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हमारी आजादी : सूरत तो बदली मगर सिरत नहीं बदली

(राज बहादुर सिंह)
मर्यादपुर। हम 69 वें गणतंत्र दिवस मनाने की ओर अग्रसर है। यह हमारे देश के लिए गौरव की बात है। ब्रिटिश शासन से तो देश लंबे संघर्षों के बाद 15 अगस्त 1947 को आजाद हो गया और उस समय देश में व्याप्त असमानता के लिए दलितों, औरतो, जनजाति लोगों, किसानों ने भी अपने जीवन में जिस गैर बराबरी का अनुभव किया वह संघर्ष भी शामिल था। संविधान लिखने वाले लोग भी इस संघर्ष से अवगत थे। इन संघर्षो के हिस्सा रहे आधुनिक मनु या संविधान के जनक बी0 आर0 अम्बेडकर ने ऐसी दृष्टि या लक्ष्य रखा जिससे भारत मे अस्पृश्यता अपराध हो, और समाज मे अलग थलग बड़े समुदायों को मुख्य धारा में लाया जाए।
भारतीयों की ओर से सर्वप्रथम भारतीय संविधान बनाने की पहल स्वराज विधेयक(1896) से मिली जिसे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के निर्देशन में तैयार किया गया था। बाद में 1922 ई0 में महात्मा गांधी द्वारा यह उदगार ब्यक्त किया गया कि भारतीय संविधान भारतीयों की इच्छानुसार ही होगा। 1924 में मोतीलाल नेहरू द्वारा ब्रिटिश सरकार से मांग की गयी कि भारतीय संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा का गठन किया जाय,अन्ततः संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार वेनेगल नरसिंह राव और प्रारुप समिति के अध्यक्ष बी0 आर0 अम्बेडकर के अथक प्रयासों से हमारा संविधान 2 वर्ष 11 माह 18 दिन में तैयार हो 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
लेकिन गणतंत्र के छः दशको से ज्यादे समय गुजर जाने के बाद भी आम आदमी के तरफ से चीखते सवाल “कितने आजाद है हम?” आजादी का मतलब क्या है? क्या आजादी एक खास वर्ग की स्वार्थपूर्ति का माध्यम भर बन कर रह गई हैं?.की गुंज सुनाई पड़ती है और जब जब आजादी के जलसे करीब आते है, ये प्रश्न और मुखर हो उठते हैं।
विडम्बना यह है कि आजादी के छः दशकीय सफर के बाद भी नतीजा ढाक के तीन पात जैसा ही है। कृषि प्रधान देश में कर्ज में डूबा किसान आत्महत्याए करने को विवश हैं, कुपोषण, बेरोजगारी, युवा असन्तोष, अपराध और अराजकता में वेतहाशा वृद्धि हुई है। वर्तमान स्थिति में कितना मौजू है ये शेर ‘सकरी जमी को घेरे है आखिर, चंद घराने क्यों”, ”नाम नबी का लेने वाले, उल्फत के बेगानें क्यों”
हमें इस सूरत को बदलना होगा और आजादी की सार्थकता के लिए प्रयत्न करने होंगें। प्रयास ऐसे होने चाहिए कि आजादी दिखे भी और महसूस भी हो । इसका जज्बा भी जनता में दिख रहा है,किन्तु क्या यह जज्बा छह दशक से भी ज्यादा पुरानी “कुंद आजादी”को धार दे पाएगा। इन सुलगते सवालो का जबाब तो भविष्य में ही मिल पायेगा।

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