शहीद -ए-आजम भगतसिंह की जयंती पर समस्त क्रांतिकारयो को शत शत नमन
मनोज कुमार सिंह…
28 सितम्बर जयंती विशेष
आधुनिक भारत की समाजवादी,प्रगतिशील, क्रांतिकारी और शोषण विरोधी चेतना के अग्रदूत थे शहीद -ए-आजम भगतसिंह
इन्हीं पागल दिमागों में आजादी के गुच्छे है,
हमें पागल ही रहने दो हम पागल ही अच्छे हैं ।
फांसी के लिए निर्धारित तारीख से एक दिन पहले 23 मार्च 1931 को भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को दी गई । भारतीय इतिहास की इस सबसे क्रांतिकारी फांसी की घटना ने ब्रिटिश साम्राज्य को बुरी तरह और पुरी तरह झकझोर कर रख दिया। भारतीय बसुंधरा पर विशाल बरगद की तरह जड़ जमा चुके ब्रिटिश साम्राज्य के ढहने,भरभरा कर गिरने और अंग्रेजों को देश छोड़ कर सात समंदर अपने देश भागने का आगाज इस क्रांतिकारी घटना से हो गया।
मनोज कुमार सिंह
भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की सबसे शानदार शहादत की इस घटना ने न केवल ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ों को हिलाया बल्कि सम्पूर्ण भारतीय जनमानस विशेष कर नौजवानों के मन मस्तिष्क को भी अपनी महान क्रांतिकारी चेतना से उद्वेलित कर दिया। ब्रिटिश साम्राज्य उस दौर में पूंजीवादी संस्कृति और सभ्यता का वैश्विक स्तर पर नेतृत्व कर रहा था, लूट खसोट लालच निर्ममता निर्लज्जता क्रूरता दमन अत्याचार अन्याय और शोषण पर आधारित इस पूंजीवादी संस्कृति और सभ्यता पर सर्वाधिक प्रखर वैचारिक और सामरिक हमला हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन पार्टी के क्रांतिकारी रणबांकुरे कर रहे थे। भारत के महान देशभक्त, साहसी वीर सपूतों की यह शहादत भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के इतिहास में इस रुप में अनूठी, अद्वितीय और अविस्मरणीय रहेगी क्योंकि- यह शहादत महज़ भारत की स्वाधीनता के लिए समर्पित नहीं थी अपितु भारत की स्वाधीनता के साथ-साथ इंसान के द्वारा इंसान के शोषण के विरुद्ध , एक देश द्वारा देश के शोषण के खात्मे के उद्देश्य को लेकर हर इंसान की मुक्कमल आजादी और स्वस्थ, समरस शोषण विहिन समाज बनाने वाले महान क्रांतिकारी तथा मानवतावादी मूल्यों, आदर्शो एवं विचारों को समर्पित थी। शहादत की घटना ने भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव की लोकप्रियता को भारतीय जनमानस में चरम पर पहुंचा दिया। इन क्रांतिकारी शहीदो की लोकप्रियता आजादी के आंदोलन का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस के अग्रिम कतार के लोकप्रिय नेताओं की लोकप्रियता को स्पर्श करने लगी थी। कांग्रेस के आधिकारिक इतिहासकार पट्टाभि सीतारमैया ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि -भगतसिंह और उनके साथियों की लोकप्रियता काफी बढ़ने लगी और कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय नेता महात्मा गांधी की लोकप्रियता को स्पर्श करने लगीं। महान क्रांतिकारी विचारों और मानवतावादी मूल्यों की बलि बेदी पर हंसते -हसते अपनी जान न्योछावर करने वाले इन अमर शहीदों की इस शहादत आज़ भी भारतीय जनमानस को क्रांतिकारी संघर्ष के लिए संजीवित ,उद्वेलित और अनुप्राणित करती हैं।
