राष्ट्रपति ने किया वैश्विक शिखर सम्मेलन का शुभारंभ
– जब हम शांत होते हैं, तभी दूसरों के प्रति सहानुभूति और प्रेम का भाव रख सकते हैं: द्रौपदी मुर्मु
– राष्ट्रपति ने अपने भाषण में विश्व शांति, अध्यात्म, ग्लोबल वार्मिंग, स्वच्छ भारत मिशन और जल जीवन मिशन और पर्यावरण पर की बात
– मुर्मु ने देशवासियों से एक पेड़ मां के नाम लगाने का किया आहृान
आबू रोड, राजस्थान। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के शांतिवन में शुक्रवार सुबह 9.30 बजे वैश्विक शिखर सम्मेलन का शुभारंभ किया। इस दौरान मुर्मु ने अपने भाषण में विश्व शांति, अध्यात्म, ग्लोबल वार्मिंग पर बात करते हुए केंद्र सरकार की योजनाएं स्वच्छ भारत मिशन, जल जीवन मिशन और आयुष्मान भारत योजना की सराहना भी की। इसके पूर्व सुबह मान सरोवर परिसर में एक पेड़ मां के नाम अभियान के तहत पौधारोपण कर 140 करोड़ देशवासियों से पौधारोपण का आहृान किया।
डायमंड हॉल में आध्यात्मिकता द्वारा स्वच्छ एवं स्वस्थ समाज विषय पर आयोजित सम्मेलन में संबोधित करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने कहा कि आज विश्व के अनेकों हिस्सों में अशांति का वातावरण व्याप्त है। मानवीय मूल्यों का हृास हो रहा है। ऐसे समय में शांति और एकता की महत्वता और अधिक बढ़ रही है। शांति केवल बाहर ही नहीं, बल्कि हमारे मन की गहराई में स्थित होती है। जब हम शांत होते हैं, तभी हम दूसरों के प्रति सहानुभूति और प्रेम का भाव रख सकते हैं। इसलिए मन, वचन, कर्म सबको स्वच्छ रखना होगा। आध्यात्मिक मूल्यों का तिरस्कार करके केवल भौतिक प्रवृत्ति का मार्ग अपनाना अंतत: विनाशकारी सिद्ध होता है।
कर्मों का सुधार कर ही बेहतर इंसान बन सकता है-
राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि आध्यात्मिकता का मतलब धार्मिक होना या सांसारिक कार्य का त्याग करना नहीं है। आध्यात्मिकता का अर्थ है अपने भीतर की शक्ति को पहचानकर अपने आचरण और विचारों में शुद्धता लाना है। कर्मों का त्याग करके नहीं कर्मों का सुधार कर ही बेहतर इंसान बन सकता है।
राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि भारत प्राचीन समय से ही आध्यात्मिक क्षेत्र में विश्व समुदाय का मार्गदर्शन करता रहा है। मेरी कामना है कि ब्रह्माकुमारीज़ जैसे संस्थान भारत की इस पहचान को और मजबूत बनाने का काम करें।
मुर्मु ने कहा कि विश्व ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण की समस्याओं से जूझ रहा है। इससे बचाने के प्रयास करना चाहिए। मनुष्यों को यह समझना चाहिए कि वह इस धरती का स्वामी नहीं है। बल्कि पृथ्वी के संरक्षण के लिए जिम्मेदार है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत सरकार देशवासियों के लिए स्वच्छ मन और तन के लिए कई प्रयास कर रही है। मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि सरकार द्वारा जीवामृत और प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है। प्राकृतिक खेती से स्वच्छ अन्न, स्वस्छ अन्न से स्वच्छ मन की कड़ी बनती है। जैसे ब्रह्माकुमार भाई-बहन यौगिक खेती करने के लिए प्रोत्साहित करने हैं और खुद भी यौगिक खेती करते हैं। इसलिए कहा जाता है कि जैसा अन्न, वैसा मन। आप जैसा अन्न खाएंगे, वैसी ही मानसिकता बनेगी।
ब्रह्माकुमारीज़ जैसे संस्थानों की आध्यात्मिक संस्थानों की योग और आध्यात्मिक शिक्षा हमें आंतरिक शांति का अनुभव कराती है। यह शांति न केवल हमारे भीतर, बल्कि पूरे समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता रखती है। इस वैश्विक शिखर सम्मेलन में बहुत सारे सत्र आएंगे, जिससे विश्व को स्वस्थ और स्वच्छ बनाने में बहुत लाभदायक होगा।
राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ किसनराव बागड़े ने कहा कि यहां आकर आज बहुत आनंद की अनुभूति हो रही है। आध्यात्मिक होने का अर्थ है कि हम अपने आप को जानते हुए कार्य करें तो सब सफल होगा। ब्रह्माकुमारीज़ बहुत ही अच्छे विषय पर वैश्विक शिखर सम्मेलन आयोजित कर रही है। समाज में नैतिकता का पतन हुआ है। आध्यात्मिकता व्यक्तिगत विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
इन्होंने भी रखे अपने विचार-
– अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी मोहिनी दीदी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति यह संकल्प लें कि हम अपने जीवन में दिव्य गुणों की धारणा करेंगे। परमात्मा इस धरा पर विश्व शांति की स्थापना का कार्य कर रहे हैं।
– अतिरिक्त मुख्य प्रसाशिका राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी जयंती दीदी ने कहा कि अभी हम नवरात्र में देवियों की पूजा कर रहे हैं। शिव शक्ति ही दुनिया में स्वस्थता, स्वच्छता और शांति स्थापन कर सकती हैं।
– संस्थान के महासचिव राजयोगी बृजमोहन भाई ने कहा कि आज विश्व के हालत अच्छे नहीं हैं, ऐसे में यह सम्मलेन विश्व को शांति, अध्यात्म और एकता का संदेश देगा।
– कार्यकारी सचिव डॉ. मृत्युंजय भाई ने स्वागत भाषण देते हुए कहा कि राष्ट्रपति का नारी शक्ति के रूप में आज दूसरी बार मुख्यालय शांतिवन आगमन पर हार्दिक स्वागत है। संचालन बीके शिविका बहन ने किया। इस मौके पर देश-विदेश से आए पांच हजार से अधिक लोग मौजूद रहे।