कोरोना संकट : कुम्हारों को भूखमरी दे गया लॉकडाउन
अखबार का कोना : जनसंदेश टाइम्स
■ मिट्टी के बर्तनों की बिक्री पर कोरोना ने ढाया कहर
■ ढूढ़े नहीं मिल रहा खरीददार, मंडरा रहा भूखमरी का संकट
(मो.अशरफ)
मऊ। मिट्टी के बने बर्तनों का प्रयोग प्राचीन समय से होता चला आ रहा है, लेकिन आज के युग मे इनकी उपयोगिता कम होने के साथ-साथ यह विलुप्त भी होती जा रही है, ऐसे में जब प्रधानमंत्री मोदी के मेक इन इण्डिया के नारे से इस व्यवसाय ने उद्योग के रूप में स्थापित होने की कोशिश की और अचानक देश लाकॅ डाउन हो गया तो इसकी स्थिति पहले और दयनीय हो गयी। आज कोरोना ने मिट्टी से गुल्लक, दीया, सुराही, घड़ा, ढकनी, पुरवा आदि अन्य बच्चों का खेल का सामान चाक पर बनाने से पहले ही न सिर्फ कुम्हारों के सपनों को ढेर कर दिया बल्कि मिट्टी को मिट्टी ही रहने दिया। ऐसे में जब चाक ठहर जाएगी, कुम्हार का हाथ मिट्टी को कोई रूप नहीं देगा तो दो जून की रोटी के लिए तरसना ही होगा। लॉकडाउन के चलते मिट्टी के बने बर्तनों की खरीददारी नहीं हो पा रही है, जिससे कुम्हार भूखमरी के कगार पर पहुंच गये हैं। कुम्हारों की जिदंगी में कोरोना की ऐसी मार पड़ी है कि अब इन्हें संभलने में समय लगेगा। लाॅकडाउन में इनकी दिनचर्या पर काफी असर पड़ा है। गर्मी शुरु होते ही लोग मिट्टी के बर्तनों एवं प्यास बुझाने व दीया जलाने जैसी इत्यादि सामाग्री की खरीददारी कर उसका प्रयोग करते थे। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। कोरोना का साया पड़ने से अप्रैल व मई माह में बिकने वाली मिट्टी के बर्तनों खरीददारी नहीं हो सकी, जिससे कुम्हार अपनी बेबसी पर आसूं बहा रहे हैं। मिट्टी के बर्तन बेचने वालों का हाल जानने जब उनके बनाये उत्पाद को बेचने वाले नगर के रोडवेज पर स्थित फुटपाथ पर स्थित मिट्टी के बर्तन की दुकान पहुंच कर उनके हालातों के बारे में जानकारी ली गई तो नगर के सहादतपुरा निवासी कुम्हार पूनम देवी ने बताया कि पिछले कई वर्षो से रोडवेज पर मिट्टी का बर्तन बेचती हैं और हर साल मिट्टी के बर्तनों की खरीददारी लोग करते थे, लेकिन इस आधुनिक दौर में प्लास्टिक स्टील आदि के बर्तनों का उपयोग ज्यादा कर रहे है, इसलिए इस मिट्टी के बने बर्तनो की बिक्री कम है, परन्तु कोरोना की वजह से तो हालात बद्द से बद्दतर हैं । लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी इनका उपयोग ज्यादातर करते देखा जा सकता है और शहर के कुछ जगहों पर पेयजल रोड के किनारे आज भी मिट्टी के घड़ो का प्रयोग किया जाता है और पानी पिलाने का कार्य किया जाता है। कहा कि मिट्टी के बने गुल्लकों का भी उपयोग इसलिए कम हो गया है, क्योंकि गुल्लक भी नए जमाने के आ गए हैं, लेकिन आज भी मिट्टी के गुल्लक ग्रामीण क्षेत्रों में अपना दबदबा बनाए हुए हैं। महिला ने बताया कि रोजमर्रा की जिंदगी में इन्हीं बर्तनों को बेचते-बेचते बीत जाती है और त्यौहारो में कुछ बिक्री होने से इजाफा तो हो जाता है,लेकिन इतना नहीं कि उनका परिवार एक महीना गुजारा कर सके। बिक्री नहीं होने से हम लोग भूखमरी के कगार पर आ गये हैं। कारण लाॅकडाउन के चलते लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं, जिससे खरीददारी नहीं होने से मिट्टी के बर्तनों पर खतरा मंडरा रहा है। कुछ लोग ही पूजा पाठ के लिये दीये की खरीददारी कर रहे है, जिससे मिलने वाले पैसे से हमारे परिवार का खर्च चल जा रहा है। अगर ऐसा ही रहा तो हमारी जिदंगी और भी खराब हो जायेगी। महिला ने बताया कि घड़ा 30 से 80, गोल्लक 10 से 70 व दीया 10 रुपये इत्यादि मिट्टी के बर्तन सही दामों पर बेचा जा रहा है। उसके बाद भी कोई ग्राहक दुकान पर झांकने तक नहीं आ रहा है। जिससे स्थिति और भी दयनीय होती जा रही है। कहा कि अगर मिट्टी के बर्तनों की बिक्री नहीं हुई तो लाखों की सामाग्री नुकसान हो जायेगा। कमोबेश यही हाल हर छोटे-बड़े एवं फुटपाथ पर रहने वाले दुकानदारों का है।





