यदि आप सोचते हैं कि आप बीमार हैं तो आप निश्चित बीमार हो रहें हैं… इस साइको से बचिए..!
@अरविंद सिंह #motivational #story
“एक महिला थी जिसे ब्रेस्ट कैंसर था, यह कैंसर लास्ट स्टेज पर था. देश ही नहीं, दुनिया भर के चिकित्सक और मेडिकल एक्सपर्ट ने उसके अगले तीन महीने में मर जाने का दावा किया. लेकिन वह महिला थी कि जीना चाहती थी. वह मरने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी. जब भी कोई कहता कि यह अगले तीन महीने में की मेहमान है. तो इससे विचलित नहीं होती बल्कि निर्भय होकर सोचती कि जब मुझे जीना है तो मेरे मरने की बातें क्यों की जाती है. उसकी जीने की जिजीविषा है.
फिर एक दिन वह अकेले जंगल की तरफ एकांतवास में चली गई और एक झोपड़ी में रहने लगी. सोते- जागते, हर समय एक ही ख्याल उसके मस्तिष्क में बना रहता कि- उसे जीना है. यह कैंसर,उससे उसका जीवन नहीं छिन सकता है. यह बीमारी उसके साहस से बड़ा नहीं है. वह ठीक होकर रहेगी. जीवन के प्रति सकारात्मक सोचना और बार- बार एक ही दिशा में सोचने जाने पर उसके भीतर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होने लगा. उसके भीतर कुछ रासायनिक बदलाव होने लगें. उसे जीवन से प्रेम और मोह बढ़ता गया. वह भविष्य की योजनाओं को लेकर ख्वाब बुनने लगी. वह सोचने लगी कि- वह अब ठीक हो रही है. वह रोजाना ठीक हो रही है. उसका कैंसर अब कम होता जा रहा है. बहुत तेजी से कम हो रहा है.
डेढ़ महीने बाद जब एक दिन अचानक वह अपने ब्रेस्ट को स्पर्श कर ध्यान से देखी तो उसे कुछ बदलाव महसूस हुआ. उसे यह बदलाव बहुत सार्थक लगा.और लगभग दो महीने बाद जब वह महिला, कैंसर की वर्तमान स्थिति की जांच कराने हास्पिटल पहुंची तो चिकित्सक इन अप्रत्याशित परिणामों को देखकर उछल पड़ा और मारे खुशी के उस महिला को चुम लिया, बोला- मैं आश्चर्य चकित हूँ, तुम ठीक हो रही हो, तुम्हारा कैंसर नार्मल की तरफ बढ़ रहा है, लेकिन यह कैसे संभव हो सका. मेडिकल साइंसेज तो ऐसे परिणाम की उम्मीद नहीं करती. और एक दिन वह महिला पूरी तरह से ठीक हो गई.
जब चिकित्सकों ने पूछा कि तुम ठीक कैसे हुई तो उसने कहा कि-इच्छाशक्ति से, जिजीविषा से और सकारात्मक साहस से. मैंने इस दरमियाँ कभी भी मन में नकारात्मक ख्याल आने ही नहीं दिया, जब भी आते, तुरंत सकारात्मक सोचने लगती. और आज असंभव और असाध्य रोग भी ठीक हो गया और मैं आप के सामने हूँ.
चिकित्सा टीम ने जब रिसर्च किया तो पाया की अदम्य साहस और जिजीविषा से, सकारात्मक सोच की शक्ति से, इस महिला के भीतर धीरे-धीरे एक रासायनिक बदलाव होने शुरू हो गयें और शरीर में ऐसी एंजाइमों का स्राव होने लगा जो कैंसर के कीटाणुओं से भी लड़ने लगें. और उसे मारने लगे. बार -बार एक ही दिशा में सोचने और चिंतन से मस्तिष्क बहुत शक्ति शाली ढंग से कार्य करने लगा. वैसे भी पूरे शरीर का नियंत्रण ब्रेन के हाथ में होता है. और ब्रेन मजबूती से एक ही प्रकार के ख्याल और सकारात्मक सोच से घिरने लगा. और परिणामस्वरूप शरीर ने स्वत: अपना इलाज कर लिया.और कैंसर को भी मात दे दिया.”
दरअसल मसहूर आस्ट्रेलियाई लेखिका ‘रॉन्डा बर्न’ की एक चर्चित किताब है ‘रहस्य- दी सीक्रेट’ यह किताब ‘ला आफ अट्रेक्शन’ यानि आकर्षण की सिद्धांत पर आधारित है. जिसमें सोचने और विचारों की ताकत को बड़े ही सैद्धान्तिक ढंग से समझाया गया है. वैसे भी शब्दों के चमत्कार से हम सभी परिचित हैं. किसी चीज की बार-बार पुनरावृत्ति से वे बदलाव हमारे आस महसूस होने लगतें हैं. हमारे यहाँ कहा गया है कि- शब्द ब्रह्म है.!शब्द अविनाशी है..!! शब्द नाद हैं..!!! इस लिए बार-बार एक ही और एक ही तरह के विचार जब आप के मन – मस्तिष्क में आने लगते हैं तो वह एक निश्चित क्वांटम की ऊर्जा होती है. प्रकृति में कहीं भी उस क्वांटम की एनर्जी जरूर होगी और जहाँ वह मिल गयी एक नई परिघटना हो गई. इस लिए जब भी बुरे विचार आप के मन में आते हैं तो आप का एक प्रकार से बुरे विचारों के प्रति आकर्षण बढ़ता जाता है.और वैसा होने लगता है जैसा आप ने सोचा था. इसलिए जब भी नकारात्मक विचार आए, तुरंत ऐसे विचारों को छोड़ दे, अगर उसको ग्रहण नहीं करेगें तो फिर वह ब्रह्मांड में चला जाएगा. और अच्छे विचारों के आने पर अच्छे विचारों का क्वांटम ब्रह्माण्ड से उसी तरह के क्वांटम की एनर्जी की तलाश करते हैं. इस लिए कोरोना काल में बहुत से लोग रोगों से बीमार हो रहें हैं, बहुत से लोग बीमार को देखकर बीमार हो रहें हैं. बहुत से लोग भय से बीमार हो रहें हैं, बहुत से लोग भविष्य को सोचकर बीमार हो रहें हैं. वे सारे लक्षण जो किसी मरीज में मिल रहें और उसकी मौत हो जा रहीं हैं तो उस लक्षण को अपने भीतर भी बार बार खोजने का प्रयास कर रहे हैं. और सामान्य जीवन को असामान्य बनाकर खुद को परेशानी में डाल रहे हैं. यह एक तरह की मनोवैज्ञानिक समस्या है. इसको पाजीटीव होकर हम ठीक कर सकते हैं.
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(लेखक अरविन्द सिंह शार्प रिपोर्टर मासिक पत्रिका के सम्पादक हैं)