जम्मू कश्मीर में विश्वास की अलख जगा रहे एलजी मनोज सिन्हा के साल भर

( श्रीराम जायसवाल )
जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल के रूप में मनोज सिन्हा ने अपने एक साल के कार्यकाल में विकास पुरुष के साथ-साथ विश्वास पुरुष की छवि, कायम व बरकरार रखी है। साल भर के दौरान नेता, किसान, छात्र, व्यापारी, खिलाड़ियों सहित पूरे आवाम में एक विश्वास सी जग गई। सम्भवतः एलजी मनोज सिन्हा के सालभर किसी राज्यपाल का पहला रिपोर्ट कार्ड होगा जिस पर आवाम विश्वास की मुहर लगाती नजर आ रही है। पूर्व में केंद्रीय रेल राज्यमंत्री संचार मंत्री स्वतंत्र प्रभार कार्यकाल के दौरान विकास पुरूष के नाम से बनी पहचान के बाद जम्मू कश्मीर के एलजी की नई पारी में विश्वास पुरुष का खिताब महज संयोग या रणनीति का हिस्सा नहीं बल्कि यह उनके जीवन और स्वभाव का हिस्सा है। जम्मू- कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद केन्द्र सरकार के सामने केंद्र की नीतियों को लागू करने और वहां की जनता का विश्वास जीतना सबसे बड़ी चुनौती थी। सत्यपाल मलिक और फिर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी (आईएएस) गिरीश चंद्र मुर्मू को जम्मू-कश्मीर का उपराज्यपाल बनाया गया। लेकिन उन लोगों का जनता के साथ जुड़ाव नहीं हो पा रहा था। कहीं न कहीं इस बात व इसके परिणाम का अंदाजा व चिन्ता केंद्र सरकार को लगातार बनी हुई थी। ऐसे वक्त में बतौर उपराज्यपाल के रूप में ऐसे शख्स की जरूरत थी जो राजनीति का भी माहिर खिलाड़ी हो। जिसके पास प्रशासनिक अनुभव के साथ साथ राजनेता भी हो। ऐसे में उस खांचें में मनोज सिन्हा बिल्कुल फिट बैठते नजर आए। जम्मू- कश्मीर के उपराज्यपाल की जिम्मेदारी जब से मनोज सिन्हा ने संभाली उनका पहला प्रयास रहा कि वो जनता के बीच सीधे जाएं। उन्होंने अपना अधिक से अधिक वक्त जनता के बीच बिताया। वह इस दौरान कई ऐसी जगहों पर भी गए जहां दूसरे नेता पहले भारी भरकम सुरक्षा घेरे को लेकर भी वहां नहीं पहुंचे। उन्होंने लोगों को हर बात सुनी और यह विश्वास दिलाने की पूरी कोशिश करते रहे कि आपके भले के लिए यहां हर प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने अपने आपको राजभवन तक सीमित नहीं रखा बल्कि सबसे मिलने जुलने के दौरान विश्वास की अलख जगाते नजर आए। खास बात यह कि श्री सिन्हा इस दौरान जनता के साथ नेताओं के साथ भी बातचीत की कोशिश जारी रखे। स्थिति यह रही कि पिछले 12 महीनों में जब से मनोज सिन्हा जम्मू- कश्मीर के उपराज्यपाल बने। वह लोगों के बीच गए ही साथ ही वहां के नेताओं से मुलाकात ही नहीं किए बल्कि नेशनल कांफ्रेस से लेकर दूसरे दलों के नेताओं से भी बातचीत की कोशिश चलती रही। मनोज सिन्हा के सामने सबसे बड़ी चुनौती डीडीसी चुनाव के समय थी। यह चुनाव शांतपूर्ण ढ़ंग से संपन्न हुए। खास बात यह रही कि चुनावी हिंसा के कारण जिस जम्मू-कश्मीर में 3 वर्ष तक अनंतनाग का लोकसभा चुनाव नहीं हो सका था, वहां डीडीसी चुनाव में शांतिपूर्ण ढंग से बढ़ चढ़कर वोटिंग हुई। इसका नतीजा रहा कि वहां की जनता के साथ ही साथ राजनीतिक दलों का भी भरोसा कायम हुआ। जम्मू कश्मीर के राजनैतिक पार्टियों के श्री सिन्हा पर भरोसे का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 370 हटाए जाने के बाद पहली बार जम्मू कश्मीर के सभी दलों के साथ बैठक हुई। प्रधानमंत्री आवास पर जम्मू-कश्मीर के कुल 18 प्रतिनिधि बैठक में शामिल हुए। पहली बैठक इतने दिनों बाद हुई इस बैठक में काफी सार्थक माहौल में चर्चा