समतामूलक समाज बनाने के लिए आजीवन संघर्ष करते रहे जेपी
मनोज कुमार सिंह…
स्वाधीनता उपरांत शहीदों के सपनों के अनुरूप, समस्त प्रकार के भेदभावो से मुक्त, समस्त प्रकार की कुप्रथाओं, कुरीतियों, अंधविश्वासों, पांखडो एवं संकीर्णताओं से मुक्त और वैज्ञानिक, तार्किक दृष्टिकोण से लबालब लबरेज, समतामूलक, लोकतंत्रिक, धर्मनिरपेक्ष , समाजवादी और आधुनिक भारत बनाने के लिए जिन हृदयो में गहरी तडप, बेचैनी और छटपटाहट थी उनमें लोक नायक जय प्रकाश नारायण अग्रिम कतार में थे। इसलिए आचार्य नरेन्द्र देव, डॉ राम मनोहर लोहिया, अच्युत पटवर्द्धन और मीनू मसानी जैसे समाजवादी चिंतको, विचारकों और विद्वानों की परम्परा में जय प्रकाश नारायण का नाम आदर, सम्मान और स्वाभिमान के साथ लिया जाता हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि- भारत में अगर कोई समाजवाद को बेहतर तरीके से जानता, बूझता और समझता है तो वह व्यक्ति जय प्रकाश नारायण हैं। महात्मा गाँधी जय प्रकाश नारायण को समाजवाद का सबसे गहरा गम्भीर और प्रखर विद्वान मानते थे। महात्मा गांधी का अपार स्नेह जय प्रकाश नारायण पर था। महात्मा गांधी ने जयप्रकाश नारायण को समाजवाद का सबसे प्रखर विद्वान तो कहा ही था इसके साथ उन्होंने 1946 मे जय प्रकाश नारायण का नाम कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में प्रस्तावित किया था। परन्तु कांग्रेस कमेटी ने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया। इतिहास का हर ईमानदार विद्यार्थी जरूर यह कल्पना कर सकता हैं कि- शक्ति, सत्ता और प्रभाव की चकाचौंध से मीलों दूर कोई व्यक्ति अगर आजादी की लड़ाई की रहनुमाई करने वाले दल का अध्यक्ष बनाया जाता तो निश्चित रूप से आधुनिक भारत के निर्माण की दिशा, दशा और तस्वीर कुछ और होती।
समाजवाद निर्विवाद रूप से बुनियादी स्तर पर आर्थिक और सामाजिक पराधीनता को मुक्कम्ल खत्म कर देना चाहता है। समाजवाद के अनुसार आर्थिक आजादी के बिना नागरिक आजादी, सामाजिक आजादी, सांस्कृतिक , साहित्यिक , राजनीतिक आजादी और अन्य समस्त प्रकार की आजादियाॅ खोखली और बेमानी है । लोक नायक जय प्रकाश नारायण को समाजवाद के आर्थिक आधारों की गहरी समझ थी। स्वाधीनता संग्राम के दौरान जयप्रकाश नारायण समाजवाद का प्रखरता से प्रचार और प्रसार करते रहे। 1940 मे कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन में जय प्रकाश नारायण ने एक प्रस्ताव रखा जिसका आशय था कि- बृहत उत्पादन के संस्थानों पर सामूहिक स्वामित्व तथा नियंत्रण स्थापित किया जाए। उन्होंने आग्रह किया कि- भारी परिवहन, जहाजरानी, खनन तथा भारी उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया जाए। वे समाजवाद को आर्थिक और सामाजिक पुनर्निर्माण का एक सम्पूर्ण सिद्धांत मानते थे। समाजवाद व्यापक नियोजन का सिद्धांत और कार्यप्रणाली हैं। समाजवाद द्वारा संसाधनों का व्यापक नियोजन करते हुए समाज का समग्र और संतुलित विकास सुनिश्चित किया जा सकता है।
श्रीमदभगवद्गीता में गहरी आस्था रखने वाले वाले जयप्रकाश नारायण महात्मा गांधी द्वारा प्रवर्तित सत्य और अहिंसा पर सत्याग्रह के सिद्धांत से बहुत प्रभावित थे। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में एक सच्चे गांधीवादी सत्याग्रही के रूप में अपना राजनीतिक जीवन आरम्भ किया। अमेरिका में अध्ययन करते समय उनका सम्पर्क पूर्वी यूरोप के बुद्धिजीवियों से हुआ जिसके प्रभाव स्वरूप जयप्रकाश नारायण मार्क्सवाद के तरफ़ आकर्षित हुए। भारत के प्रख्यात साम्यवादी विचारक और कम्युनिस्ट इंटरनेशनल के सदस्य मानवेंद्र नाथ राय की तीक्ष्ण रचनाओं ने मार्क्सवाद के प्रति उनकी आस्था और गहन कर दी। मार्क्सवाद में आस्था रखते हुए भी जय प्रकाश नारायण ने सोवियत रूस में क्रांति के समय हूई हिंसात्मक घटनाओं की कटु आलोचना किया। इसलिए 1940 में साम्यवादियों के साथ संयुक्त मोर्चा बनाने की मुखालफत किया। साठ के दशक में चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जा किए जाने की घटना को बर्बरता और सिद्धांत विहिन साम्राज्यवादी निर्लज्ज महत्वाकांक्षा बताया।
जयप्रकाश नारायण साहस, वीरता और त्याग से परिपूर्ण व्यक्तित्व वाले उत्कट देशभक्त थे। 1942 में महात्मा गांधी द्वारा अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन का आह्वान किया गया तो उन्होंने उसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार से करिश्माई रूप फरार हो गए। फरार होकर जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन को अपने कुछ क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर साहसिक तरीके से संगठित और संचालित किया। बाद में वह गिरफ्तार कर लिए गए और 1946 में रिहा हुए। इस साहसिक घटना ने उनको स्वाधीनता आंदोलन के दौरान वीरोचित ख्याति प्रदान की । जयप्रकाश नारायण नारायण ने भारत के संवैधानिक और राजनीतिक समस्याओं को हल करने के लिए आए कैबिनेट मिशन योजना का मुखर होकर विरोध किया। कांग्रेस के समझौतावादी तौर तरीके से सत्ता हस्तांतरण के स्थान पर वह जनक्रांति द्वारा स्वाधीनता और स्वराज्य चाहते थे। उस समय कांग्रेस समाजवादी दल जनक्रांति पर विचार कर रहा था। जयप्रकाश नारायण ने भविष्यवाणी किया कि – ब्रिटिश साम्राज्य ने भारतीय संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान को स्वीकार नहीं किया तो भारत में एक जनक्रांति फूट पड़ेगी ।
लेखक-
लेखक/साहित्यकार/स्तम्भकार
बापू स्मारक इंटर काॅलेज दरगाह मऊ।