5 फरवरी 1922 की चौरी-चौरा की हिंसक घटना के कारण महात्मा गांधी ने अहिंसा पर आधारित राष्ट्रव्यापी असहयोग आंदोलन स्थगित कर दिया। असहयोग आंदोलन के स्थगित होने से स्वाधीनता आंदोलन में जो हताशा ,निराशा और ब्रिटिश साम्राज्य के संघर्ष को लेकर जो आशंका उत्पन्न हूई उसकी कोख से गांधीवादी आंदोलन से इतर विविध राजनीतिक संघर्ष की धाराओं का उद्भव हुआ। जिसमें सर्वाधिक लोकप्रिय, चर्चित और सक्रिय आंदोलनकारी धारा भगतसिंह राजगुरु सुखदेव और चन्द्रशेखर आज़ाद द्वारा संचालित हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के रूप में क्रांतिकारी मंडली थी। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध सर्वाधिक प्रखर , तीखा वैचारिक, राजनीतिक और सामरिक हमला इसी क्रांतिकारी मंडली ने किया। इसीलिए इस क्रांतिकारी मंडली के विरुद्ध अंग्रेजी हुकूमत ने सर्वाधिक तीखा दमनचक्र चलाया। हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की अग्रिम कतार के नायकों में भगतसिंह सबसे प्रखर एवं राजनीतिक वैचारिक समझदारी रखने वाले क्रांतिकारी थे। जलियांवाला बाग में हूई घटना ने भगतसिंह को क्रांतिकारी बना दिया,उस समय उनकी उम्र महज़ बारह साल थी। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के तीसरे दशक में भारत में भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के गम्भीर और अध्येता, भारत में समाजवादी विचारधारा के प्रणेता ,अग्रणी प्रचारक और प्रसारक शहीद-ए-आज़म भगत सिंह को आमतौर पर उत्तेजित ,उत्साही और बम पिस्तौल के आधार पर आजादी चाहने वाले नौजवान के रूप में जाना जाता है । भगत सिंह की सैद्धांतिक, वैचारिक राजनीतिक सूझ-बूझ और समझदारी को कम महत्व दिया जाता हैं। परन्तु भगत सिंह उच्च कोटि के भौतिकवादी दार्शनिक ,वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ओत-प्रोत चिन्तक , विचारक और महान क्रांतिकारी थे। 1917 में रुस में सफल समाजवादी क्रांति से गहरे रूप से अनुप्राणित भगतसिंह ने महज तेईस साल की उम्र में दुनिया की अधिकांश साहित्यिक, वैचारिक ,दार्शनिक और राजनीतिक पुस्तके पढ़ डाली थी और “बम का दर्शन “” मै नास्तिक क्यों हूँ” जैसी दर्जनो पुस्तके और सैकडों लेख लिख डाले थे। उर्दू, हिन्दी, अंग्रेजी, पंजाबी और बंगाली भाषा के जानकार भगतसिंह के अंदर अद्वितीय राजनीतिक दूरदर्शिता थी। अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता का परिचय देते हुए लाहौर जेल में रहते हुए अनुमान लगा लिया था और भविष्यवाणी किया कि – मेरी फांसी के लगभग पन्द्रह साल बाद हमारा देश राजनीतिक रूप से आज़ाद हो जाएगा। इसके साथ ही भगतसिंह ने यह भी कहा था कि-पन्द्रह साल बाद जो आजादी मिलेगी आधी-अधूरी और महज़ राजनीतिक आजादी होगी। गोरे अंग्रेजों की जगह काले अंग्रेज सरकार चलायेंगे। यह आजादी मुट्ठी भर लोगों की आजादी होगी । यह आजादी वास्तव में समाज के ऊपरी हिस्से