कवि बेख़बर देहलवी की नजर में : नेता जी का दौरा
आजकल हम सभी देखते है कि अगर हमारे क्षेत्र मै कोई नेता आता है तो उसके लिये आम जनता को कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है,रोड बंद रास्ते बंद।
दौरे से पहले उस शहर को कागजों के फुलरूपी फुलो से सजा दिया जाता है जिससे स्थानिय प्रशासन को शाबाशी मिले।
इन्ही विषयों को चोट करती और उजागर करती बेख़बर देहलवी की ये रचना-
सुबह सुबह अपने शहर को देखकर मै हैरान था !
सब कुछ बदला हुआ सा देखकर मै परेशान था !!
मुश्किल था उन गन्दी सड़को पर चलने के लिये
मासुम बचपन मजबुर है वहा पर पलने के लिये !
बदबुदार नालो के बीच रहना उनकी मजबुरी थी
ये रातो रात साफ हो गये ये किसका ऐहसान था !!
सुबह सुबह अपने शहर को देखकर मै हैरान था !
सब कुछ बदला हुआ सा देखकर मै परेशान था !!
आज सारी सड़के साफ और सजायी हुयी थी
फुलो के गमलो और रोशनी मे नहायी हुयी थी !
सड़के मुझे कह रही थी हम सब है बहुत खुश
किसने मेरा स्वरुप बदला वो कौन कद्रदान था !!
सुबह सुबह अपने शहर को देखकर मै हैरान था !
सब कुछ बदला हुआ सा देखकर मै परेशान था !!
मै समझ नही पा रहा था खैर जो भी हो मगर
कभी न दिखने वाला प्रशासन भी आया नजर !
सड़क पर पलने वालो का घर था आज गायब
कहा होगे वो मासुम इस बात से मै अन्जान था !!
सुबह सुबह अपने शहर को देखकर मै हैरान था
सब कुछ बदला हुआ सा देखकर मै परेशान था !!
कुछ सड़के सीलबंद और कुछ जाम से बेहाल
जनता के प्रतिनिधि मस्त और जनता बदहाल !
जो उस जाम के चलते अस्पताल न पहुच सका
आखरी साँस ली वो बुढ़िया का बेटा जवान था !!
सुबह सुबह अपने शहर को देखकर मै हैरान था !
सब कुछ बदला हुआ सा देखकर मै परेशान था !!
गुलाबो से सजाया हुआ था एक बेहतरीन मंच
स्वागत और वादो के भाषणो का चला प्रपंच !
जो फुल गले मे थे अब बेकार रोड पर पड़े थे
हर फुल पुछ रहा है हमारा ये कैसा सम्मान था !!
सुबह सुबह अपने शहर को देखकर मै हैरान था !
सब कुछ बदला हुआ सा देखकर मै परेशान था !!
कवि बेख़बर देहलवी
बलिया (उत्तर प्रदेश)
[email protected]