रचनाकार

महंगाई डायन खाये जात है

बहुत मशहूर हुआ था यह गाना……

सखी सैयां तो खूब ही कमात है
महंगाई डायन खाये जात है -2

हर महीना उछलै पेटरोल, डीजल का भी बढ़ गया मोल
शक्कर का भी बढ़ गया मोल
उसमें बासमती चावल धान मारी जात है
महंगाई डायन खाए जात है

सोयाबीन का हाल बेहाल गर्म से पिचके हैं गाल
गिर गए पत्ते पक गए बाल
अरे सोयाबीन का हाल बेहाल, गर्म से पिचके हैं गाल
गिर गए पत्ते पक गए बाल, और मक्का जी भी खाए गई मात है
महंगाई डायन खाये जात है

अरे कद्दू की हो गई भरमार, ककड़ी ने कर दई हाहाकार
मटर भी तो लागे प्रसाद, और आगे का कहूँ ,कही नहीं जात है
महंगाई डायन खाये जात है

ऐ सैयां, ऐ सैयां रे!
मोरे सैयां रे, खूब कमाय सैयां जी
अरे कमा कमा के मर गए सैयां
पहले तगड़े तगड़े थे, अब दुबले पतले हो गए सैयां
अरे कमा कमा के मर गए सैयां
मोटे सैयां, पतले सैयां
अरे सैयां मर गए हमारे इसी आये गए में
महंगाई डायन खाये जात है

सखी सईंया तो खूब ही कमात हैं
महंगाई डायन खाये जात है

और साहब गाना क्या था, अपने आप में जैसे देश की जनता की पूरी एक आवाज था। पूरे देश के अंदर महंगाई का दौर था और लोग परेशान थे, ऐसे समय में पीपली लाइव फिल्म का ये गाना जब आया, तो लोक भाषा और लोकगीत के कारण, और इसमें निहित भावों के कारण यह गाना जनता में बहुत जल्दी लोकप्रिय हो गया। क्योंकि लोकभावना की अभव्यक्ति इस गाने में मौजूद थी।

परंतु कहते हैं न कि भूतकाल बहुत ही सुंदर होता है, और उसकी सुखद यादें हमेशा याद आती रहती हैं। इस गाने ने सत्ता दिलाने में भी बहुत मदद की थी उस समय। और बहुत सारे नेताओं ने जब अपने चुनाव की कैंपेनिंग की, तब उस समय इस गाने को खूब बजाया जाता था, और लोग भी एक राहत की उम्मीद में अपने गमों को भुलाकर झूम-झूम कर इस गाने को गाने लगते थे …..महंगाई डायन खाए जात है। चुनाव में मीडिया भी साथ दे रहा था और लग रहा था कि जैसे जनभावनाओं को मीडिया आवाज़ बनकर उभार रहा है।

अपने देश में जो बहुत सारे खोजी पत्रकार हैं, दिन-रात खबरों को खोज- खोज कर पकड़ने वाले वे इस महंगाई की महाभारत में शूरवीर जैसे नजर आने के बजाय खातूसयाम जी हो गए हैं। किसी पेड़ की डाल पर बेताल से लटके हुए हैं, लेकिन एक मजेदार बात बताता हूँ आपको कि आजकल किसी भी टीवी चैनल पर महंगाई ढूंढने से भी नहीं मिल रही है। यह बिलकुल अनमोल रत्न है चर्चाओं में । आपको चीन-पाकिस्तान खूब मिलेगा, लेकिन मजाल है कि कोई पत्रकार गलती से रावण के शव की तरह श्रीलंका में जाकर महंगाई की क़ब्र को ढूंढकर कोई प्रोग्राम बनाए। मुझे तो लगता है कि जैसे इस देश से लोकतंत्र गायब हुआ है, ठीक वैसे ही अपने देश से महंगाई एकदम गायब हो गई। भक्ति की ऐसी इंजेक्शन लगाई गई है कि अब कोई खोजी पत्रकार, खोजकर भी महंगाई की कोई खबर ले आए, तब भी उस खबर को दिखाया नहीं जाएगा। ऐसी खबरों से कोरोना से भी भयानक बीमारी होने का डर जो है। चाहे तो ऐसा पत्रकार भरी सभा में जाकर अपनी पत्रकारिता छोड़ने का ऐलान ही क्यों न कर दे। पर सच और भगवान हमारे आपके जैसे तुच्छ प्राणियों को दर्शन कैसे दे सकते हैं।

वैसे भी सच की कोई कीमत तो होती नहीं है और आजकल तो जरूरत भी नहीं है। भाई सच बोल कर किसी को मरना थोड़े ही है । सच बोलने से देश में अस्थिरता आ सकती है, आला कमान का पारा चढ़ सकता है। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट कुपित होकर के आपके खाते खंगाल सकता है। और कुछ नहीं तो कम से कम आपको परेशान तो कर ही सकता है, फिर चाहे आपने टैक्स की चोरी की हो या न भी की हो। अपनी सारी नीतियों का जिनके पीछे छिपा हुआ सच होता है, जनता को दिखाया जाता है कि कुछ डिपार्टमेंट स्लीपरसेल की तरह काम करते हैं, और जैसे ही किसी ने सरकार के विरुद्ध कुछ भी कहा तो यह स्लीपरसेल जागृत कर दिए जाते हैं, और दुश्मन को दबोच लेते हैं अपना मिशन पूरा करते हैं। इन स्लीपर सेल को हमारे देश के अंदर बड़ी ही इज्जत की निगाह से देखा जाता है। मैं किसी पार्टी के आई टी सेल की बात नहीं कर रहा हूँ जो अक्सर पूछता है कि सत्तर साल में नेहरू ने किया क्या है ? साला बेचने के लिए कुछ तो बनाते । भले ही कोई खा न पाये …पर हमने अपने स्मारक शौचालय बनवाए हैं। जिनमें कई जगह तो खोजने से पानी नहीं मिलेगा , पर जानते हैं क्यों ? क्योंकि हम चाहते हैं देश तरक्की करे, लोग पानी बचाएं और विकसित देशों की तरह टॉइलेट पेपर का इस्तेमाल करें।

