अपना जिला

प्रेम और युद्व में सब ज़ायज़ है-उदाहरण सहित समझिए

संजय दुबे (वरिष्ठ पत्रकार)
(अपने शहर का किस्सा)

क्या कहा? ऊपर लिखी लाइनें सही है। अगर ये सही है तो फिर सिर्फ प्रेम और युद्व ही क्यों? जीवन के बाकी मसले किस कमबख़्त के लिए नाज़ायज़ है? गर है तब क्यों है? इस लाइन को लिखने वाला वाकई महापुरूष टाइप हो सकता है या फिर सचमुच में हो सकता है। ये भी हो सकता है कि अव्वल दर्जे का नकलची हो। जो हिंदी भाषा के इतर भी गैर ज़बान में लुके छिपे काफी कुछ पढ़ता हो। इसकी शुरूआत कॉलेज, विश्वविद्यालय के दिनों में ही अक्सर हो जाती है। यूं ही जैसे सिगरेट, दारू या अन्य और हसीन, जानलेवा आदतें। क्योंकि क्रांतिकारिता का फितूर, इश्क का खुमार, नेता बनने की ललक, किसी भी क्षेत्र में नाम कमाने की लालसा भी इन्हीं दिनों परवान चढ़ती है। बहरहाल बात प्रेम और युद्व की हो रही है। तब इसी विषय पर बात हो तो ठीक है वरना आजकल बात को घुमा कर कहना फैशन में शुमार है। इस पर पीएचडी करने वाले एक रिसर्चर का मानना है कि इस तरह की हरकतें अनायास हो गयी होंगी। वैसे ही जैसे बिग बैंग के चलते इतनी खूबसूरत और खतरनाक दुनिया बन गई। बात -बात में ही दो पत्थर और लकड़ी को रगड़ने पर आग की खोज हो गई। फिर इस ईजाद के बाद आदमियों को जो सुख मिला उसका वो इस कदर आदी हो गया कि उन्होंने ही इसे सूक्ति की तरह कंठस्थ कर लिया। तबसे ये क्र्रम चला आ रहा है।
इसके इतर मोहल्ले के खेलावन चच़ा की इस पर राय जुदा है। उनका ज्ञान काफी सतही “टाइप” माना जाता है। ऐसा अपने को तालीमयाफ्ता बताने वाले स्वयंभू विद्वान कहते है। जबकि कुछ लोगों की राय में खेलावन चच़ा का ज्ञान काफी निचले स्तर टाइप का, जमीन के करीब

