अंतर्राष्ट्रीय शिव शिष्य संगोष्ठी में उमड़ी भक्तों की भीड़
शिव शिष्य हरीन्द्रानन्द फाउंडेशन के तत्वावधान में त्यागराज स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स, नयी दिल्ली, भारत में “अप्रतिम भगवान शिव की शिष्यता” विषय पर आधारित संगोष्ठी आयोजित की गई। उक्त कार्यक्रम का आयोजन महेश्वर शिव के गुरू स्वरूप से एक-एक व्यक्ति का शिष्य के रूप में जुड़ाव हो सके इसी बात को सुनाने और समझाने के निमित्त किया गया।
आप सभी को ज्ञात है कि शिव शिष्य साहब श्री हरीन्द्रानन्द जी ने सन 1974 में शिव को अपना गुरू माना। 1990 के दशक तक आते- आते शिव की शिष्यता की अवधारणा भारत भूखण्ड के विभिन्न् स्थानों पर व्यापक तौर पर फैलती चली गयी। शिव शिष्य हरीन्द्रानन्द जी और उनकी धर्मपत्नी शिव शिष्या दीदी नीलम आनंद जी के द्वारा जाति, धर्म, लिंग, वर्ण, सम्प्रदाय आदि से परे मानव मात्र को भगवान शिव के गुरू स्वरूप से जुड़ने का आह्वान किया गया। शिव शिष्य हरीन्द्रानन्द जी का अनुभूत सत्य है कि उक्त जयघोष में गुरू शिव हैं शेष सम्पूर्ण मानव सृष्टि मात्र शिष्य होने की पात्रता रखती है।
उक्त आध्यात्मिक आयोजन में शिव शिष्य अर्चित आनन्द (मुख्य सलाहकार, शिव शिष्य हरीन्द्रानन्द फाउंडेशन) ने अपने सम्भाषण में अपनी हार्दिक अभिव्यक्ति से स्पष्ट किया कि यह अवधारणा पूर्णतः आध्यात्मिक है, जो भगवान शिव के गुरू स्वरूप से एक-एक व्यक्ति के जुड़ाव से संबंधित है। उन्होंने कहा कि शिव के शिष्य एवं शिष्यायें अपने सभी आयोजन “शिव गुरू हैं और संसार का एक-एक व्यक्ति उनका शिष्य हो सकता है, इसी प्रयोजन से करते हैं। शिव हमारे संस्कार में अवस्थित हैं। शिव ही सम्पूर्ण संस्कृति के जनक हैं।
शिव शिष्या बरखा आनंद (अध्यक्ष, शिव शिष्य हरीन्द्रानन्द फाउंडेशन) ने कहा कि “अप्रतिम भगवान शिव की शिष्यता ही प्रत्येक मानव के अभ्युदय का एक मात्र विकल्प है।” शिव जगतगुरु हैं अतएव जगत का एक-एक व्यक्ति चाहे वह किसी जाति, धर्म, सम्प्रदाय, लिंगादि का हो शिव को अपना गुरू बना सकता है। शिव का शिष्य होने के लिए किसी पारंपरिक औपचारिकता अथवा दीक्षा की आवश्यकता नहीं है। केवल यह विचार कि “शिव मेरे गुरू हैं”शिव की शिष्यता का स्वमेव शुरूआत करता है।इसी विचार का स्थायी होना हमको-आपको शिव का शिष्य बनाता है।
शिव शिष्य गिरिराज सिंह ने कहा कि मैं ने 1995 में शिव को अपना गुरु माना । आज साहब हरीन्द्रानन्द जी शरीर में नहीं हैं पर आज भी वे हमारे बीच हैं।दीदी नीलम आनंद से हमारा रिश्ता भाई बहन का बन गया पर गुरु शिव के मार्ग में वे दोनो पथ प्रदर्शक रहे यह मेरा सौभाग्य है।
शिव शिष्य प्रो रामेश्वर मंडल ने कहा कि“शिव हैं तो हम हैं”शिव ही आदि हैं, अंत हैं और अनंत हैं। शिव की अवधारणा शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती। एक मात्र उनके गुरू स्वरूप से शिष्य के रूप में जुड़कर अनुभूत किया जा सकता है।
शिव गुरू की दया ही दीक्षा है, एवं जन-जन के हृदय में यथार्थ में गुरू शिव की स्थापना ही गुरू दक्षिणा है।शिव शिष्य अभिनव आनन्द ने कहा कि मूल गुरू शिव स्वयं हैं। गुरू, सद्गुरू सभी उनके गुरूभाव के आंशिक धारक हैं। आज के परिवेश में आत्मिक उत्थान के एकमात्र विकल्प है शिव की शिष्यता। शिव का शिष्य होने के लिए केवल स्थायी शिष्यभाव अनिवार्य है।
शिव शिष्या निहारिका आनंद ने कहा कि मानव जीवन के मूल आधार होते हैं गुरू। मानव जीवन की पहली और आखिरी आवश्यकता होते हैं गुरू। अतः आईये, हम सभी शिष्य होकर अपने जीवन के सम्पूर्ण अभ्युदय का भार सौंपते हैं अपने गुरू शिव को।
शिव शिष्य होने में सहायक तीन सूत्र।
प्रथम सूत्रः- अपने गुरू शिव से यह मूक संवाद प्रतिदिन संप्रेषित करें कि“हे शिव, आप मेरे गुरू हैं, मैं आपका शिष्य हूँ, मुझ शिष्य पर दया कर दीजिए।”
द्वितीय सूत्रः-सबको सुनाना और समझाना है कि शिव गुरू हैं, ताकि दूसरे लोग भी शिव को अपना गुरू बनायें।
तृतीय सूत्रः-अपने गुरू शिव को मन ही मन प्रणाम करना है। इच्छा हो तो नमः शिवाय मंत्र से प्रणाम किया जा सकता है।
इन तीन सूत्रों के अलावा किसी भी अंधविश्वास या आडम्बर का कोई स्थान बिल्कुल नहीं है। इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में भारत और अन्य देशों से लगभग 5000 लोग शामिल हुए। इस आयोजन में अन्य वक्ताओं ने भी अपने-अपने विचार दिए।