शांति और विकास को प्रभावित करने का प्रयास
(सम्पादकीय )
राजेश कुमार सिंह
विगत दिनों 22 अप्रैल 2025 को भारत का मिनी स्विट्जरलैंड कहे जाने वाले जम्मू -कश्मीर के अनंतनाग जिले के, पहलगाम की बैसरन घाटी, आतंकवादियों के खूनी खेल के बाद,वैश्विक मंच पर विशेषरूप से चर्चा में आ गयी । 26 पर्यटकों को धर्म पूछते हुए उनके बीबी -बच्चों के समक्ष निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी गयी। लश्करे तोएबा के अनुशांगिक संगठन टीआरएफ ने इसकी जिम्मेदारी ली और बाद में दबाब बढ़ता देख अपने चैनल हैक होने का दावा करते हुए संलिप्तता से इंकार किया। वैसे तो आतंकवाद की यह परिणीति होती रही है लेकिन इस बार मामला कुछ इतर था। अभी तक पर्यटकों पर कभी हमला नहीं हुवा था । पूरा देश ग़मगीन हो गया । चारो ओर स्तब्धता ,गुस्सा और शांति थी । हलचल थी तो राजनीतिक और सुरक्षा बलों में । प्रधानमंत्री सऊदी अरब की यात्रा सीमित कर तत्काल स्वदेश लौटे और एयरपोर्ट से ही एक्शन में दिखे।
चतुर्दिक श्रद्धांजलि और भावनाओं का इज़हार होने लगा। सरकार ने अब तक का सबसे कड़ा फ़ैसला लेते हुए 1960 में हुई सिंधु जल समझौते को निलंबित कर अन्य कई आवश्यक फैसले लिए। रणनीतिक बैठकों का दौर तेज़ हुवा। सेना के सभी अंगों ने भी कमर कसना प्रारम्भ किया।
अमेरिका के रष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प , फ्रांस के रष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रो, युद्धरत इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेत्यनाहू , रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन आदि सरीखे यह लिखे जाने तक लगभग सोलह राष्ट्राध्यक्ष से प्रधानमंत्री की वार्ता हो चुकी है। आतंकवाद के ख़िलाफ़ इस लड़ाई में सभी ने घटना की निंदा करते हुए सहयोग का वादा किया । सबसे बड़ी बात इस बार यह दिखी की अमरीका के 75 प्रतिनिधि सभा और 25 सीनेटरों ने घटना की निंदा करते हुए समर्थन ब्यक्त किया,एफबीआई आदि ने भी भारत के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया।
प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी भी विदेश की अपनी यात्रा अधूरी छोड़ स्वदेश लौट आये । लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों ने अपनी बैठकों और सरकार के साथ बैठकों में सरकार को अपना समर्थन दिया। वास्तव में ऐसी स्थिति में जब देश संकट में हो तो ऐसी ही एकता होनी चाहिए । जब देश रहेगा तभी राजनीति भी होगी। और भारत मे यह एकता ऐसे मौके पर दिखती रही है ।
एक बात जो मुझे पहली बार दिखी कि कश्मीरी भाई -बहन भी अपने प्रतिष्ठान आतंकवादियों की घटना के खिलाफ बन्द कर अपनी सम्वेदना व्यक्त की साथ ही साथ उनकी सम्वेदना सभाओं में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ नारे लगते समाचार चैनलों पर दिखाई दिया।यह एक अनूठी बात थी । और हो क्यों न ? पर्यटन ही कश्मीर की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। और यदि यह प्रभावित हुई तो समस्या भयावह होगी । उक्क्त घटना के बाद अपुष्ट सूचना के अनुसार लगभग नब्बे फ़ीसदी पर्यटकों ने अपने टिकट कैंसिल कराए। खैर वक्त के साथ इसमे सकारत्मक बदलाव आएगा ।
अगर व्यक्तिगत अनुभव की बात करूं तो मैं स्वयं परिवार के साथ 2007 में जम्मू -कश्मीर की यात्रा किया था । और लाल चौक के समीप जहांगीर चौक के पास रुका । उस समय सड़कों पर बहुत भीड़ नहीं होती और शाम होते ही बाजार बंद होने लगते । सुरक्षा बलों की चौकशी ऐसी जो मुझे पहली बार जीवन मे दिखी। मेरा होटल, सेक्रेट्रिएट के बगल में था जिसमे एक कश्मीरी आर्मी मैन जो गाड़ी में सहयात्री थे की सलाह पर लिया। हाई सिक्योरिटी ज़ोन था वह । वास्तव में उस समय कई ऐसे अवसर आये जिसमे सूनापन के कारण कभी -कभी डर लगने लगता। लेकिन घोड़े वाला मोहब्बत नामक ब्यक्ति हौशला देता । गाड़ी वाले चालक भी अच्छा सहयोग करते ।सभी अपने घर रुकने का ऑफर देते । यह सब अच्छा अनुभव रहा । विगत दिनों इसी वर्ष मेरी दुसरी कश्मीर यात्रा पहली यात्रा के से क़ई मायनों में अलग रही । पहले जहाँ सूनापन रहता वहां इस बार पर्यटकों की संख्या बहुत अधिक रही। होटल वाले ने बताया कि बहुत से लोग एक वर्ष में चार -चार बार आ रहें हैं । इस बार भी लोगों का व्यवहार लगभग अच्छा लगा। हाँ लोग धीरे-धीरे लोग अधिक प्रोफेशनल लगे। सुरक्षाबल भी मुस्तैद दिखाई दिया ।
