पूछता है गाजीपुर! अफजाल और मस्त कहां हैं व्यस्त
◆ गाजीपुर एवं बलिया संसदीय क्षेत्र के सांसद हैं जनता से दूर
◆ कोरोना में आक्सीजन, अन्य जरूरतों के लिए जनता है परेशान
◆ पूरे माह भर इलाज के लिए भटकते रहे जिले के मरीज, आक्रोश
◆ जनता बोली, जनप्रतिनिधियों का विरोध करना क्या कानून का विरोध है
( अजीत सिंह )
गाजीपुर। जिले में दो माह से कोरोना की लहर से परेशान जनता का भले ही जिलाधिकारी एमपी सिंह, एसपी डा. ओपी सिंह के अलावा कुछ जनप्रतिनिधियों ने ख्याल रखा, और कर्तव्यों का पालन किया। मगर अब गाजीपुर पूछता है कि इस कोरोना की त्रास्दी में सांसद अफजाल अंसारी एवं बलिया सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त कहां व्यस्त हैं। जनता ने उन्हें इसी दिन रात के लिए चुना था कि जीतने के बाद राजा की तरफ जिंदगी जीओ और जनता को भूल जाओ। ऐसे जनप्रतिनिधियों से जिले के लोग सवाल पूछ रहे हैं।
दोनों जनप्रतिनिधियों ने एक बार भी मीडिया के सामने आकर न तो बयान दिया और न ही किसी की मदद की। जनता आक्सीजन के लिए मरती रही। सैकड़ों की संख्या में लोग मरते रहे। चीताएं सजती रहीं और जलती रही। फिर भी इनकी संवेदना भी किसी परिवार तक नहीं पहुंची। ऐसे सांसदों को लेकर लोगों में भारी आक्रोश बढ़ता जा रहा है। आखिर इनका विरोध करता कानून का विरोध माना जाता है।
इन जनप्रतिनिधियों से अच्छा तो जिले की जनता डीएम एमपी सिंह को मानकर चल रही है। जो पूरे कोरोना काल में एक एक मरीजों के परिजनों से बात की उनका फोन उठाया, उन्हें आक्सीजन उपलब्ध कराया। डीएम जिला अस्पताल के चिकित्सकों के प्रति इतना सख्त हो गए कि उन्होंने चिकित्सकों की सिर्फ इसलिए छुट्टी कर दी कि वे मरीजों में यह मैसेज दे रहे थे कि आक्सीजन नहीं है। जबकि आक्सीजन था और मरीजों को आक्सीजन दिया जा रहा था। इसकी पूरे मीडिया में डीएम की तारीफ हुई। एसपी ने भी कोविड का पालन कराने के लिए पुलिस कर्मियों की नकेल कसते रहे। उन्हें सजग करते रहे। ताकि कोरोना की चेन को तोड़ा जाए। जमानियां विधायक सुनीता सिंह इस माहमारी में लगातार जनता से जुड़ी रहीं और जुड़ी हैं। उन्होंने लगातार डीएम एवं सीएमएस को फोन करके आक्सीजन की व्यवस्था करवाई। इसी तरफ से भाजपा एमएलसी विशाल सिंह चंचल भी अधिकारियों से आक्सीजन उपलब्ध कराने की मांग करते रहे। लेकिन गाजीपुर के बसपा सांसद अफजाल अंसारी का मीडिया में तब तक ही बयान आता रहा, जब तक मुख्तार अंसारी सुरक्षित रूप से बांदा जेल में शिफ्ट नहीं हो पाए। जैसे ही वह बांदा जेल में दाखिल हुए, वह पूरी तरह से विलुप्त हो गए। बलिया सांसद को लेकर पहले से ही जनता नाराज है। अब तो बलिया में उन्हें लापता घोषित कर दिया गया है। अब सवाल उठता है कि आखिर ऐसे नेताओं को जनता चुनती ही क्यों है। क्या ऐसे नेताओं को चुनना चाहिए जो जनता के दुख दर्द में हमेशा साथ रहें। ऐसे नेताओं की क्या जरूरत है चुनने की, जो जनता से दूर रहे। सिर्फ कभी कभार दर्शन दे दे। सबसे खराब हालत तो जहूराबाद विधानसभा की है। यहां के अधिकारी एवं कर्मचारी पूरी तरह से बेलगाम हो जाते हैं। नेताओं एवं कार्यकर्ताओं की सुनी नहीं जाती। उन्हें धरना देना पड़ता है। बलिया सांसद अपनी आंखों से यह सब देखते हैं मगर कुछ कर नहीं पाते। क्या ऐसे सांसद से पूछने का हक जनता का नहीं है। सिर्फ जनता मतदाता बनकर रहेगी। यह सवाल हर मतदाता के जेहन में कौंध रहा है। क्या इनका बहिष्कार विधानसभा में होना चाहिए की नहीं, इस पर अब बहस छिड़ गई है।