रचनाकार

कही ख़ामोश ना कर दे वो हमें धीरे-धीरे

@मधुर जायसवाल…

वो क्या है जो मुझे बेचैन किये जा रहा धीरे-धीरे
उसके आने की आहट मौन किये जा रहा धीरे-धीरे

लोग पागल भी कहते हैं थोड़ा बददिमाग़ सा लगता हूँ उन्हें
मैं अंधा तो नहीं सब देखता समझता हूँ

दूर तलक़ से आती वो आवाज़ आगाह करती हुई
क़ाश तुम भी सुन लेते मुझे हर पल सुनाई देता है

था समझा जिसे अमृत जो मुझमें घुल रहा है
है ज़हर वो जो अंदर तलक़ खाये जा रहा है

कितना तूफ़ान समेटे है वो ख़ुद के अंदर
कुछ ख़तरनाक सा पल रहा उसके अंदर

सहमा-सहमा सा रहता हूँ जिसकी कल्पना मात्र से
तुम्हे ज़रा भी इल्म नहीं उस ख़ामोश पल का

संभल जाओ के अभी भी कुछ बिगड़ा नही है
समय के आगे तख्तोताज़ कोई ठहरा नही है

है वो शैतान जो हममें पल रहा धीरे-धीरे
कही ख़ामोश ना कर दे वो हमें धीरे-धीरे

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