रचनाकार

लद्युकथा : समझे कुछ

@ शब्द मसीहा केदारनाथ…

“अरे! भैया, कुछ सुना आपने ?” उसने आश्चर्य जताते हुए कहा।

“क्या सुना ?”

“अरे ! वो विद्यादास की बीवी बगल के मोहल्ले के आदमी के साथ भाग गई। बेचारा कितना रो रहा था ….भगवान को कोस रहा था नौ-नौ आँसू ।” वह बोला।

“विद्यादास की बीवी आग गई तो ये उसका मैटर है, कुछ तो कारण रहा होगा? कोई औरत ऐसे ही अपना घर परिवार , माँ-बाप की इज्जत दांव पर नहीं लगाती । जरूर विद्यादास में कोई कमी रही होगी।”

“भगवान का भक्त , सरकार का भक्त, हमेशा मौजूद रहने वाला आदमी था । नेक बंदा था ….बेचारा विद्यादास । औरत होती ही ऐसी हैं।” वह बोला।

“तुम्हारी माँ घर में है, बीवी घर में है ? उसे कभी पूछना कि वो क्यों टिकी हुई हैं। औरत को प्यार के अलावा भी बहुत कुछ चाहिए …घर, बच्चों की देखभाल और सबसे बड़ी बात है सुरक्षा । भगवान का भक्त था तो भगवान ने उसका घर परिवार क्यों नहीं बचाया ? बहुत -सी बातें सिर्फ़ भगवान के भरोसे नहीं छोड़ी जा सकतीं और औरत तो कभी नहीं । उसको अपनी तरह समझना चाहिए, दोस्त समझना चाहिए….लेकिन विद्यादास ने ऐसा नहीं किया । धर्म और राजनीति में फँसकर उसने बीवी को मोहरा बनाने की कोशिश की। जब रंडी जैसा काम करने को कोई कहेगा तो कोई औरत क्यों रहेगी ऐसे नपुंसक के साथ ?”

“क्या बात कर रहे हैं भैया जी ? ऐसा कैसे हो सकता है ?” वह आश्चर्य से बोला।

“मिला था मैं, उसने बताया था कि वह किसी नेता को परोसना चाहता था उसे और किसी पुजारी से उत्तम कवालिटी का बच्चा चाहता था । बेबकूफ आदमी को खुद पर भरोसा नहीं था । कोई औरत अपने आदमी से बेइज्जती बर्दाश्त कर सकती है पर किसी गैर से कैसे करती ? ऐसे लोगों को रंडवा ही रहना चाहिए । कमजोर लोगों की ही बीवियाँ भागती हैं और दोष औरत को देते हैं। समय बदल रहा है, कल की औरत आज की बहिन और बेटी है। जो औरत को वस्तु समझता है वह नीच है …य देश सेवा के उद्देश्य , भगवान की कृपा ऐसे केस में व्यभिचार के अलावा कुछ नहीं हैं।”

“हे राम , कैसी बात कह रहे हो भैया जी ?” वह चौंकते हुए बोला।

“जीवन का सीधा सा धर्म है और नियम भी ….जो अपने लिए चाहते वैसे ही दूसरे को जीने का मौका दो ….औरत सुविधा नहीं है ….ज़िम्मेदारी है। यही नियम देश पर लागू होता है …. समझे कुछ ?”

वह मौन रहा ….शायद सोच रहा था ….समझे कुछ।

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