही होगी : महात्मा गांधी
रामाश्रय यादव…
मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर,1869 को भारत के पश्चिमी तट पर एक तटीय शहर पोरबंदर में हुआ था।पोरबंदर उस समय बंबई प्रेसीडेंसी,ब्रिटिश भारत के तहत एक छोटी सी रियासत काठियावाड़ में कई छोटे राज्यों में से एक था।
उनका जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था।गांधी जी की मां पुतलीबाई एक साध्वी चरित्र,कोमल और भक्त महिला थी और उनके मन पर एक गहरी छाप छोड़ी थी।वो सात वर्ष के थे जब उनका परिवार राजकोट (जो काठियावाड़ में एक अन्य राज्य था) चला गया जहॉं उनके पिता करमचंद गांधी दीवान बने।उनकी प्राथमिक शिक्षा राजकोट में हुई और बाद में उनका दाखिला हाई स्कूल में हुआ।हाई स्कूल से मैट्रिक की शिक्षा प्राप्त करने के बाद गांधी जी नें समलदास कॉलेज,भावनगर में दाखिला लिया। इसी बीच 1885 में उनके पिता की मृत्यु हो गयी।जब गांधी जी इंग्लैंड जाने हेतु नाव लेने के लिए मुंबई गए, तब उनकी अपनी जाति के लोगों नें जो समुद्र पार करने को संदूषण के रूप देखते थे,उनके विदेश जाने पर अडिग रहने पर उन्हें समाज से बहिष्कृत करने की धमकी दी।लेकिन गांधीजी अड़े हुए थे और इस तरह औपचारिक रूप से उन्हें अपनी जाति से बहिष्कृत कर दिया गया।बिना विचलित हुए अठारह साल की उम्र में 4 सितम्बर,1888 को वो साउथेम्प्टन के लिए रवाना हुए।
गांधी जी एक नेक साधारण इंसान के साथ सत्यवादी समाज-सुधारक,पाखंड, अंधविश्वास से दूर रहने वाले प्रतिभावान व्यक्तित्व के धनी थे,बालविवाह,सती प्रथा के विरोध और कुष्ठ रोगियों की सेवा इस कथन के साथ के साथ कि कुष्ठ रोगी से नहीं कुष्ठ रोग से घृणा करें।
हिंसा के जरिए पाई गई उपलब्धि हिंसक ही होगी।भारत एक बार फिर जातीय अहंकार में डूबा हुआ नजर आ रहा है।अहिसा से महात्मा गांधी ने कभी समझौता नहीं किया। महात्मा गांधी पूर्णतया भारतीय थे, जबकि पंडित जवाहरलाल नेहरू पर पश्चिमी सभ्यता की छाप थी।
महात्मा गांधी के दक्षिण अफ्रीका के संघर्षों तथा सामाजिक उत्थान के लिए अंग्रेजों के साथ-साथ अपने लोगों की संघर्ष एवं गांधी अंग्रेजों के विरुद्ध ही नहीं बल्कि अपनों के कुंठित विचारों के साथ हुआ था। वे दोनों मोर्चे पर एक साथ संघर्ष कर रहे थे। वे समाज के दलित वर्ग को मंदिर में प्रवेश कराने के पक्षधर थे जबकि उस समय का उच्च समाज इसका घोर विरोधी था। वर्ष 1930 से 40 के बीच लगभग 7 बार उनपर जानलेवा हमले हो चुके थे। जब गांधी बिहार के देवघर आए थे तब वहां के पंडों ने भी उन पर हमला किया था। परिणामस्वरूप इस घटना से दुखी पंडित नेहरू कभी देवघर नहीं गए। हत्या से पहले गोडसे ने एक बार छुरा लेकर उनके आश्रम में प्रवेश किया था, तब वहां वह पकड़ा गया था।
गांधी और कार्ल मार्क्स ने राज्य नहीं व्यक्ति को भी महत्वपूर्ण माना है।गांधी का ट्रेन से तीसरे क्लास के डिब्बे में सफर करना उस जिंदगी को बदलने का दावा था जो उस समय इस यात्रा में लोगों को झेलना पड़ता था।अहिंसा गांधी के उस समय की नीति नहीं बल्कि रणनीति थी।
