मैं एक किताब लिखना चाहता हूँ
(पंकज शुक्ला “आवारा”)
अपनी ज़िंदगी को लेकर एक ख्वाब लिखना चाहता हूं,
अपने पाप- पुण्य का अनोखा हिसाब लिखना चाहता हूं।
उलझी हुई है मेरी ज़िन्दगी इस यौवन रूपी भँवर में,
अपनी अच्छाई – बुराई पर एक किताब लिखना चाहता हूं।
मैं देश का हर अच्छा बुरा अरमान लिखना चाहता हूं,
पेपर दिखाने वाली मजबूरी की पहचान लिखना चाहता हूं।
मुझे पता है कि पिता जी बृद्धा आश्रम में आज क्यो है,
मैं हर पुत्र मोह में फसे पिता का मान लिखना चाहता हूं।
मैं स्त्री की दबी हुई अभिलाषा लिखना चाहता हूं,
नव निर्मित प्रकाश किरण की आशा लिखना चाहता हूं।
मुझे गर्व है मेरी देश की प्रतिभा शाली नारियों पर आज,
उनके विकाश की अनकही परिभाषा लिखना चाहता हूं।
सियासत का डर है पर उनका काम लिखना चाहता हूं,
जनता के इरादों का भयानक परिणाम लिखना चाहता हूँ।
नही समझना मुझे की मंदिर क्या है और मस्जिद क्या है,
मैं ईद में अल्लाह औऱ दीवाली में राम लिखना चाहता हूँ।
मैं चापलूसों के व्यक्तित्व की पहचान लिखना चाहता हूं,
माँ भारती के चरणों मे अपने प्राण लिखना चाहता हूं।
मुझे शायद समझ आती है बेबश किसानों की मजबूरी,
इसलिए उनके हिस्से का मैं खलिहान लिखना चाहता हूं।
कैसे जी रहा हूँ इस बात को बार बार लिखना चाहता हूं,
ज़िम्मेदारी के बोझ से दबे सारे परिवार लिखना चाहता हूं।
मैं हूँ जरूर थोड़ा परेशान अपनी इस ज़िन्दगी में आज,
पर न जाने क्यों तेरे हिस्से का प्यार लिखना चाहता हूं।
मैं इस अनूठे विश्वास का स्वाभिमान लिखना चाहता हूं,
अपने देश प्रेम के गौरव का अभिमान लिखना चाहता हूं।
पढ़ा है चन्द्रशेखर औऱ भगत की कहानी मैंने किताबो में,
पूर्णसमर्पित हो देश पर अपना बलिदान लिखना चाहता हूं।
मेरे ये अल्फ़ाज तेरे बन जाएंगे तू बस मेरा ख्वाब बन जाना,
मैं हूँ बस एक छोटा सा शब्द मुझे खुद में समेट तू किताब बन जाना।
लेखक परिचय…
पंकज शुक्ला (आवारा)
छत्तीसगढ़ भिलाई
9589666143