रचनाकार

जय गंगा, जय यमुना, जय सरस्वती, जय जय प्रयागराज

रोशनी जायसवाल…

प्रयागराज का त्रिवेणी संगम,
जहां नदियां गाती हैं प्रेम का राग।
आध्यात्मिकता की बहे पवित्र लहरें,
यह महाकुंभ मेला है शांति का भाग।

पौष पूर्णिमा से आरंभ हुआ संगम,
शाही स्नान का अवसर है अद्भुत और महान।
चार सौ मिलियन भक्तों का आना,
स्वच्छता और स्वास्थ्य की व्यवस्था बनी प्रामाण।

मकर संक्रांति की धूप में चेहरे पर मुस्कान,
मौनी अमावस्या में चुपचाप भक्ति का ध्यान।
वसंत पंचमी का रंग हर दिल में बसा,
माघी पूर्णिमा पर भक्ति का नृत्य झलका।

महाशिवरात्रि में शिव का ध्यान,
हर भक्त के मन में गूंजे आशीर्वाद का गान।
महाकुंभ, यह अद्भुत सृजन,
144 सालों बाद आता, है मोक्ष का वरदान।

नदियों के संगम में बहता जीवन,
श्रद्धा की लहरों में बसा हर मन।
आत्मशुद्धि की तलाश में हर कदम बढ़े,
प्रयागराज कुंभ मेला—आध्यात्मिक यात्रा का खजाना।

यह है शांति का विशाल जनसंग्रह,
जहां सभी मिलकर साधते मोक्ष का मंत्र।
गंगा, यमुना, सरस्वती की महिमा गाए,
यह महाकुंभ मेला है प्रेम का संदेश सुनाए।

जय गंगा, जय यमुना, जय सरस्वती!
हर हर महादेव।

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