वर्ष 1942 में गांधी ही सबकी अपेक्षाओं के केंद्र में थे।उन्हें बार-बार अपने ही लोगों को स्पष्टीकरण देने की स्थितियां पैदा हो रहीं थीं।इस दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग मुस्लिम लीग, कम्युनिस्ट,ब्रिटिश सरकार और अमेरिकी अखबार यहां तक अपने लोगों का सामना गांधी को करना पड़ता है।गांधी के विचारों से लोग काफी क्षुब्ध थे क्योंकि वे हिंसा के रास्ते को अपनाकर आजादी नहीं चाहते थे।गांधी कहना था कि कांग्रेस किसी जाति मजहब और व्यक्ति विशेष की नहीं है।वह सभी धर्मो और मजहब को लेकर चलने वाली पार्टी है।गांधी के ऐसे विचारों को मानने वाले और नहीं मानने वालों की संख्या अधिक थी।गांधी ने ब्रिटिश सरकार को कहा कि आप हमें मेरी हालात पर छोड़ दे।आप भारत से चले जाएं।गांधी सबके प्रिय थे उन्होंने कोई भी काम चोरी-छीपे नहीं किया।दक्षिण अफ्रीका से लेकर भारत और बिहार के चंपारण यात्रा आदि कई यात्राओं को करने का उद्देश्य उन्होंने सार्वजनिक तौर पर व्यक्त करते थे।जयप्रकाश नारायण,राम मनोहर लोहिया आदि कई ऐसे नेताओं के प्रिय होने के बावजूद गांधी अपने सिद्धांत पर चलने वाले थे।
द्वितीय विश्व युद्ध में अहिंसा के पुजारी का अंग्रेजों के लिए बड़ा सवाल था कि वर्ष 1942 में तत्काल भारत छोड़कर चला जाए तो जापान या धुरी राष्ट्रों के साथ अवश्य संभावी युद्ध के प्रति भारत का रवैया क्या हो सकता था।ब्रिटिश और अमेरिकी अखबारों ने इस बारे में गांधी के अहिंसावादी सिद्धांत और कांग्रेस के विरोधाभासी रवैये पर लगातार कटाक्ष करने शुरू कर दिए थे।गांधी ने अपने ऊपर लगाए गए आरोप पर आत्मविश्वास के साथ भाषा के परिचय देते हुए जबाव दिए थे।दो अगस्त 1942 को गांधी लिखते हैं कि कांग्रेस अहिंसा को धर्म के रूप में नहीं मानती।जहां तक मेरा सवाल है तो मैं यदि सिर्फ अकेला रह जाऊं तो भी मेरा मार्ग तो स्पष्ट है।गांधी कहते हैं कि यह मेरी अहिंसा का परीक्षा का समय है।मुझे आशा है कि मैं इस अग्नि परीक्षा से अछूता बाहर आ सकूंगा। मेरे काम तो करना या मरना है। गांधी ने करो या मरो का नारा दिया जिसके बाद अंग्रेज इसे हिंसा से जोड़कर देखने लगे लेकिन गांधी ने अपने विचारों से अंग्रेजों की सोच बदली।
गांधी के लिए सभी बराबर थे।उनके लिए उच्च-नीच जात-पात,धर्म-मजहब सभी एक समान थे।जब देश कई कुर्बानी देने के बाद आजाद हुआ तो भारत-पाकिस्तान दो राष्ट्र बनाए जाने को कारण परेशान थे।गांधी कभी नहीं चाहते कि देश का बंटवारा हो सके।उन्होंने इसे रोकने के लिए अंतिम बार उपवास रखा।गांधी को उपवास पर बैठने के बाद आरोप लगता है कि मुस्लिम समुदाय के लिए उपवास कर रहे है।उपवास पर जाने के बाद ¨हिंदू और अन्य धर्मो की विचारधारा काफी अलग हो जाती है।लेकिन इनके उपवास का कोई असर नहीं होता।
वर्तमान परिस्थिति पर आज अगर गांधी होते तो उन्हें भी अपने ही लोगों और सरकार के विरुद्ध उपवास करना पड़ता।
(लेखक:- राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद जनपद मऊ के जिलाध्यक्ष हैं)