के लोगों की आजादी होगी। यह आजादी पूंजीपतियों सेठ साहूकारों की आजादी होगी, 90 फीसदी मजदूरों किसानों और मेहनतकशो, की जिंदगी को शोषण और लूट से आजादी कत्तई नहीं मिलेगी। भगतसिंह का यह विश्वास और विचार आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि आज एक ब्रिटिश साम्राज्य के स्थान अनगिनत बहुराष्ट्रीय कंपनियों के माध्यम से अनगिनत विदेशी धन्नासेठ देशी धन्ना सेठों के साथ मिलकर भारत की महान जनता की मेहनत को और सर्वगुण संपन्न कभी सोना हीरे जवाहरात उगलने वाली भारतीय बसुंधरा को निर्लज्जता से लूट रहे हैं।
भगतसिंह की राजनीतिक , वैचारिक और दार्शनिक समझदारी लाहौर जेल में रहते हुए विकसित हूई थी। भगतसिंह जितने बेहतरीन लड़ाकू थे उतने ही बेहतरीन पढ़ाकू थें। भगतसिंह की अद्वितीय अध्ययनशीलता और चिंतनशीलता ने पूरी क्रांतिकारी मंडली को अध्ययनशील और चिंतनशील बना दिया था।
महज़ तेईस साल की उम्र में भगतसिंह ने अपने अध्ययन, चिंतन और मनन के फलस्वरूप जो विचार दिया वह वर्तमान भारतीय राजनीति के लिए प्रासंगिक हैं। घोर जातिवादी, घोर साम्प्रदायिक चरित्र धारण करती वर्तमान भारतीय राजनीति को देखते हुए भगतसिंह और उनके साथियों के विचारों और दस्तावेजोंं का गम्भीरता से अध्ययन, चिंतन और मनन अत्यंत आवश्यक है और वर्तमान भारतीय राजनीति और समाज के बदरंग और बदहाल स्वरूप को बेहतर करने के लिए उन विचारों और दस्तावेजोंं से रोशनी मिल सकती है। ख़ासतौर पर बढ़ती साम्प्रदायिकता का मुकाबला करने के लिए ” मैं नास्तिक क्यों हूँ, ‘ साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज़ ‘ और ‘ धर्म और हमारा स्वतंत्रता संग्राम ‘ का अध्ययन जरूरी है। आज भी कभी- कभी दलितों के साथ दुर्व्यवहार और अपमानजनक घटनाएं होती रहती हैं। दलित उत्पीड़न की समस्या को समझने और उसका समाधान करने के लिए ‘ अछूत समस्या ‘ का अध्ययन सहायक हो सकता है। भारत की कुल आबादी में आज नौजवानों की संख्या सबसे अधिक लगभग पैंसठ प्रतिशत है। परन्तु वर्तमान भारत के अधिकांश नौजवान दिशाहीन, दिग्भ्रमित और हताश-निराश है। ऐसी स्थिति मे भारतीय नौजवानों में व्याप्त हताशा-निराशा को दूर करने और भारतीय समाज आमूलचूल परिवर्तन के लिए भगतसिंह का दस्तावेज ‘ युवा कार्यकर्ताओं के नाम पत्र ‘ का अध्ययन अत्यंत कारगर हो सकता हैं। यह दस्तावेज भारतीय नौजवानों को ऊर्जस्वित करने वाला और पथ प्रदर्शक हो सकता है। फांसी से लगभग डेढ़ महीने पहले लिखें पत्रों और दस्तावेजों में भगतसिंह में वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता कार्ल मार्क्स जैसे विचारकों जैसी सैद्धांतिक और वैचारिक स्पष्टता तथा लेनिन, माओत्से तुंग जैसे क्रांतिकारियों की तरह व्यवहारिक कुशलता स्पष्ट नजर आती हैं। भारत में आर्थिक न्याय, समाजवादी क्रांति, हर तरह के शोषण से मुक्त समाज और सच्चे अर्थों में मुकम्मल आजादी का स्वप्न भगतसिंह और उनके साथियों के सैद्धांतिक, वैचारिक और व्यावहारिक चिंतन परम्परा को हृदयंगम किए बिना और हिन्दुस्तानी जनता के प्रति भगतसिंह और उनके साथियों की निर्भिक, निस्वार्थ प्रतिबद्धता व लगन को आत्मसात किए बगैर मुक्कमल नहीं हो सकता है।
