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जगमगाती रातों की सुनसान आहें, कोरोना से संघर्ष में मुस्तैद मानवता के प्रहरी

मऊ। सबसे स्याह रातों को भी अपनी चकाचौंध रौशनी से जगमगा देने वाली जनपद की सड़कें आज वीरान पड़ी हैं। इक्के दुक्के लोग सहमे हुए से सड़क पर दिखते हैं फिर गलियों में कहीं गायब हो जाते हैं। अधिकतर ये लोग मेडिकल स्टाफ्स हैं जो लॉकडाउन के दौरान मानवता के प्रहरी बने हुए हैं या फिर पुलिस है जो लोगों को लॉकडाउन का सख्ती से पालन करवाने हेतु प्रतिबद्ध है। इस लॉकडाउन को सख्ती से पालन करवाना ही होगा वरना दिन ब दिन बढ़ते आंकड़े अच्छे आसार नहीं दिखाते। खैर बात सूनी सडकों की हो रही है। इन्ही सूनी सडकों पर इन पुलिसवालों, मेडिकल स्टाफ्स, चिकित्सकों के अलावा एक और जननायक सडक पर दिख जाते हैं। समाज में मानवता के लिए किये गए योगदान में हमें इनके लिए भी तालियां और दिए जलाने चाहिए। इस विकट परिस्थिति में गली और मोहल्लो की सडको पर सब्जी वाले फल वालो के ठेले हैं जो घूम-घूम कर अपनी परवाह किये बिना घर में कैद लोगों तक हरी सब्जियां और फल पहुंचा रहे हैं। बेच रहे हैं ऐसा इसलिए नहीं कह सकते क्योंकि इस मुश्किल घड़ी में जहाँ आदमी तो आदमी हवाएं भी सूरज की बंदिशों में गर्म लावे का रूप धारण कर चुकी हैं। वहीँ इस देह झुलसाती धुप में ये ठेले वाले घरों में कैद लोगों को उनके जरुरत की वस्तुएं उपलब्ध करवा रहे हैं और बदले में कोई बेतुके दाम नहीं उसूल रहे, तो इसे पंहुचाना ही कहेंगे, बेचना नहीं। शहर में तो फिर भी ठीक है गांव में इन हरी सब्जियों और फलों का मिलना थोड़ा दूभर है। आप कहेंगे गांव में तो किसान है उसे कैसे सब्जी की कमी आ सकती है। आ सकती है, गांव में सभी लोग सब्जियां ही नहीं उगाते और जितनी है उतनी कब तक है, क्या पता? और यहाँ तो सब्जी वाले ठेले भी नहीं आते। गांव में कोई दुकान इतनी बड़ी नहीं होती जो 10 या 15 दिनों का सामान स्टॉक करके रख ले। हफ्ते भर तक किया जाता है, अमूमन तो जाहिर सी बात है आज लॉकडाउन के 16 वें दिन इन दुकानों का स्टॉक भी लगभग ख़त्म हो चूका होगा। आगे अभी कुछ दिनों की जंग बाकि है। गांव के नमक मसाले की आपूर्ति कैसे होगी? विचारणीय है।

 

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