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Mau : कोरोना संकट के चलते नहीं लग सका मीरा शाह का पांचवां मेला

शन्नू आज़मी

घोसी (मऊ) । तहसील मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर दूर मधुबन – दोहरीघाट मार्ग पर स्थित दरगाह गांव के उत्तर में बाबा मीरा शाह की मजार पर इस गुरुवार को लगने वाला ऐतिहासिक मेला देश के अंदर चल रही कोरोना महामारी के संकट के तहत नहीं लग सका। हां कुछेक लोग दिखाई दिए और बाबा की मजार पर फूल माला चढ़ाकर चले गए। लेकिन हर वर्ष की तरह इस बार ना तो झूले नजर आए और ना खाने-पीने की तमाम दुकानें। वैसे तो मीरा शाह कौन थे, इस तथ्य को बहुत कम लोग ही जानते हैं। शेख वजेहउद्दीन अशरफ लखनौरी द्वारा लिखित मशहूर फारसी पुस्तक “बहरेजख्वार” के अनुसार लगभग 10वीं, 11वीं शताब्दी के आसपास बाबा यहां आए थे। इनका पूरा नाम हजरत सैयद अहमद बादयां था। जिन्होंने कोल्हुआ बन दरगाह में आकर अपना आसन जमाया और लोगों में प्रतिष्ठित होने लगे। कहा जाता है कि मीरा शाह हजरत बदेउद्दीन कुतुब मदार के शिष्य थे। यह भी मशहूर है कि एक बार बाबा समरकंद के रास्ते भारत आ रहे थे कि रास्ते में उन्होंने खाना पीना छोड़ दिया इनके गुरु कुतुब मदार में जानकारी होने पर इनको बताया कि तुम दक्षिण की ओर जाओ वहां तुम्हें एक पानी का झरना मिलेगा। उसके किनारे हरे- भरे पेड़ों की छाया में एक व्यक्ति अपने साथ साथियों का इंतजार कर रहा है। उसके पास सात व्यक्तियों का भोजन है जो तुम्हारे नाम का है। अल्लाह का नाम लेकर वह भोजन करो और उसे सास पुश्तों का राज तथा सात देशों का राजा बनने का आशीर्वाद दो। बाबा ने उस आदेश का ध्यान कर यहां का रुख किया और यहां पहुंच देखा कि ठीक वैसा ही वर्णित आदमी मिला जो और कोई नहीं तैमूर लंग था, जिसे मीरा शाह ने आशीर्वाद दिया और इसी के फलस्वरूप तैमूर लंग को सात पुश्तों का राज मिला। एक दूसरी किवंदती के मुताबिक अपनी विमाता के दुर्व्यवहार से क्षुब्ध होकर शेरशाह सूरी भी बाबा की शरण में आया और अपना दर्द बाबा को सुना कर रो पड़ा तब बाबा ने कहा कि जाओ तुम्हारी खोई हुई जागीर तुम्हें मिल जाएगी और तुम हिंदुस्तान के बादशाह बनोगे। बादशाह बनने के बाद तुम अपनी पहली संतान को मेरी सेवा में दे देना। कहते हैं कि वैसा होने के बाद शेरशाह ने अपनी पहली पुत्री मेहबानो को उसके उस्ताद सैयद इस्माइल की सुपुर्दगी में कुछ खादिमों के साथ स्वयं यहां आकर बाबा को सौंप दिया, तथा यहां सात सप्ताह रुका दी तभी से हर वर्ष ज्येष्ठ मास के आखरी गुरुवार से सात गुरुवार तक यहां एक विशाल मेला लगता है। जिसमें प्रदेश के दूरदराज जनपदों के अकीदतमंद आकर यहां चादर चढ़ाते हैं और बाबा से मिन्नतें करते हैं। कहते हैं बाबा के रोजे का निर्माण भी शेरशाह सूरी ने ही कराया था। बाबा की मजार के बगल में ही शेरशाह सूरी की पुत्री मेहबानो की भी मजार है। रौजे के पूर्वी छोर पर एक तालाब है, जिसमें एक स्रोत द्वारा पानी गिरता रहता है। इसके बारे में बताया जाता है कि यह कभी सूखता नहीं। पूर्व लिखित पुस्तक में बाबा ने अपनी दातून जिस स्थान पर गाड़ दिया था, उसी स्थान से पानी का स्रोत निकल पड़ा, जहां से आज भी पानी निकलना जारी है। अकीदतमंद बताते हैं कि पाताल गंगा के नाम से प्रसिद्ध इस जल स्रोत के जल से कुत्ते से काटे घाव को धोने से घाव ठीक हो जाता है।

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