चर्चा में

मीडिया की सुलगाई भट्टी में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तप रही है

■ डॉ. अम्बरीष राय

मीडिया की सुलगाई भट्टी में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तप रही है. कोरोना परिवार का आवारा लड़का कोविड- 19 सीरियल किलर बन गया है. 19 की अधपकी उमर में क़ातिल बना ये कोविड मीडिया की मंडी में चीन के वुहान सा सुर्खियां बटोर रहा है. सोशल मीडिया की पोस्टें ‘मदद करो की’ मर्मान्तक चीखों और गुहारों से भीगी पड़ी हैं. सरकार बैकफुट पर है तो स्वास्थ्य समस्याएं फ्रंटफुट पर खेल रही हैं. ज़िन्दगी के विकेट गिरते जा रहे हैं. ये और बात है कि अंपायरों की बेईमानी के चलते सारी विकटें कोविड- 19 के हिस्से में डाल दी जा रही हैं. जबकि नियमित बीमारियां भी विकेट ले रही हैं. इन्हीं बीमारियों के डर से तमाम अस्पताल तमाम कालखण्ड में बनवाए गए.

मौजूदा निजाम बदतर स्वास्थ्य सेवाओं के चलते आम लोगों की आलोचना के केंद्र में है. अपने बेहतरीन मीडिया प्रबंधन के चलते पिछले साल योगी सरकार बिना बड़े आक्षेप के महामारी से निकल गई थी. एक बड़ा कारण ये भी था कि ख़तरा उतना बड़ा था नहीं, जितना बड़ा प्रोजेक्ट किया गया था. लिहाज़ा बीमार उस मात्रा में अस्पताल तक नहीं पहुंचे. और जब पहुंचे नहीं तो मार्केटिंग करने वाले अपना नंबर बना गए. अबकी बार तस्वीर थोड़ी अलग है. तस्वीर के रंग आँसुओं में डूबे हुए हैं. तस्वीर से दुःख, दर्द और संताप बह रहा है. अस्पताल पहुंचने वाले बेड नहीं पा रहे हैं. पूर्व थल सेनाध्यक्ष, गाजियाबाद से सांसद और मौजूदा केंद्रीय मंत्री वी के सिंह डीएम से ट्वीट ट्वीट खेल रहे हैं. लेकिन योगी राज में एक अदद बेड का इंतिज़ाम उनकी क्षमता से बाहर है. दो जन्मतिथि वाले वी के सिंह का एरोगेंस इतना है कि उल्टे ट्वीट पर घेरने वालों की मंशा और मस्तिष्क पर सवाल उठा रहे हैं.

बहरहाल अस्पताल और योगी सरकार को लेकर फैक्ट्स जब चीखने लगे तो जोगी बाबा के समर्थक बौखला गए. भाजपा की पेड और अनपेड ब्रिगेड ने पूर्व मुख्यमंत्री मायावती और अखिलेश यादव को टॉरगेट पर लेना शुरू कर दिया है. सोशल मीडिया में लखनऊ के अम्बेडकर पार्क में बने पत्थर के हाथी चिंघाड़ने लगे हैं. बहुतों की बहिन जी मायावती को हाथी की गर्जना में लापता करने का खेल शुरू हो गया है. तो अखिलेश यादव को उनके कार्यकाल में बने भव्य हज हाउस की दीवारों पर टाँगकर अस्पताल की कमी का ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है. पूछा जा रहा है कि हज हाउस बनाने वाले अखिलेश यादव हों या पत्थरों के हाथियों से लखनऊ को चाक कर देने वाली मायावती हों, अस्पताल पर कैसे बोल सकते हैं. जोगी बाबा जैसे हिन्दू हृदय सम्राट पर टिप्पणी कैसे कर सकते हैं. जोगी बाबा के समर्थकों की एक पेड लाइन तो ये अभियान भी शुरू कर चुकी है कि कोविड की आड़ में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ़ षड़यंत्र रचा जा रहा है. इसीलिए ख़बरों का केंद्र लखनऊ बनाया गया है. अब षड़यंत्र तो अंदर के लोग ही करते हैं, इसलिए ये भाजपा और उसके लोग जानें. हम जैसे तो बस तथ्य की बात करते हैं.

और तथ्य ये है कि योगी आदित्यनाथ हों चाहे उनके पूर्ववर्ती अन्य भाजपाई मुख्यमंत्री किसी ने भी लखनऊ में कोई ढ़ंग का एक अस्पताल नहीं बनवाया. और बेढंगा बनवाया हो, ऐसा भी कोई नज़र नहीं आ रहा है. और झूठे तथ्यों, मनगढ़ंत किस्सों के आधार पर आज जिन लोगों का मज़ाक उड़ाने की कोशिश हो रही है, उनके हिस्से में उपलब्धियां हैं. बात लखनऊ के हिस्से की करें तो अंग्रेजों ने किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज और बलरामपुर का अस्पताल बनवाया. कांग्रेस के राज में संजय गांधी पीजीआई बना. मुलायम सिंह ने लोहिया अस्पताल बनवाया. मुख्यमंत्री रहते मायावती ने टीएस मिश्रा मेडिकल कॉलेज बनवाया. अखिलेश यादव ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में लोहिया अस्पताल का विस्तार कर इसे आयुर्विज्ञान संस्थान में तब्दील कर दिया. अखिलेश यादव ने कैंसर इंस्टीट्यूट भी बनवाया. प्राइवेट मेडिकल कॉलेज इरा, इन्ट्रीगल और कॅरियर जैसे अल्पसंख्यक संस्थान भी उनके मुख्यमंत्रित्व काल की प्रेरणा से ही बने.

भारत के चहेते प्रधानमंत्री और भाजपा के शिखर पुरूष अटल बिहारी वाजपेयी लम्बे समय तक लखनऊ के सांसद रहे, लेकिन एक अदद अस्पताल की ज़रूरत उन्होंने नहीं समझी. लखनऊ के मौजूदा सांसद राजनाथ सिंह केंद्र में ताक़तवर मंत्री हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे. लेकिन अस्पताल उनके एजेंडे में भी नहीं रहा. कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्ता भी भाजपा के मुख्यमंत्री बने लेकिन उन्होंने भी अस्पताल को अपनी प्राथमिकता में नहीं रखा. यशस्वी मुख्यमंत्री गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत योगी आदित्यनाथ जी महाराज 4 साल से यूपी का राजपाट सम्हाल रहे हैं. लेकिन अवध को एक और अच्छा अस्पताल मिल सके, इसके लिए वो कभी फिक्रमंद नहीं दिखे. जोगी बाबा अस्पताल का महात्म्य खूब समझते हैं, लिहाज़ा गोरखपुर में अपने स्वामित्व वाले गोरक्ष पीठ के बन रहे अस्पताल के लिए सक्रियता बनाए रखते हैं. पूरे पूर्वांचल और मध्य उत्तर प्रदेश के माइग्रेशन के बोझ तले हांफ रही लखनऊ की स्वास्थ्य व्यवस्था और लखनऊ बस राम भरोसे है. और मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पश्चिम बंगाल जाकर जय श्री राम का नारा लगवा रहे हैं. बेहद अफ़सोस की बात है कि राष्ट्रवाद के इस भारतीय संस्करण में अस्पताल वरीयता में नहीं है. लेकिन जिन लोगों ने इस क्षेत्र में कुछ काम किया है, उनका उपहास करना शर्मनाक है. लेकिन शर्म आती कहाँ है साहेब!

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