जरा याद करो कुर्बानी

तुम सोचते रहो ईमानदारी और बेईमानी तेरी ही कोख हो जाए

मेरी कलम से…
आनन्द कुमार

अरे सुनो,
कौन हो तुम,
क्या तुम पत्रकार हो,
किसी बड़े ब्रांड के,
बड़े वाले,
अखबार का नाम लेकर,
तन कर खड़े होने वाले,
पत्रकार हो तुम।
अच्छी बात है,
तुम्हें तुम्हारी,
बड़ी कम्पनी की,
पत्रकारिता मुबारक।

अरे हां सुनो,
जरा एक नजर,
वर्तमान में बलिया में,
पत्रकारिता के हाल पर भी,
देख लेना।
तुम्हारे ही बड़े वाले,
रसूख वाले,
शब्दों से “अमर” गाथा,
अखबार से “उजाला”,
लाने वाले अखबार को भी,
सोच लेना।

कहीं ऐसा ना हो,
जिनके लिए तुम,
जिस उद्देश्य के लिए,
काम कर रहे हो,
वे ही तुमसे मुंह मोड़ लें,
तेरी लेखनी और,
तेरी फोटोग्राफी,
सिर्फ एक ख्वाब बन कर,
तेरे खुद के घरौंदे में,
जमींदोज हो जाए।

तुम सोचते रहो ईमानदारी,
और बेईमानी तेरी ही कोख हो जाए,
अरे किस पत्रकारिता को ढूंढ रहे हो,
ये बड़े लोग हैं,
यह पत्रकारिता नहीं, व्यवसाय करते हैं,
यह जुल्म की खबरें औरों की छापते,
अपनों पर तो जुल्म का,
यह हर राज चलते हैं,
इन्हें शर्म कहां आती इस दुनिया में,
यह तो शुक्र है फक्र है,
पोर्टल और छोटे अखबारों का,
जो नंगें, पैसों के भूखें भीखमंगों का,
तार-तार हर राज करते हैं।

तेवर अखबार से नहीं, पत्रकार से होता है…

कुछ सुने हैं,
कि वे करवट बदल रहे हैं,
घिरी और गिरी छवि को,
वे समेट रहे हैं,
चलो अच्छा है,
जब जागो तभी सवेरा,
पत्रकारिता की इण्डस्ट्रीज,
कहे जाते हैं वे,
कुछ सोचे तो,
कुछ समझे तो,
नहीं जागते तो,
खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारते,
तेवर अखबार से नहीं,
पत्रकार से होता है,
और पत्रकार आज यहां है,
तो कल कहीं और होता है।

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