हमारे स्वाधीनता संग्राम सेनानियों और महान समाज सुधारको ने कुप्रथाओं, कुरीतियों, और अंधविश्वासों के विरुद्ध अनवरत संघर्ष कर एक बेहतर समाज बनाने का प्रयास किया और काफी हद तक सफल रहे। परन्तु आज फिर पोंगा पंथी, रुढ़िवादी और प्रतिक्रियावादी शक्तियां सक्रिय होने लगी है। इन शक्तियों से मुकाबला करने के लिए भगतसिंह के विचार महत्वपूर्ण औजार हों सकते हैं। शहीद भगत सिंह ने फांसी पर चढ़ने से कुछ समय पहले कहा था कि – ” जब गतिरोध की स्थिति लोगों को अपने शिकंजे में जकड़ लेती है तो किसी भी प्रकार की तब्दीली से वे हिचकिचाते हैं। इस जड़ता और निष्क्रियता को तोड़ने के लिए एक क्रांतिकारी स्पिरिट पैदा करने की जरूरत होती हैं, अन्यथा पतन और बर्बादी का वातावरण छा जाता हैं। लोगों को गुमराह करने वाली प्रतिक्रियावादी शक्तियां जनता को ग़लत रास्ते पर ले जाने में सफल हो जाती है। इससे इंसान की प्रगति रुक जाती हैं और उसमें गतिरोध आ जाता हैं। इस परिस्थिति को बदलने के लिए यह जरूरी है कि क्रांति की स्पिरिट ताज़ा की जाए, ताकि इंसानियत की रूह में एक हरकत पैदा हो। ”
समाज में परिवर्तन स्वाभाविक है। क्योंकि बदलते दौर के लिहाज से जीवन जीने की परिस्थितियां और जीवन जीने के औजार बदलते रहते हैं। समाज के परिवर्तन की प्रवृतियों और शक्तियों को भगतसिंह अच्छी तरह जानते थे। इंकलाब को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा था कि – इंकलाब शब्द का अर्थ कोरे शाब्दिक रूप में नहीं लगाना चाहिए। क्रांति का अर्थ प्रगति के लिए परिवर्तन की भावना और आकांक्षा है। लोग साधारणतया जीवन की परम्परागत दशाओं के साथ चिपक जाते हैं और परिवर्तन के विचार मात्र से कांपने लगते हैं। यही वह अकर्मण्यता की भावना है, जिसके स्थान पर क्रांतिकारी भावना जाग्रत करने की आवश्यकता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता हैं कि – अकर्मण्यता का वातावरण निर्मित हो जाता है और रुढ़िवादी शक्तियां मानव समाज को ग़लत रास्ते पर ले जाती है। ये परिस्थितियां मानव समाज की उन्नति में गतिरोध का कारण बन जाती है। क्रांति की इस भावना से मनुष्य जाति की आत्मा स्थायी तौर पर ओतप्रोत रहनी चाहिये जिससे कि – रुढिवादी शक्तियां मानव समाज की उन्नति की दौड़ में बाधा डालने को संगठित न हो सके। यह आवश्यक है कि पुरानी व्यवस्था सदैव बदलती रहे और वह नयी व्यवस्था के लिए स्थान रिक्त करती रहें जिससे कि यह आदर्श व्यवस्था संसार को बिगड़ने से रोक सके। यही हमारा असली अभिप्राय है जिसको हृदय में रखकर हम इंकलाब जिंदाबाद का नारा ऊंचा करते हैं।
शहीद ए आज़म भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव का भारत की स्वाधीनता और शानदार विचारों के लिए किया गया त्याग और बलिदान भारतीय इतिहास में सदियों तक अमर रहेगा और आने वाली पिढियाँ गर्व की अनुभूति करती रहेगी।
लेखक/साहित्यकार/उप-सम्पादक कर्मश्री मासिक पत्रिका