पुण्य स्मरण

अदम्य साहस व वीरता की प्रतिमूर्ति थे MAU के ब्रिगेडियर उस्मान

■ 03 जुलाई शहादत दिवस विशेष…

■ कोई जन प्रतिनिधि व प्रशासनिक अधिकारी नहीं ले सका इस गांव को गोद
■ विकास की बाट जोह रही है नौशेरा का शेर की जन्मभूमि

अख़बार का कोना : रणतूर्य

(शन्नू आज़मी)

घोसी (मऊ)। ” हज़ारो साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदवर पैदा “हिन्दुस्तान के मशहूर शायर अल्लामा एकबाल का ये शेर बिरले लोगों पर ही चरितार्थ होता है।उन्ही बिरले लोगों मे से एक थे इसी जनपद की माटी में पले बढ़े अमर शहीद ब्रिगेडियर उस्मान।जिन पर उक्त शेर पूरी तरह चरितार्थ होता है। जिन्होंने खुद से ज़्यादा अपने देश की चाहत की और देश भक्ति का जज़्बा लिये देश के लिए सन 1948 में आज ही के दिन यानी 3 जुलाई को अपने प्राणों की आहुति दे दी।और आज उस अमर शहीद की बरबस याद आ जाती है।
घोसी तहसील मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर दूर घोसी- मधुबन मार्ग से उत्तर दिशा में स्थित एक छोटे से गांव बीबीपुर को अमर शहीद ब्रिगेडियर उस्मान जैसे वीर सपूत को जन्म देने का गौरव प्राप्त है।ब्रिगेडियर उस्मान का जन्म 15 जुलाई सन 1913 को इसी गांव में मु०फारूक के घर हुआ था।इस परिवार की गिनती उस समय के बड़े जमींदार घरानों में हुआ करती थी। ज़मींदारी शानो शौकत में पलने बढ़ने के बावजूद भी बाप और बेटे दोनों में देश प्रेम व समाज सेवा की भावना कूट कूट कर भरी हुई थी। तभी तो पिता मु०फारूक ने सिपाही के रूप में पुलिस विभाग की नौकरी स्वीकारी और अपनी साहसिक कार्यप्रणाली से पूर्वी उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी कोतवाली बनारस के प्रभारी यानि कोतवाल के पद तक पहुंचे। उनकी साहसिक कार्यशैली व अदम्य साहस को देखते हुए अंग्रेज़ लेफ्टिनेंट ने उन्हें खान बहादुर के खिताब से नवाज़ा था। मु०फ़ारूक़ के तीन बेटों में दूसरे नम्बर के मु० उस्मान ने पिता के सानिध्य में रहकर बनारस के हरिश्चन्द्र कालेज से स्नातक की उपाधि हासिल कर भारतीय सेना में भर्ती हुए और कमीशन प्राप्त कर ब्रिगेडियर के पद तक पहुंचे।जबकि बड़े भाई मु० सुब्हान टाइम्स ऑफ इंडिया में उप सम्पादक बने व छोटे भाई मु० गुफरान भी भारतीय सेना का हिस्सा बनकर ब्रिगेडियर का पद प्राप्त किया। गौरतलब है कि सन 1947 में आज़ादी के समय मज़हबी आधार पर देश विभाजन के मद्देनज़र पाकिस्तानी सेना के उच्चाधिकारियों द्वारा मुस्लिम सैन्य अधिकारियों को बड़े ओहदे का लालच देकर पाकिस्तानी सेना में शामिल किया जा रहा था। पाकिस्तानी आर्मी चीफ जैसे सर्वोच्च पद का लालच ब्रिगेडियर उस्मान को दिया गया लेकिन देश भक्ति का जज़्बा लिए इस सपूत ने पाक की नापाक पेशकश ठुकरा दी।और ‘जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ की भावना लिए हुए कश्मीर की नौशेरा पहाड़ी से पाक कबायलियों को अपने पराक्रम से खदेड़ते हुए 3 जुलाई1948 को शहीद हो गये।ब्रिगेडियर उस्मान अदम्य साहस व वीरता की प्रतिमूर्ति थे। उनके इस अदम्य साहस के लिये उन्हें “नौशेरा का शेर”खिताब से नवाजा गया। बाद में भारत सरकार द्वारा इस अदम्य साहस व वीरता की प्रतिमूर्ति ब्रिगेडियर उस्मान को महावीर चक्र (मरणोपरांत) से सम्मानित किया।
आज उनकी शहादत के सात दशक बीत जाने के बाद भी उनका गांव बदहाली के दौर से गुजरते हुए अपने विकास की बाट जोह रहा है कि काश कोई सांसद, विधायक व प्रशासनिक अधिकारी इस गांव को श्रद्धांजलि स्वरूप गोद ले ले और इस गांव का समुचित विकास हो सके।

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