प्रतिक्रिया के रूप में प्रधानमंत्री , रक्षा मंत्री , सीडीएस ,सुरक्षा सलाहकार आदि सम्बन्धित लोग राजनीतिक ,कूटनीतिक और सैनिक स्ट्राइक की योजनाओं में निरन्तर लगे नज़र आ रहे हैं जो स्वाभाविक भी है और आवश्यक भी । भारत को कूटनीतिक सफलताएं मिलती दिख रही हैं । पाकिस्तान में अज़ीब सी बौखलाहट है । वह अपनी सैन्य मोमेंट एलओसी पर बढ़ा रहा है वहीं एलओसी पर सीज़ फायर तोड़ एक और ग़लती कर रहा है । पाकिस्तान के जिम्मेदार नेता भी अपने बयानों की सीमा का अतिक्रमण कर रहें हैं। परमाणु बम की बंदर घुड़की तो उसके स्वभाव में है । वहां कौन क्या बोल देगा सुन कर अज़ीब लगता है । वहां के सेना प्रमुख सैयद असीम मुनीर से भी सेना में असंतोष है ऐसा सुनने को मिल रहा है। पाकिस्तान के अनुभवी नेता पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने अपने भाई प्रधानमंत्री शबाज़ शरीफ़ को संघर्ष टालने और कूटनीतिक हल निकालने की सलाह देते हुए, संघर्ष से बचने की नसीहत देते सुनाई दे रहे हैं। वास्तव में इस बात को पाकिस्तानी हुक्मरान जानते हैं भारत उनसे बहुत मजबूत है । लेकिन उनको भी अपनी छवि बचानी है इस लिए प्रतिक्रिया जारी है जो ऐसी स्थिति में स्वाभाविक भी है ।
जंग से पहले ही सैकड़ों पाकिस्तानी फौजियों का इस्तीफ़ा और सेनाप्रमुख सहित बड़े लोगों ने अपने परिवार को चाटर्ड प्लेन से विदेश शिफ्ट किया जाना। उनकी हताशा को दिखा रहा है। ऐसा समाचार सुर्खियों में है। यह भारतीय सैनिक स्ट्राइक के पूर्व की स्थिति है । अभी तो केवल राजनीतिक और कूटनीतिक स्ट्राइक चल रही है । लेकिन अब लगता है कि सैनिक स्ट्राइक की बारी है ।
भारतीय नौसेना ने अरब सागर में मोर्चा संभाल लिया है । थल सेना और एरफोर्स भी युद्धाभ्यास में व्यस्त है । सेना ने अपने युद्धभ्यास को ‘आक्रमण ‘ नाम दिया गया है । भारत के एक्शन से पाकिस्तानी सेना खौफ़जदा है ऐसी सूचनाएं भी समाचारों में है। पाकिस्तान सेना के लिए जारी एडवाइजरी भी काम नहीं कर रही है । जंग के लिए जज्बे और हौशले की आवश्यकता होती है जो वर्तमान में पाकिस्तानी सेना में नहीं दिख रहा है । और यदि भारत ने सीधे सैनिक स्ट्राइक की तो पाकिस्तान को बर्बाद होने से कोई नहीं बचा सकता। उसकी परमाणु बम की धमकी भी काम नहीं आने वाली । उसका सहयोगी चीन भी अमेरिका से ट्रेड वॉर में ब्यस्त होने के कारण भारत को नाराज़ नहीं करना चाहेगा । इस प्रकार पाकिस्तान को कोई बड़ी सहायता मिलती नहीं दिख रही है । आर्थिक रूप से वह पहले से पश्त हो चुका है । ऐसी स्थिति में उसके समक्ष चैनौतियों का पहाड़ है ।
पाकिस्तान का दूसरा पड़ोसी अफगानिस्तान भी इस समय भारत के सहयोग में दिख रहा है। उसके ख़ैबर पख्तूनवा , बलूचिस्तान , सिंध और पाक आधिकृत कश्मीर में पहले से असंतोष चरम पर है । जिससे उसका अस्तित्व ही संकट में नज़र आ रहा है। ऐसी स्थित मुझे लगता है कि पाकिस्तान की पूर्व में कभी नहीं रही। उसकी आतंकवाद रूपी भष्मासुर पोषक नीति ने आज उसको इस दयनीय स्थिति में ला खड़ा किया।
आज भारत के नागरिकों का चारो ओर से सरकार को कड़ी कार्यवाही की सलाह मिल रहीहै । प्रधानमंत्री के कड़े तेवरों को देखते हुए कुछ भी कहना जल्दबाज़ी होगी । सम्भव है कि पाकिस्तान को आर्थिक रूप से पंगु बनाने के बाद भारत 2016 और 2019 जैसी सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दे। बहुत सम्भव है कि भारतीय सेना अपने कोल्ड स्टार्ट डॉक्ट्रिन रणनीति का भी सहारा ले जिसमें तेज लेकिन सीमित क्षेत्र में हमले किये जाते हैं। खैर राजनीतिक और कूटनीतिक स्ट्राइक के बाद सैनिक स्ट्राइक का जो भी रूप हो, जल्द ही सामने आयेंगें । युद्ध के पूर्व में भविष्यवाणी तो करना जल्दबाज़ी होती है लेकिन यहां तो पाकिस्तान का हौशला पहले ही गिरा नज़र आ रहा है। हमें हमारी सेना पर गर्व है । हमारी सरकार और सेना पूरी जिम्मेदारी से ज़बाब दे रही है और देगी इसका पूर्ण विश्वास है।
मऊ ,उत्तरप्रदेश
9415367382
(यह लेखक के निज़ी विचार हैं )