कोरोना, लॉकडाउन…मऊ को तगड़ी चोट
अखबार का कोना : जनसंदेश टाइम्स
(मुहम्मद अशरफ)
■ मौन हुई लूम की खटर- पटर की आवाज, दर्द समेट कर रहने पर मजबूर हुए बुनकर
मऊ। हम बुनकर है हुजूर, यादों की चादर बुनते हैं, समय के धागों से, लेकिन आज समय ऐसा हो गया कि कोरोना हमें बुनने ही नहीं दे रहा है और हमारे सपनो पर पानी फेर कर रख दिया है। साड़ी तैयार न होने से बुनकर खून के आंसू रो रहे हैं। कुछ ऐसा ही दर्द मऊ के सभी बुनकरों का है।
कोरोना ने लोगों की जिंदगी को घरों में सिमटने पर मजबूर कर दिया है। लोग चाहकर भी बाहर की हवा नहीं ले पा रहे हैं। पूर्वांचल की साड़ी उद्योग इसलिए समृद्ध भी है कि मऊ में बुनकरों का इतिहास काफी पुराना है। एक वो भी वक्त था यह जनपद यूपी का मैनचेस्टर कहा जाता था। पहले इस शहर के हर घर मे सुनायी पड़ती थी लूम की आवाज। लॉकडाउन की अवधि बढ़ने से आज बुनकरों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। जो जिंदगी लूम के खटर- पटर से शुरू होती थी आज इस रफ्तार पर कातिल कोरोना ने लगाम लगा दिया है। इन्हीं हकीकत को जानने के लिए जब हम बुनकर बाहुल्य क्षेत्र की गलियों में पहुँचे तो वहां देखा कि गलियों में सुनाई देने वाली खटर-पटर की आवाजे बंद पड़ी है और खौफ से गलियों में सन्नाटा पसरा है। एक महिला को दूसरे से बात करते हुए ये आवाज़ सुनाई दी कि जो मऊव्वाली भाषा में कह रही थी कि “अजी म का बताओ लॉकडाउन की वजह से मोरा लूमवा बंद पड़ा ह औउर सरकार हमन का कुछ ख्याल नाहीं करती, हमन के भूख्खन मर: पर मजबूर ह, अभीन बुनिया के ब्याह की फी फिक्र ह-ऐसी आवाज़ें और दर्द ना जाने कितने बुनकरों के घरों से निकल रहे हैं। मऊ के एक मजदूर बुनकर कलाम का कहना है कि दलाल से कोन नईक: मिलत:, कईसे लूमवा चलिय और सब दिनभर लग: तेन तब जा क एक ठो साड़ी तय्यार होती औउर घर भर का पेट चल: त औउर आज काल लाकडाउन में ऊहो कमवा नाहीं हो पवत:। ऐसी स्थिति में लॉकडाउन के कारण बुनकरों की स्थिति दिन प्रतिदिन और खराब होती जा रही है, जिसके चलते बेरोजगारी बढ़ने लगी है। लूम का ब्रेक होना उनके लिए जीवन रेखा पर ब्रेक लगाने जैसा हो गया है। हालांकि सरकार के निर्देश पर प्रशासन द्वारा हर जरूररतमन्दों को चिन्हित कर उनके घर तक राहत सामग्री पहुचाने की काम हो रहा है। लेकिन कुछ ऐसे बुनकर है, जो इससे भी वंचित है, वह लोग किसी तरह से इस महामारी अपना जीविकोपार्जन कर रहे हैं।
बुनकर आसीम का कहना है कि सेठ/साहूकारों से कच्चा माल लेकर बुनकर साड़ी तैयार करते हैं, जिसके एवज में इन्हें प्रति साड़ी 200 से 300 रूपया ही मिलता है और पूरा परिवार मिल कर जब दिन भर ये काम करता है तो दो वक्त की रोटी नसीब होती है, लेकिन आज वह भी नसीब नहीं हो रही है। आंकड़े के अनुसार शहर क्षेत्र की आबादी करीब 2.78 लाख है। इसमें से एक लाख लोग बुनकरी से जुड़े हैं। इसके चलते अकेले मऊ शहर में करीब 50 लाख लूम हैं। जो दिन रात चलते है। बुनकर परिवार इन लूमों को चलाकर अपने घर का खर्च चलाता है। बुनकरों के परिश्रम से प्रतिदिन करीब एक लाख साड़ियां तैयार होती थी। इन उत्पाद को भेजने के लिए शहर में प्रतिदिन तीस से चालीस ट्रक लगते थे। लेकिन लाकडाउन के बाद से यह स्थिति बिगड़ती जा रही है।