लघुकथा! अन्नदान के महत्म
@ साक्षी साहू सुरभि महासमुन्द से…
बुधियारिन दाई बड़ गरीब राहय। एके झन नानकुन झोंपड़ी म परे राहय।
लोग लईका एकोझन नी राहय अऊ बबा घलो परलोक सिधार गे राहय।
दाई भीख मांग के अपन जिनगी ल चलात राहय फेर वोहा अतका ग़रीबी में भी चार पांच घर ले जादा घर नी मांगे।
एक दिन मैं पुछेव दाई तै ह चार पांच घर मांग के आ जथस अतकी म तोर खर्चा चल जथे।
त दाई ह किहिस-हाँ बेटी एक दिन के दुनो बखत के खाना बर हो जथे अऊ बाचथे तेरा भगवान के नाम म गगरी म बार देथो।
एक दिन वोकर झोंपड़ी के बाहिर म अब्बड़ भीड़ रहाय बड़ झन भिखारी मन आये राहय अऊ बुधियारिन दाई सब झन ल दान देवत राहय।
अइसने हप्ता म एक दिन अपन माँगे ल नी जाय अऊ दूसर ल दान करय।
अइसने दिन बीतत गिस अऊ छेरछेरा के तिहार अईस।छेरछेरा के दिन बुधियारिन दाई जम्मो छेरछेरा कुटैया मन ल पसर पसर चाऊंर देवत राहय।
मैं वोकर तीर म गेंव के पुछेंव-दाई तै ह खुदे तो भीख मांग के अपन जिनगी चलावत हस अऊ अतका कन दान कैसे कर डरथस।
तब बुधियारिन दाई बड़ सुग्घर भाखा म समझईस
मैं गरीब हंव भीख मांग के जिनगी बिताथंव फेर एक बात हे जतका मांगथंव वोमे से थोडकन महूं दान करथो अऊ काकरो भूख ल मिटाथंव अऊ थोकन जस कमा लेथंव अऊ इसी अन्नदान के परताप ले भगवान मोर अन्न के भंडार ल रिता नी होवन दे।
भूखा ल भोजन कराये ले बड़े अऊ काही दान नी हे।
अतका ल सुनके मोर मन गदगद होगे अऊ महूं परन करेव आज से गरीब ल अन्नदान करहूं।।