रचनाकार

हिन्दी-बेटी दिवस पर शब्द तुम्हें समर्पित है

लेखिका आशा साहनी कहती हैं वर्षो पहले जो भाव मेरे मन में जागे थे उसे गीत का रुप देने में सालों लग गये, 14 सितम्बर मेरे लिए खास होता है क्योंकि इसी तारीख को माँ होने का सुख मिला था और संयोग है कि यही हिन्दी दिवस की भी तारीख है, मेरे मन के भाव गीत के रुप में आप सभी के बीच रखती हूँ, उम्मीद है आप सभी बेटी को और मेरे मनोभाव को अपना आशीर्वाद प्रदान करेंगें ।

आशा साहनी…

जब समझ आया मुझे कि गर्भ में तुम पल रही हो
इस हृदय की सांस बनकर साथ मेरे चल रही हो

क्या कहूँ कैसे खुशी से नाचता था मन मेरा
स्वप्न की आगोश में खिल रहा था तन मेरा
स्नेह के आंगन में तुम आज मेरे थी निकट
आग में मैं जल रही थी,वक्त थोड़ा था विकट
मुश्किलों के साथ में तुम ही तो मेरी हल रही हो
इस हृदय की सांस बनकर साथ मेरे चल रही हो

बुझ रहे जीवन को मेरे ममत्व का आधार दे
ज़िन्दगी को सींच कर फिर नया आकार दे
विध्न और बाधाओं को कर रही थी पार मैं
तूं छिपी थी गर्भ में पर कर रही थी प्यार मैं
तुम मेरे जीवन में ऐसे प्रेम से ही ढल रही हो
इस हृदय की सांस बनकर साथ मेरे चल रही हो

थी किसे परवाह की वेदना कितनी बड़ी है
लूं तुझे मैं गोद में, भक्त सी तेरी माँ अड़ी है
वो घड़ी भी आ गई है, ज़िन्दगी की भोर में
तूं रहेगी गोद हरदम, ज़िन्दगी की शोर में
साथ मेरे तुम ही तो फिर भावना अटल रही हो
इस हृदय की सांस बनकर साथ मेरे चल रही हो

जब तुम्हारा आगमन, जीवन में मेरे हो गया है
दर्द मेरी ज़िन्दगी का जाने कैसे खो गया है
जाने कितने स्वप्न मैने एक पल में देख डाले
मिट गये थे ज़िन्दगी के अब तो मेरे लेख काले
तुम सुगम पथ पर मेरा सौभाग्य बनकर चल रही हो
इस हृदय की सांस बनकर, साथ मेरे चल रही हो

जब समझ आया मुझे कि गर्भ में तुम पल रही हो
इस हृदय की सांस बनकर साथ मेरे चल रही हो

क्या कहूँ कैसे खुशी से नाचता था मन मेरा
स्वप्न की आगोश में खिल रहा था तन मेरा
स्नेह के आंगन में तुम आज मेरे थी निकट
आग में मैं जल रही थी, वक्त थोड़ा था विकट
मुश्किलों के साथ में तुम ही तो मेरी हल रही हो
इस हृदय की सांस बनकर साथ मेरे चल रही हो

बुझन रहे जीवन को मेरे ममत्व का आधार दे
ज़िन्दगी को सींच कर फिर नया आकार दे
विध्न और बाधाओं को कर रही थी पार मैं
तूं छिपी थी गर्भ में पर कर रही थी प्यार मैं
तुम मेरे जीवन में ऐसे प्रेम से ही ढल रही हो
इस हृदय की सांस बनकर साथ मेरे चल रही हो

थी किसे परवाह की वेदना कितनी बड़ी है
लूं तुझे मैं गोद में, भक्त सी तेरी माँ अड़ी है
वो घड़ी भी आ गई है, ज़िन्दगी की भोर में
तूं रहेगी गोद हरदम, ज़िन्दगी की शोर में
साथ मेरे तुम ही तो फिर भावना अटल रही हो
इस हृदय की सांस बनकर साथ मेरे चल रही हो

जब तुम्हारा आगमन, जीवन में मेरे हो गया है
दर्द मेरी ज़िन्दगी का जाने कैसे खो गया है
जाने कितने स्वप्न मैने एक पल में देख डाले
मिट गये थे ज़िन्दगी के अब तो मेरे लेख काले
तुम सुगम पथ पर मेरा सौभाग्य बनकर चल रही हो
इस हृदय की सांस बनकर, साथ मेरे चल रही हो

आशा साहनी मऊ उत्तर प्रदेश की रहने वाली हैं।

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