रचनाकार

शब्द मसीहा की कहानी : चाकी

( शब्द मसीहा केदारनाथ )

मोहन छः महीने कालेज में पढ़ाई करने के बाद अपने कस्बेनुमा गाँव में लौट रहा था . वह इस गाँव का पहला लड़का था जो शहर पढ़ाई के लिए गया था . उसके पिता भेड़ पालन का काम करते थे और माँ भी उनकी इस काम में मदद करती थी . स्वभाव से बहुत ही सीधी और धार्मिक .

घर पहुँचने से पहले ही उसने गाँव में खबर पहुंचा दी थी कि अमुक तारीख को दोपहर तक वह गाँव पहुँच जाएगा . माँ ने घर के आँगन को बड़े ही जतन से गोबर और मिट्टी से लीपा था . मिट्टी की सोंधी खुशबू से घर महक रहा था . माँ जानती थी कि उसके लाडले को क्या पसंद है सो भोर से ही वह चाकी पर चने पीसकर बेसन तैयार कर रही थी . उसने तिल का तेल भी निकलवाया था . ताकि वह बेटे के लिए लड्डू बना सके . अपने हाथों से तरबूज और खरबूज के मगज उसने निकालकर इकठ्ठा किये और बेटे के लिए लड्डू बनाने में जुट गयी . दूर तक हवा में लड्डुओं के बनने की खुशबू तैर रही थी .

मोहन जब दोपहर बीते गाँव की सरहद पर पहुंचा तो गाँव के बच्चे चिल्लाते हुए घर की ओर भागे ..मोहन आ गया ..मोहन आ गया . माँ तो जैसे निहाल हो गयी बेटे के आने की खबर सुनते ही . वह दौड़कर दरवाजे पर खड़ी हो गयी और बेटे का इंतज़ार करने लगी . मोहन घर में आया और माँ से नमस्ते की .माँ हैरान थी कि बेटे ने आज पैर नहीं छुए . पर ममता में सब माफ़ होता है , सो कुछ नहीं कहा . मोहन के बाबा भी आज जल्दी लौट आये भेड़ों को लेकर , बेटे को मिलने की आस में .

थोड़ी ही देर में सब एक दूसरे से हाल चाल पूछने लगे. माँ- बाप बेटे से कुशलक्षेम जान कर बहुत खुश हुए. गाँव में अभी बिजली नहीं पहुंची थी . माँ ने मोहन के लिए आँगन में ही बिस्तर लगा दिया था पेड़ के नीचे . मोहन सारी रात करवट बदलता रहा उसे नींद नहीं आई .

माँ ने पूछा -बेटा क्या बात है ?
मोहन बोला -माँ नींद नहीं आ रही है यहाँ न तो बिजली है और न ही पंखा है .
बेटा- इतनी जल्दी शहर की आदत पड़ गयी . हम तो गरीब आदमी हैं , भगवान् ही हमारे लिए पंखा झुलाता है अपने पेड़ों के रूप में . और वह हाथ का पंखा लाकर मोहन की हवा करने लगी . मोहन को धीरे-धीरे कर नींद आ गयी.

तीन दिन पंख लगाकर उड़ गए पता ही नहीं चला . मोहन के जाने का दिन था आज . माँ ने बड़े ही जतन से लड्डुओं को डिब्बे में रख दिया . लेकिन मोहन ने लड्डू साथ ले जाने से मना कर दिया . वह बोला – माँ मेरे दोस्त मेरी हंसी उड़ायेंगे जब मैं ये गाँव के लड्डू लेकर जाऊँगा वहां पर . वहां तो चाउमीन, पिज्जा , डोसा और न जाने क्या-क्या मिलता है. माँ अच्छा होता तुम मुझे कुछ पैसे दे देती ये सब बनाने के बजाय .

माँ को लगा मानों पत्थर की चाकी में चने की जगह उसका मन पिस रहा हो और घर्र-घर्र उसके सीने में बजने लगी…कान मानों बहरे हो गए माँ के .

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *