रचनाकार

स्वतंत्रता दिवस विशेष: तिरंगा पूछ रहा हम सबसे, बस क्या यूं ही मुझे फहराओगे

@ राहुल राय, मऊ, यूपी…

तिरंगा पूछ रहा हम सबसे
बस क्या यूं ही मुझे फहराओगे
या जिस आदर्श से बना हूँ मैं
उसका पालन कर पाओगे?

मेरे दो रंगों को, धर्मों को दिया,
क्या ये सम्भव मेरे यारों है,
दुनिया मे तो बस सात रंग
धर्म, पंथ,वर्ण तो हजारों है।
हर धर्म को इक दे दो जो
इतने रंग कहाँ से लाओगे?
या यूं ही मुझे फहराओगे?

हिंदू ,मुस्लिम, सिख ,ईसाई
ये सब मेरी फिर बाहें है
ये सब अलग ही हो जाएं
कुछ दुष्टों की ये निगाहें हैं
कोई एक हाथ काट के तुम
मुझे कैसे बलवान बनाओगे?
या यूं ही मुझे फहराओगे?

भगवा है रंग बलिदानों का
हर त्यागी का अधिकार है ये
मौत भी गौरव भर देती,
शहीदों का त्योहार है ये।
जान नहीं देनी,तो मत दो
कुछ तो कर्तव्य निभाओगे?
या यूं ही मुझे फहराओगे?

सफेद रंग बस अमन का है,
कैसे चलना उस चलन का है,
हर द्वेष को जो जला डाले
मन में जलते उस हवन का है ,
युद्ध तो करो,पर अपनी नफरत से
क्या उसे हरा फिर पाओगे?
या यूं ही मुझे फहराओगे?

हरा रंग बस सिर्फ रंग नहीं,
रंग है ये उत्पादन का,
हर जीव का ये तो पेट भरे
रंग सृष्टि के पालन का,
फिर भी कोई अभागा छूट गया,
क्या उसकी भूख मिटाओगे?
या यूं ही मुझे फहराओगे

झंडे के बीच मैं चक्र है जो
वो चक्र है, कृष्ण सुदर्शन का
धरती से पाप मिटा डाला
नाश किया हर दुर्जन का,
झूठे का नाश करो न करो
सच्चे को कभी बचाओगे?
या यूं ही मुझे फहराओगे?

झंडे में जो भी डंडा है
उसका भी अपना फंडा है,
जब तक है समझो साथ मेरे
तब तक ही वो ठंडा है।
ये साथ कभी जो छूटेगा
देश अगर जो टूटेगा,
वक़्त का डंडा पड़ेगा इतना
फिर ज़ोर ज़ोर चिल्लाओगे।
बात सरल ,पर अभी समझ न पाओगे
क्या यूं ही मुझे फहराओगे।

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