शब्द मसीहा की कहानी: आलसी
“अरे भाई, कहाँ जा रहे हो ? आज तो आराम करने का दिन है।” राम लाल ने पूछा।
“कुछ नहीं , बस घर का कुछ सामान खरीदना है बाजार से।” आपटे ने कहा।
“कितने आदिम हो गए हो तुम और वो भी इस डिजिटल जमाने में । फोन है तो उससे शॉपिंग करो , घर बैठे सब आ जाता है।” राम लाल बोला।
“हा हा हा …. और ये सब करना हमें एक आलसी देश सिद्ध करता है । सबसे ज्यादा गंदे देशों में तो हम शुमार हैं ही , अब आलसी देश भी हो गए हैं । जानते हो ये हमारा आलसीपन हमारे रिश्ते, हमारे बहुत से लोगों के रोजगार खा गया । वो पुराना जमाना याद करो । आज क्या तुम उधार के गुलाम नहीं बना दिये गए इस क्रेडिट कार्ड द्वारा ।” आपटे बोला।
“यार कह तो तू ठीक ही रहा है । पैसे दो फिर कई दिन इंतज़ार करो, पसंद न आए तो वापसी करो , महीने का फिर इंतज़ार । हाँ, मुझे पापा बताते थे कि पहले ब्याह शादी के सामान सब आसानी से मिल जाते थे , पैसे फसल होने पर देते थे । दुआ सलाम , मिलना जुलाना , राजी खुशी सब हो जाता था । जैसे सब हमारे और हम सब के थे ।” राम लाल बोला।
“और अब , अब हम गुलाम, घर में कैद और आलसी बना दिये गए हैं। हर कोई ऑन लाइन खरीद रहा है। कितने ही लोगों का धंधा और रोजगार चला गया । सबसे ज्यादा लात तो गरीब के पेट पर पड़ी है। हम तो उनके भी गुनाहगार हैं। किसान से मक्का बीस रुपये किलो नहीं लेंगे , मॉल से दो सौ रुपये किलो ले लेंगे। स्वीट कॉर्न ही ले ले , गली में बीस-तीस का मिल जाता है और वहाँ साठ सत्तर का …और कोई मोल भाव भी नहीं। ” आपटे ने कहा।
“अरे भाई , एक बार तो मैं छुट्टी लेकर पूरे दिन बैठा रहा सामान वापिस करने को । फोन पे फोन किए चैट बॉट में लिखा , तब कहीं बड़ी मुश्किल से वापिस हुआ और कई चीजों पर तो वापसी है ही नहीं। पर फिर भी कुछ सहूलियत तो है।” राम लाल बोला ।
“परेशान हुआ पर मॉडर्न बनने के चक्कर में तुझे अब भी शूलीयत लग रही है । एक बुक शेल्फ़ मँगवा लिया था बेटे ने । लकड़ी के फट्टे और की , पेंच भेज दिये । पेंच भी अलग तरह के तो मजबूरी में पेंचकस और खरीदना पड़ा चार मुँह का। इन लोगों ने हमें क्या बढ़ई समझ रखा है ? हम तो सीधे बनाने वाले के पास से खरीदना पसंद करते हैं अब । इधर पैसा दो और सामान घर ले आओ। चले फिरने से सेहत भी ठीक। 80% सामान तो चीन का है और कई बार तो इनसे सस्ता और अच्छा देशी माल ही मिल जाता है।” आपटे ने कहा।
“तेरी भाभी तो सब्जी दाल आटा, तेल, साबुन सब घर से ऑर्डर करती है।” राम लाल बोला।
“तभी तो उम्र से ज्यादा और थकी हुई लगती हैं। मनोरमा बता रही थी कि उनकी तबीयत बिठीक नहीं रहती आजकल और डॉक्टर से कुछ ईलाज चल रहा है।” आपटे ने कहा ।
“हाँ, अब चलना फिरना, घर में कोई पकवान बनाना सब बंद हो गया है । जो खाना है ऑर्डर करो और पड़े रहो । सच बताऊँ तो वजन बहुत बढ़ रहा है, पर क्या कर सकता हूँ ।” राम लाल बोला।
“अरे भाई इस ऑन लाइन के चक्कर से बाहर निकल। सेहत, रिश्ते , देश की इकोनोमी और रोजगार सब इस आलसीपन का शिकार बन रहा है, अपना पैसा भी विदेश जा रहा है । हम आलसी और कमजोर हो रहे हैं, देश से गद्दारी है ये ।” आपटे ने कहा।
तभी आपटे की पत्नी आ गई झोला उठाए हुए ।
“अरे क्या हर जगह बातें बनाते रहते हो, सामान लेने के बजाय यहीं खड़े हो अभी तक । मैं भी सब्जी लेने निकल पड़ी घर से । चलो दोनों चलते हैं।”
वे दोनों आगे बढ़ गए । अब राल लाल सोच रहा था कि वे आखिरी बार कब ऐसे साथ गए थे। आपटे सही कह रहा है ….हम आलसी हो गए हैं।