हुई। इस बैठक में शामिल होने आए सभी नेताओं ने मनोज सिन्हा की तारीफ किया। खास बात यह कि इसमें वह नेता भी शामिल रहे जो शुरूआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बातचीत वाले न्योता पर सकारात्मक नहीं थे। लेकिन वह केवल इस बैठक में शामिल ही नहीं हुए बल्कि साथ ही प्रधानमंत्री मोदी से इन नेताओं ने उन्हे राज्यपाल बनाकर पूर्ण राज्या का दर्जा देने की मांग कर डाली। फिलहाल जे&के में जिस तेजी से परिसीमन का काम चल रहा है उससे आवाम के साथ ही राजनेताओं को शीघ्र ही चुनी हुई सरकार मिलने के आसार जगने लगे हैं। इस दौरान अध्यक्ष, कश्मीर चैंबर आफ कामर्स एंड इंडस्ट्रीज, शेख आशिक ने मीडिया को बयान दिया कि हमने उन्हें कश्मीर के कारोबारी जगत से लेकर आम लोगों से जुड़े विभिन्न मुद्दों से अवगत कराया है। उन्होंने हमें जो आश्वासन दिए, लगभग सभी पूरे हुए हैं। वह काम करने में यकीन रखते हैं। वहीं डीडीसी फोरम के संयोजक और राजनीतिक कार्यकर्ता, तरनजीत सिंह टोनी ने कहा कि नौकरशाह उनके मिशन को लागू करने लिए पूरी ईमानदारी से काम करे तो जम्मू-कश्मीर के अगले दो तीन सालों में देश के सबसे विकसित और खुशहाल प्रदेश में होगा।
-ऐतिहासिक निर्णय लेकर तोड़ी परम्परा, जीते विश्वासमनोज सिन्हा ने कहा कि जम्मू-कश्मीर प्रशासन पूरी तरह से ई-कार्यालय में तब्दील हो गया है जिससे सैकड़ों साल पुरानी दरबार स्थानांतरण की परंपरा समाप्त हो गई है। इसके तहत प्रत्येक छह महीने पर सचिवालय स्थानांतरण जम्मू और श्रीनगर के बीच होता था। उन्होंने कहा, अब जम्मू और श्रीनगर सचिवालय साल के 12 महीने सामान्य काम कर सकते हैं। इससे सरकार 200 करोड़ रुपये हर साल बचाएगी जिसका इस्तेमाल लोगों के कल्याण में होगा।इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर के सभी सरकारी इमारतों पर राष्ट्रीय तिरंगा झंडा फहराने का फैसला हो या घाटी समेत पूरे राज्य में टीकाकरण का रिकार्ड बना हो, सबमें बतौर उप राज्यपाल उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति ही कारगर साबित हुई है।कश्मीर में आतंकी हमले के शिकार हुए किसी भी आदमी के परिवार तक श्री सिन्हा खुद सांत्वना देने जाते हैं। इससे लोगों का बड़ा विश्वास उनके प्रति जम रहा है। उप राज्यपाल के सिर्फ 12 महीने के कार्यकाल में उन्होंने जम्मू-कश्मीर के हर क्षेत्र में विश्वास और विकास की बहुत गहरी नींव ढाल दी है।इसके साथ ही कोरोना काल के दौरान मनोज सिन्हा ने स्वास्थ्य सेवाओं पर बारीक नजर रखी। हालात को वहां बेहतर तरीके से संभाला और अब उनकी कोशिश वहां के युवाओं को अधिक से अधिक रोजगार दिलाने की है।

-जम्मू कश्मीर महज जमीन का एक टुकड़ा नहीं बल्कि भारत का जीता जागता राष्ट्र पुरूष है।एक बार बतौर उप राज्यपाल एक सवाल मनोज सिन्हा से पूछा गया कि वह जम्मू-कश्मीर में अपने कामकाज का मूल्यांकन किस रूप में करना चाहेंगे? उनका जवाब था कि जम्मू-कश्मीर जमीन का एक टुकड़ा मात्र नहीं है। भारत का जीता-जागता राष्ट्र पुरुष है। यह बताया कि अपने कामकाज का मैं मूल्यांकन नहीं करता हूं। सब जनता पर छोड़ देता हूं। बस इस बात की निगरानी करता हूं कि काम में कोई कसर न रहे। अपनी कार्यप्रणाली के सम्बंध में बातचीत करते हुए श्री सिन्हा ने कहा था कि मैं छोटे लक्ष्य के साथ बड़ा लक्ष्य चुनता हूं। दो माह में क्या कर सकता हूं? छह माह में क्या हो सकता है और साल-दो साल में क्या हो सकता है? फिर इसी अनुरूप कार्ययोजना बनाकर काम करता हूं। जो जम्मू कश्मीर में फलीभूत होता नजर आ रहा है।
