मर चुके इन्सानियत को गोरखपुर से मुखाग्नि देने बस्ती पंहुचे आजाद

(आनन्द कुमार)
बस्ती। आदमी का मरना तो भगवान के हाथ में होता है अगर इंसानियत मरने लगे तो किसे दोष दें। जिन्दा समाज में इंसानियत कुछ ऐसे ही मर गई थी उत्तर प्रदेश के बस्ती जनपद में। तभी तो दो जनपद दूर से मर चुके आदमी का अंतिम संस्कार करने के लिए आजाद पाण्डेय को गोरखपुर से आना पड़ा। खुद को बीमार, अक्षम व बेसहारा लोगों का प्रतिनिधि कहने वाले आजाद पाण्डेय गोरखपुर व आस पास के क्षेत्र में परिचय के मोहताज नहीं हैं। उन्हें जैसे ही एक राजपत्रित अधिकारी ने यह सूचना दी कि एक व्यक्ति की बस्ती में मौत हो गई है और उसके शव को अंत्येष्टि के लिए कोई हाथ नहीं लगा रहा तो आजाद फिर कहां रूकते उन्होंने तो जो अपना धर्म व कर्म बना लिया उसी की आवाज थी, अब आवाज भले ही 70-80 किलोमीटर दूर से लगा हो। मृत व्यक्ति बस्ती शहर में किराए के मकान में रहते थे। वे कभी करोड़पति हुआ करते थे। उनकी पत्नी की मृत्यु पहले हो चुकी है और कोई औलाद नहीं थे। उनकी सोमवार शाम की मृत्यु हो जाती है। मृत्यु की सूचना के बाद भी कोई उनके शव को ले जाना तो दूर पास आने की जहमत नहीं उठाया।
बस्ती में ही पक्के कोई जगह है वहीं पे
एक इंसान अपनी पूरी जिंदगी इसी जद्दोजहद में रहता है कि, उसका बुढापा सकून से कटे, उसे चार लोग कन्धा देने वाले मिलें। खुद के आनन्द को काटते हुए अपने आसपास एक खोखली दीवाल खड़ा करता रहता है।
मृत व्यक्ति करोड़पती रहे और जीवन मे ऐश्वर्य भोगते रहे। पर अंतिम समय मे अस्पताल में सड़ांध अवस्था मे पड़े रहे। कोई आसपास नही, और मृत्यु को प्राप्त हुए। घटना की सूचना फोन पर एक राजपत्रित अधिकारी ने जैसे ही गोरखपुर के आजाद को दी। तो वे अलसुबह बस्ती पहुंच गए। देखा कि “इंसानियत मर्चरी हाउस में लावारिश पड़ी है”।
कानूनी प्रक्रिया के पश्चात कुछ सामाजिक जिन्दा लोगों की मदद से लाश श्मसान घाट लेकर पहुँचे और जब लाश को अग्नि देने की बारी आई तो आसपास कुछ नजर नही आया, तो आजाद ने वसुधैव कुटुम्बकम् को मनन करते हुए अपनी सामाजिक जिम्मेदारी पूरी की और इन्हें मुखाग्नि देते हुए, मरी हुई इंसानियत व सामाजिकता को एकसाथ प्रणाम किया।