रचनाकार

श़ायरी में बज़्म-ए-अदब के द्वारा सराहनीय कार्य रहे है अरशद बदायूंनी

इंदौर। (जितेन्द्र शिवहरे) बज़्म-ए-अदब शायरी का एक ऐसा बेहतरीन मंच है जो 8 सालों से हिंदी और उर्दू अदब के लिए बड़ी शिद्दत से काम करता है। इस बज़्म से बहुत उम्दा शायर जुड़े हैं और न सिर्फ बड़े शायरों से सजी होती है बज़्म ए अदब की महफिलें बल्कि आने वाली नस्लों को भी मौक़ा दिया जाता है। बज़्म-ए-अदब के इस पौधे को बोया संस्था के संस्थापक बदायूँ के ही अरशद बदायूनी ने जो आज फलता फूलता वृक्ष नज़र आता है। पेश है बदायूनी से की गई विस्तार से बातचीत।

आप उर्दू अदब के लिए काम करते हैं और आपने बज़्म ए अदब नाम का मंच बनाया है ये कब शुरू किया और ये बनाने का ख्याल कैसे आया आपको

जी उर्दू हिंदी दोनों अदब के लिए काम करते है हम
12 अक्टूबर 2014 को बज़्मे अदब बदायूँ संस्था की बुनियाद रक्खी थी
मुझे ख्याल इस लिए आया के बदायूँ के बहुत से लोग गुज़रे है जो मंज़र आम पर नही आ सके।तो आगे ऐसे लोगों को स्टेज देना उनको हौसला देनाl

कितने लोग आपकी इस बज़्म से जुड़े हैं और साल में कितने मुशायरे होते हैं।

बज़्मे अदब बदायूँ की मैनेजमेंट टीम में तकरीबन बीस लोग जुड़े है
हम साल में दो बड़े मुशायरे कवि सम्मेलन करते है इसके अलावा तिमाही और मासिक महफिले करते है

बदायूँ शायरी के मामले में बहुत धनी है बहुत अच्छे शायर हुए हैं यहाँ।क्या इतिहास है बदायूँ की शायरी का और आपने वैसे सहेजा है इसको

जी आपने बिल्कुल सही कहा बदायूँ शयारी के एतबार से बहुत धनी है बदायूँ का इतिहास। शायरी के साथ सूफिज्म और म्यूजिक की दुनिया मे अंतरास्ट्रीय पहचान बदायूँ की है।
बज़्म की कोशिश रहती है अच्छे से अच्छे अदबी काम करके अपने वतन की विरासत को नई नस्ल तक ले कर जाये।

आपकी बज़्म का उद्देश्य क्या है क्या हिंदी और उर्दू अदब दोनों को साथ लेकर चलते हैं आप।

जी मेरी बज़्म का उद्देश्य सिर्फ सिर्फ मुहब्बत है मेरी बज़्म का टाइटिल शेर जिगर मुरादाबादी का है बैनर पर है हम हिंदी उर्दू अदब के साथ म्यूजिक को भी लेकर चलते है ।

उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें
मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुँचे

इस वक़्त बदायूँ में कौन कौन से वरिष्ठ शायर हैं जो आपकी बज़्म में भी शामिल होते हैं।

इस वक़्त बदायूँ के दो बहुत वरिष्ठ शायर है हसीब सोज़ , फ़हमी बदायूनी
दोनों ही बज़्म की महफ़िलो में शामिल रहते है

बज़्म के कार्यक्रम के लिए खर्च भी होता है उसका इंतज़ाम आप कैसे करते हैं।

जी किसी भी तरह का कोई भी कार्यक्रम जब होता है काफी ख़र्च होता है इसके लिए हम अपने निजी बजट से करते हैl

आगे आने वाले दिनों में बज़्म को कहाँ किन ऊंचाइयों तक ले के जाना चाहते हैं।
भविष्य में बज़्म को हम मुशायरे कवि समेलन के अलावा साहित्यिक सेमिनार और समाज सेवा के मैदान में लेकर जाएंगेl

एक शायरी के मंच का क्या उद्देश्य व सिद्धांत होना चाहिए।एक बज़्म कैसे ईमानदारी से चलाई जा सकती है जहां कोई दिखावा न हो और खालिस शायरी को प्रस्तुत किया जा सकेll

एक शायरी के मंच का उद्देश्य समाज को मुहब्बत का पैग़ाम दे कर नफ़रत को ख़त्म करने की कोशिश होना चाहिए ।
किसी भी शायरी की संस्था को चलाने के लिए टैलेंट को पूरी ईमानदारी से स्टेज देकर हौसला अफजाई करना चाहिएl

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Notice: ob_end_flush(): failed to send buffer of zlib output compression (1) in /home2/apnamaui/public_html/wp-includes/functions.php on line 5373

Notice: ob_end_flush(): failed to send buffer of zlib output compression (1) in /home2/apnamaui/public_html/wp-includes/functions.php on line 5373