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सूक्ष्मजीवों का कृषि में कतिपय अनुप्रयोग जो वर्तमान में टेक्नोलोजी का रूप ले चुका है का प्रसार आवश्यक है : डा. सक्सेना

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■ ग्रामीण कमजोर वर्गों के सशक्तिकरण हेतु माइक्रोबियल एग्रोवेस्ट बायोकनवर्जन तकनीक के प्रसार को बढ़ावा देने के लिए एनबीएआईएम के वैज्ञानिकों ने कृषि से जुड़ी गैर सरकारी संस्थाएं को प्रशिक्षित किया

मऊ। राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो में डी.एस.टी.-एस.सी.एस.पी परियोजना के अंतर्गत एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम वृहस्पतिवार को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा मऊ जनपद के कुशमौर स्थित ‘राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव ब्यूरो’, भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् को वित्तपोषित डी.एस.टी.-एस.सी.एस.पी परियोजना ‘स्केल-अप, फोर्टीफीकेशन एंड डिस्सेमीनेशन ऑफ़ माईक्रोबियल एग्रो-वेस्ट बायोकन्वर्शन टेक्नोलोजी फॉर एम्पावरिंग रूरल वीकर सेक्संस’ के अंतर्गत दिनांक १ जुलाई २०२१, दिन वृहस्पतिवार को 10.00 बजे ब्यूरो में एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. ब्यूरो के निदेशक डॉ अनिल कुमार सक्सेना ने बताया कि सूक्ष्मजीवों का कृषि में कतिपय अनुप्रयोग जो वर्तमान में टेक्नोलोजी का रूप ले चुके हैं, का प्रसार आवश्यक है. इन तकनीकियों में मुख्य रूप से सूक्ष्मजीवों के उपयोग के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों के खेतों-खलिहानों एवं घरों में पड़े कृषि अवशेषों को सूक्ष्मजीवों पर आधारित टेक्नोलोजी के माध्यम से उपयोगी कम्पोस्ट में परिवर्तित करके और फिर उसके संवर्धन के माध्यम से उसे उच्च गुणवत्ता वाले बायो-आर्गेनिक कम्पोस्ट में बदल कर उसे खेतों में पुनः उपयोग में लाया जा सकता है. ऐसी टेक्नोलोजी के द्वारा न केवल खेतों-खलिहानों में सड़ने-गलने वाले और फिर दुर्गंध पैदा करने वाले कृषि अवशेषों/अपशिष्टों से छुटकारा मिलेगा, ग्रामीण स्तर पर इस टेक्नोलोजी के व्यापक रूप से अपनाए जाने पर निम्न-आय के छोटे एवं सीमान्त किसान समूहों के रूप में ऐसे कम्पोस्ट का उत्पादन करके बाजार में अच्छा लाभ कमा सकते हैं।
ब्यूरो के प्रधान वैज्ञानिक एवं परियोजना प्रभारी डॉ. रेनू के अनुसार इस परियोजना के तहत डी.एस.टी.- एस.सी.एस.पी. का मुख्य उद्देश्य देश में समाज के निम्न आय वाले और सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों तक टेक्नोलोजी की पहुँच बनाकर उन्हें विकास की मुख्य धारा में लाना है. इस परियोजना की गतिविधियों में चयनित जनपदों जैसे मऊ, आजमगढ़, मिर्ज़ापुर और वाराणसी शामिल है. इस परियोजना के मूल उद्देश्य में सूक्ष्मजीवों पर आधारित इन्हीं तकनीकियों के प्रशिक्षण एवं प्रदर्शन के माध्यम से व्यापक प्रसार-प्रचार द्वारा किसानों में इसे अपनाने पर जोर दिए जाने हेतु कार्य किया जा रहा है. इस परियोजना के माध्यम से अब तक मुख्यतः अनुसूचित जाति के १३४८ किसानों को कम्पोस्टिंग तकनीक के बारे में प्रयोग एवं प्रदर्शन के माध्यम से अवगत कराया जा चुका है जिसमें ४३७ महिलायें हैं।
किसानों के साथ साथ ब्यूरो प्रसार वैज्ञानिकों को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है जिसमें अब तक उत्तर प्रदेश के ९ जिलों के कृषि विज्ञानं केंद्र के १४ वैज्ञानिक प्रशिक्षित किये जा चुके हैं. इसी कड़ी में गैर सरकारी संस्थाएं जो की कृषि तकनीकों के प्रसार में कार्यरत हैं उनको भी आज के कार्यक्रम माध्यम से प्रशिक्षित किया गया है जिससे वे भी सूक्ष्मजीवों द्वारा संचालित होने वाली पूरी कृषिगत प्रक्रिया से अवगत हो सकें और फिर अपनी जानकारी को किसानों को बाँट सकें.
डॉ रेनू एवं डॉ आदर्श कुमार, वैज्ञानिक ने सूक्ष्मजीवों की सहायता से कृषि अपशिष्टो की त्वरित कम्पोस्टिंग सूक्ष्मजीवों के बारे में जानकारी तथा मृदा उर्वरता बढ़ाने में लाभदायक सूक्ष्मजीवों का महत्व को प्रायोगिक प्रदर्शन सहित समझाया. ब्यूरो के प्रधान वैज्ञानिक डॉ पवन कुमार शर्मा ने प्रतिभागियों से बायोफो‍‌र्टीफाइड कम्पोस्ट एवं उपयोगिता एवं आत्मनिर्भरता एवं आजीविका सुरक्षा हेतु सूक्ष्मजीव आधारित कम्पोस्ट का निर्माण एवं बिक्री की बारीकियों के बारे में चर्चा की. प्रशिक्षण कार्यक्रम में मऊ, आजमगढ़ और गाज़ीपुर जिलों की गैर सरकारी संस्थाओं से ११, किसानी उत्पादक संगठन से २, कृषि विज्ञानं केंद्र मऊ से १ तथा स्वयं सेवी संस्थान से १ मिलाकर कुल १५ प्रतिभागियों ने भाग लिया।
कार्यक्रम समन्वयकों डॉ पवन कुमार शर्मा ,डॉ रेनू एवं डॉ आदर्श कुमार को ब्यूरो के अनुसंधान कर्ता आस्था तिवारी , आशीष, राजन, नागेश, अमित, रामअवध, रविंदर एवं हरिओम कार्यक्रम को आयोजित करने में सहयोग किया।

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