करो फैसला मिलकर आज, मत करो मुझको बर्बाद, इतना तो तुम रखो याद
@रोशनी जायसवाल…
सोशल मीडिया हास्य कविता…
सोशल मीडिया का जैसे ही हुआ हमारे जीवन में वेलकम।
तब से मोबाइल लाइफ शुरू, सोशल लाइफ ख़तम।।
ट्विटर व्हाट्सप्प फेसबुक पर पुछा जाये सवाल।
बंदा इमोजी डाल बता देता कितना है बेहाल।।
टेढ़े – मेढ़े मुंह बना सेल्फी ले लड़कियाँ करे पोस्ट।
फिर मुंह फुलाये जब लाइक कमेंट ना आये मोस्ट।।
क्या खाया क्या खाएंगे इसका भी करते प्रचार।
भला हो क्या निकाला इसका तो ना दिया समाचार।।
ऐसे हर किसी का सोशल मीडिया पर हँसी सफर जारी।
कुछ होके भी शादी शुदा बताये खुद को बाल ब्रह्मचारी।।
बच्चे बूढ़े जवान सब सोशल मीडिया पर बिजी।
कोई सिर खुजलाये, कोई दिखाए बत्तीसी।।
तो कलरफुल हुई जिंदगी जो थी ब्लैक एंड वाइट।
बोले व्हाट्सप्प पर मॉर्निंग फेसबुक पे गुड नाईट।।
झोंपड़ी से लेकर महल की परियां यहाँ मिले।
देख देख कर जिनको लोगों का दिल हिले।।
हिला दिया सोशल मीडिया ने इस तरह पूरा जीवन।
सुख पा रहा है यूजर , दुःख झेल रहे परिजन।।
ऐसे यूज़ – मिसयूज कर तूने बदला मेरा इंडिया।
दिल दिमाग अब दोनों लट्टू वाह रे सोशल मीडिया।———————————————————-
करो फैसला मिलकर आज, मत करो मुझको बर्बाद,
इतना तो तुम रखो याद…
मत करो मुझको बर्बाद, इतना तो तुम रखो याद,
प्यासे ही तुम रह जाओगे, मेरे बिना न जी पाओगे।
कब तक बर्बादी का मेरे, तुम तमाशा देखोगे,
संकट आएगा जब तुम पर, तब मेरे बारे में सोचोगे।
संसार में रहने वालों को, मेरी जरूरत पड़ती है,
मेरी बर्बादी के कारण, मेरी उम्र भी घटती है।
ऐसा न हो इक दिन मैं, इस दुनिया से चला जाऊं,
खत्म हो जाए खेल मेरा, लौट के फिर न वापस आऊं।
पछताओगे-रोओगे तुम, नहीं बनेगी कोई बात,
सोचो-समझो करो फैसला, अब तो ये है तुम्हारे हाथ।
मेरे बिना इस दुनिया में, जीना सबका मुश्किल है,
अपनी नहीं भविष्य की सोचो, भविष्य भी इसमें शामिल है।
मुझे ग्रहण कर सभी जीव, अपनी प्यास बुझाते हैं,
कमी मेरी पड़ गई अगर तो, हर तरफ सूखे पड़ जाते हैं।
सतर्क हो जाओ बात मान लो, मेरी यही कहानी है।
करो फैसला मिलकर आज, मत करो मुझको बर्बाद,
इतना तो तुम रखो याद।——————————————————-
नदी के बहाव की सूखी रेत में सुदूर तक फैले आक की तरह
अभी भी तुम्हारी याद का हरा बचा हुआ मुझ में…
मैं तुम्हें मेरे लिए पानी की तरह कम होते देख रहा हूँ।
मेरे गेहूँ की जड़ों के लिए तुम्हारा कम पड़ जाना
मेरी चिड़ियों के नहाने के लिए तुम्हारा कम पड़ जाना
मेरे पानी माँगते राहगीर के लिए तुम्हारा ग़ायब हो जाना
मेरे बैल का तुम्हारे पोखर पर आकर सूनी आँखों से इधर-उधर झाँकना
मेरी आटा गूंधती स्त्री के घड़े में तुम्हारा नीचे सरक जाना।
तुम्हारे व्यवहार में मैं यह सब होते देख रहा हूँ।
लगातार कम होते पानी की तरह
मैं तुम्हें मेरे लिए कम होते देख रहा हूँ।
पानी रहित हो रहे इलाकों की तरह
मैं पूछ भी नहीं पा रहा हूँ
क्यों हो रहा है ऐसा?
पानी तुम क्यों कर रहे हो ऐसा?
पानी चला गया तो नदी किसके पास गई कुछ कहने
वैसी नदी की तरह लीन हूँ मैं अपने में।
नदी के बहाव की सूखी रेत में सुदूर तक फैले आक की तरह
अभी भी तुम्हारी याद का हरा बचा हुआ मुझ में।——————————————————-
जब मुझे सोशल मीडिया मिला, तो मैं बात करना भूल गया..
जब टीवी मेरे घर आया
तो मैं किताबें पढ़ना भूल गया था।
जब कार मेरे दरवाजे पर आई
तो मैं चलना भूल गया।
हाथ में मोबाइल आते ही
मैं चिट्ठी लिखना भूल गया।
जब मेरे घर में कंप्यूटर आया
तो मैं स्पेलिंग भूल गया।
जब मेरे घर में एसी आया
तो मैंने ठंडी हवा के लिए पेड़ के नीचे जाना बंद कर दिया।
जब मैं शहर में रहा
तो मैं मिट्टी की गंध को भूल गया।
मैं बैंकों और कार्डों का लेन-देन करके
पैसे की कीमत भूल गया।
परफ्यूम की महक से
मैं ताजे फूलों की महक भूल गया।
फास्ट फूड के आने से
मेरे घर की महिलायें पारंपरिक व्यंजन बनाना भूल गई..
हमेशा इधर-उधर भागता
मैं भूल गया कि कैसे रुकना है
और अंत में जब मुझे सोशल मीडिया मिला
तो मैं बात करना भूल गया…——————————————————-