का है। वो मोहल्ले के बुद्ध है। बिना ऑखिन देखी कानन सुनी बातों पर वो विश्वास नहीं करते। उनका मानना है कि जेम्स वॉट कौन सी यूनिवर्सिटी और कॉलेज में गया था-भाप का इंजन बनाने? घर में ही उसने केतली को देखकर इतना बड़ा इंजन बना डाला। लिहाज़ा इस तरह की पंक्तियां भी सीधे किसी आग के कौड़े के आगे बैठ आग तापते किसी ने कही होगी। चच़ा से ऊपर लिखी लाइन का मतलब पूछा तब उन्होंने कहा कि – हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखें को फारसी क्या। बुझौनी न बूझाने की जगह सीधे मुद्दे पर आने की बात कहने पर उन्होंने कहा-आओ इसको उदाहरण सहित आपको समझाते है। फागू की चाय की दुकान के बगल में लगे नगर पालिका की बेंच पर हम दोनों जाकर बैठ गए। चाय आयी और चच़ा शुरू हो गए-
एक थी धनिया। दशई पोखरा के करीब रहती थी। उम्र तकरीबन 30 साल। पालिका कर्मचारी थी। शादी सुदा थी। पति था, वो भी पालिका कर्मचारी था। शहर के कई इलाकों को उस दंपत्ति ने साफ सुथरा रखने का जिम्मा बखूबी निभाया था। उसके झाड़ू लगाने के लोग कायल थे। जिस मोहल्ले में उसकी ड्यूटी लगी उसने वहां मन से सफाई की। पता नहीं उसका काम के प्रति लगाव था या किसी का डर, जो भी हो पर सफाई में उसका कोई सानी नहीं था। हांलाकि स्वच्छता अभियान की तब परिकल्पना भी नहीं जन्मी थी। उसी दौरान उसका “लफड़ा”(इश्क) हो गया। चच़ा इश्क को लफड़ा ही मानते है। उनकी नजर में ये दिमागी बीमारी है जो तेजी से बढ़ रही है। पहले भी थी पर इतने मरीज नहीं थे जितने अब है। बहरहाल ये सब कुछ ज्यादा दिन नहीं चला। एक दिन धनिया पति का घर छोड़ अपने प्रेमी के साथ हो ली। उसने कोई ड्रम, सीमेंट वगैरह नहीं खरीदा। उसके जाने के बाद उसके पति ने भी राजकीय शोक की तरह उसका गम मनाया। फिर देवानंद की तरह जिंदगी का साथ निभाता चला गया। कुछ दिनों बाद उसने भी दूसरी घर वाली खोज ली। पर, अबकी उसने उसे पालिका कर्मचारी नहीं बनने दिया। इस दंपत्ति ने बिना किसी कानूनी लफड़े के अपने को अलग कर लिया। उत्तर आधुनिकता अभी हार्वर्ड यूनिवर्सिटी,कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम में शामिल हुई थी और यहां दशई पोखरा में उसका उदाहरण घटित हो गया था। इस घटना से पता चलता है कि पश्चिम क्यों हर विषय पर पूर्व की तरफ देखता है? चच़ा ने इस बात को खत्म कर युद्व की बात बतानी शुरू की।

क्यारी टोला के दो जानदार खानदानों में शानदार मुगलिया राजनैतिक अदावत चलती रही है। पालिका चुनाव से लगाए असेंबली,पार्लियामेंट तक इसका पूरा ख्याल रखा जाता है। ऐसा ही वाकया एक बार पालिका चुनाव में देखने को मिला। भाजपा ने अपने एक बहुचर्चित नेता को सभासदी का टिकट नहीं दिया। उसने भी दूसरे दल का दामन थाम लिया। दामन उनने नहीं थामा दूसरी पार्टी ने उनको पकड़ लिया। इस चुनाव में पहली बार उनके जीतने के प्रबल आसार थे। अब यहां एक पार्टी को लगा कि इलेक्शन बागी भाजपा के उम्मीदवार जीत जाएंगे। सो, उसने भाजपा के ही एक समर्थक को उकसा दिया। नतीजा ये निकला कि उस समर्थक ने बूथ पर ज्यादा हो हल्ला मचा दिया। जीता चुनाव बागी नेता हार गए। क्योंकि उनके ज्यादा वोटर इस चक्कलस के चलते बूथ पर वोट डालने गए ही नहीं और वो चुनाव हार गए। अब आप कहेंगे इसमें नया क्या है? ध्यान से देखिए और सोचिए तब सब समझ आ जाएगा। न तो इस प्रेम में किसी कार में पत्नी अपने पति को मार कर प्रेमी के साथ उसे जलाने की कोशिश करती है। न तो कोई ड्रम, कुकर, चाकू वगैरह खरीदा जाता है और न ही राजनैतिक अदावत में किसी का अपहरण होता है और न ही गोलियां चलती है। बात पुरानी है पर सच्ची है और चच़ा की नई बात में भी दम है- गुरू! बात वही, किस्से वही, बस कहने का अंदाज जरा डिजीटल फार्मेट में हो गया है मतलब सब कुछ जल्दी चाहिए दो मिनट में। बस! यही है दिक्कत। अब ये कैसे संभव है कि रातों रात सकारात्मक काम कर कोई मशहूर हो सकता है?

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