कौटिल्य ने कहा था कि सत्ता को चलाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद सभी का प्रयोग करना चाहिए। और हम तो अपनी प्राचीन संस्कृति के पुराने भक्त हैं। चाहे हमें विधायक खरीदने पड़े, चाहे किसी का सीडी कांड करवाना पड़े, चाहे किसी के पीछे ई डी, सीबीआई लगानी पड़े , या फिर इन सभी को मिलाकर आदमी को समझाना पड़े कि चोंच मत खोल ….. हम राष्ट्र की सुरक्षा के लिए हर काम करते हैं।

मन समर्पित, तन समर्पित,
और यह जीवन समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।

जब -जब इस गीत को सुनता हूँ, तो लगता है कि मैं भी इस देश के लिए कुछ समर्पित करूँ। लेकिन जब चारों तरफ में देखता हूँ तब पाता हूँ कि मैं कुछ भी समर्पित नहीं कर सकता, अपने पल्ले है भी क्या ? अगर इस समय समर्पण के लिए सबसे जरूरी कोई चीज है, तो वह है हमारी चुप्पी। आजकल देश की रक्षा का भार, देश की समस्याओं का भार, और इस देश में बढ़ती हुई महंगाई को उगते हुए राष्ट्रवाद और राष्ट्र सेवा के रूप में स्वीकार करने के अलावा हमारे पास कोई चारा बचा ही नहीं है।

और अगर आप भूल से भी महंगाई, नए राष्ट्रवाद, नई राष्ट्र सेवा के खिलाफ अगर कुछ भी बोलते हैं तो समझ लीजिए कि आप गौमाता नहीं हैं। भले ही गौमाता उत्तरभारत में पूजनीय हो लेकिन चुनाव में बीफ खिलाने का वादा करने की केरल में तो पूरी छूट है। आपको आपकी नानी याद दिलाने के लिए हमने साम, दाम, दंड, भेद से भी अधिक कल्याणकारी नीति निर्धारक योजना बना लिए हैं, आप बहुत जल्दी एक सुखद यात्रा पर जाकर स्वर्ग का आनंद ले सकते हैं, इस बात की संपूर्ण व्यवस्था के लिए मुफ्त में सरकारी खर्चे पर सहायता मौजूद है। आप जल्द अपनी फोटो पर पड़ी माला के मोहक पुष्पों की खुशबू का आनद उठा सकते हैं ……अब फैसला आपको करना है कि देश हित में चुप्पीदान या स्वर्ग प्रस्थान।

गुप्त सूत्रों से यह भी पता चला है कि शीघ्र ही महंगाई डायन खाए जात है गीत को देशद्रोही गीतों की श्रेणी में डालकर, सभी जगह से हटाने के लिए सरकार कानून बना सकती है। महंगाई बढ़ने के बावजूद भी, फिर वह चाहे पेट्रोल के दाम हों, डीजल के दाम हों, खाने के तेल के दाम हों , अथवा रेल के बढ़े हुए किराए हों, सभी इस देश की भलाई के लिए उठाए गए कदम हैं। देश के बड़े-बड़े कलाकारों, खिलाड़ियों और सम्मानित लोगों को महंगाई के मुद्दे पर चुप्पी साधे रखने के लिए भारत के “मौन रत्न” का अवार्ड देने के लिए संसद के अधिवेशन में एक प्रस्ताव भी पारित किया जाना है।

पिछले 70 सालों तक “महंगाई डायन खाए जात है” गाना सही रहा होगा लेकिन वर्तमान दौर में इस गाने के कारण समाज के अंदर कटुता ,वैमनस्य और राष्ट्रवाद की भावना के खिलाफ स्वर उठने की पूरी संभावना है, इसलिए इस गाने को सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से पूरी तरह से हटाने का भी प्रस्ताव है। भले ही कोई आदमी कोकीन के साथ पकड़ लिया जाए, बलात्कार करता हुआ पकड़ लिया जाए, सीडी कांड में शामिल हो लेकिन यह सब राष्ट्रवाद के लिए होना चाहिए। महंगाई अब इस देश के लिए महबूबा है और देश की तरक्की में अपनी अहम भूमिका निभा रही है, इसलिए कुछ धार्मिक संगठनों ने यह निर्णय लिया है कि महंगाई देवी का भी एक मंदिर बनाया जाए और उसकी विधिवत आरती गा कर पूजा की जाए। देश के महान गायक इसे अपना –अपना स्वर देने की होड में हैं क्योंकि एक ट्वीट का सत्तर परसेंट कैश वे भी लेते हैं।

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