जोलुसे वारीदे कर्बला निकाला गया
घोसी। नगर के बड़ागांव कस्बा में 2 मोहर्रम शनिवार की रात्रि कर्बला के मोसाफिरों की याद के सरज़मीने कर्बला पर वारिद होने की याद मनाई गई । यह ज़ुलजना का जलूस मींजनिब गमखार हुसैन मदरसा हुसैनिया से निकला जिसकी इफ्तेता में मौलाना मोज़ाहिर हुसैन ने कहा यह ज़ुलजना जो कर्बला से पहले दुलदुल के नाम से जाना जाता था यह वह घोड़ा था जिसे मोकवक़्क़ीस बादशाह ने रसूले अकरम को दिया था और होज़ुर ने इमामे हुसैन को दिया यह घोड़ा जब ज़मीने कर्बला पर पहोंचा तो क़दम आगे नही बड़ा रहा था इमाम ने अपने साथियों को एक मुट्ठी खाक सूंघने के बाद घोड़े से उतरने का हुक्म दिया और कहा यह ज़मीन ज़मीने कर्बला है यहीं पर हमें शहादत मिले गी हम यहीं शहीद किये जाएंगे। इस दुलदुल को कर्बला में इतने तीर लगे थे की बाज़ू के मानिंद नज़र आने लगा इसी लिए उसको ज़ुलजना यानि बाज़ुओं वाला कहा गया इसी वाक़या की याद में यह जलूस मनाया गया। जिसमे अंजुमन सज्जादिया ने नोहा खानी की अंजुमन सज्जादिया के नोहा खान ग़ज़न्फर, साजिद, शमीम, इफ़्तेख़ार, तफहिम, शाहिद, अली, गुलाम ने नोहा पड़ा गज़नफर ने पड़ा जलवा नोमा है रौज़ए शब्बीर खाक पर,शमीम ने पड़ा देख कर लाशे क़ासिम की शह ने कहा किस तरह तेरा लाशा उठाए हुसैन,इफ्तेखार ने पड़ा लेने कब आओगे अये भाई बहन बीमार को थक गई उफ करते करते इंतज़ार, यह जलूस अपने परंपरागत रासते निमतले व बड़ा फाटक होते हुए सदर इमाम बारगाह पर समाप्त हुवा। इस अवसर पे हाजी इक़बाल,असगर नासरी, नसीम, तन्नू, मो अली, सुगान, आसिफ, मोख्तार, सरकार, ज़मीरुल, नफीस, नूर मोहम्मद, ताहिर, मज़हर नेता सहित बड़ी संख्या में शिया समुदाय के लोग उपस्थित रहे।