उत्तर प्रदेश

आज़मगढ़ उपचुनाव : मुकाबला यादवी दबदबा और उससे मुक्ति के बीच

@ धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव…

लखनऊ। आज़मगढ़ लोकसभा चुनाव में आमतौर पर मुकाबला यादवी दबदबा और उससे मुक्ति के बीच ही होता रहा है। यही इस बार के उपचुनाव में भी नज़र आ रहा है। वैसे इसे लेकर फिलहाल तक आम आदमी मुखर नहीं है।

आज़मगढ़ में यादवी दबदबे की शुरुआत 1962 के लोकसभा चुनाव में बाबू राम हरख यादव के रूप में हुई थी जो श्रीमती मोहसिना किदवई, श्री सन्तोष सिंह और श्री अकबर अहमद डम्पी ( दो बार ) के चार झटकों को छोड़ दिया जाए तो श्री चन्द्रजीत यादव, श्री रामनरेश यादव, श्री रामकृष्ण यादव, श्री रमाकांत यादव, श्री मुलायम सिंह यादव और श्री अखिलेश यादव के रूप में तब से यानी 1962 से 2019 तक कायम है। इसे लेकर यादवों में खुशी आम तौर पर देखी जाती है, लेकिन दूसरी जातियों में इसकी प्रतिक्रिया भी रहती है।
करहल से विधायक चुने जाने के बाद श्री अखिलेश यादव ने आज़मगढ़ से हासिल लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया जिसकी वजह से हो रहे इस उपचुनाव में यादवी दबदबे को यहाँ पाँच साल में दूसरी बार अग्निपरीक्षा देनी पड़ रही है।
इस अग्निपरीक्षा में कौन सफल होगा, कौन विफल, इसका फैसला आज़मगढ़ का मतदाता 23 जून को करेगा।

#धीरेन्द्र नाथ श्रीवास्तव

इस 23 जून को अपने पक्ष में करने के लिए हर उम्मीदवार जोर शोर से लगा है और अपनी अपनी जीत का दावा कर रहा है लेकिन इसमें से तीन उम्मीदवार अधिक चर्चा में हैं जिसमें दो यादव समुदाय के लाल हैं। यानी इस उपचुनाव में अपना दबदबा बनाए रखने के लिए यादव समुदाय के पास दो विकल्प हैं।
पहले विकल्प के रूप में हैं बदायूँ के पूर्व सांसद श्री धर्मेन्द्र यादव जो इस बार यहाँ से समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार हैं जिनके प्रचार में जिले के दस विधायकों के साथ समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अखिलेश यादव के नेतृत्व में कम अधिक पूरी पार्टी लगी हुई है।
दूसरे विकल्प के रूप में हैं भोजपुरी फिल्मों की दुनियां में गाज़ीपुर का नाम रोशन करने वाले सुपर स्टार श्री दिनेश लाल यादव निरहुआ हैं जो भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हैं, जिनके लिए भाजपा के कार्यकर्ता के रूप में मंत्री तक लगे दिखाई पड़ रहे हैं जिनकी हर सम्भव कोशिश रहेगी कि योगी टू की शुरुआत इस आम चुनाव में जीत से हो।
अगर इन दोनों में से कोई जीतता है तो यादवी दबदबे के इतिहास में एक नया नाम और जुड़ जाए तो कोई ताज्जुब नहीं होगा।
आज़मगढ़ से यादवी दबदबे को जो चार बार झटका लगा है, उसमें एक बार की क्रेडिट श्री सन्तोष सिंह के नाम है जो क्षत्रिय समाज से आते हैं।
शेष तीन बार झटका देने वाले मुस्लिम समुदाय के उम्मीदवार रहे हैं।
पहली बार यह दबदबा श्रीमती मोहसिना किदवई से पराजित हुआ था। दो बार अकबर अहमद डम्पी ने इस दबदबे को धूल चटाई थी।
जो आधार श्री अकबर अहमद डम्पी का था, वही आधार
लोकसभा की सदस्यता के लिए यहाँ से तीसरे प्रमुख दावेदार श्री गुड्डू अहमद जमाली का भी है जो आज़मगढ़ शहर के निवासी हैं और बहुजन समाजपार्टी पार्टी के उम्मीदवार हैं।

उपचुनाव को अपने पक्ष में करने के लिए सभी उम्मीदवार क्षेत्र में अपने अपने तरीके से निकल पड़े हैं लेकिन उपरोक्त तीनों यानी धर्मेन्द्र यादव, दिनेश लाल यादव निरहुआ और गुड्डू अहमद जमाली का प्रचार दिखने लगा है। फिर भी चुनाव को लेकर बहस केवल राजनीतिक हल्के तक समिति है। इस बहस में कुछ लोग यह बोल रहे हैं कि 2022 भी यादवी दबदबे के नाम रहेगा। इस दबदबे में किसका परचम बुलन्द रहेगा ?धर्मेन्द्र यादव का या दिनेश लाल यादव निरहुआ का ? इसे लेकर दोनों के समर्थकों के अपने अपने तर्क हैं।
इसे लेकर कुछ लोग यह भी बोल रहे हैं कि इस बार यादवी दबदबे को पांचवी बार झटका लगने वाला है। ऐसा होता है तो गुड्डू अहमद जमाली का नाम भी यादवी दबदबे को झटका देने वालों में जुट जाएगा।
क्या होगा ? इसे लेकर फिलहाल कोई टिप्पणी नहीं है। इसके लिए 23 जून का इंतजार करिए।

One thought on “आज़मगढ़ उपचुनाव : मुकाबला यादवी दबदबा और उससे मुक्ति के बीच

  • पुरुषार्थ सिंह

    धर्मेंद्र ठीक हैं. निरहुआ तो डांडू है

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