जय-जय कल्पनाथ, अमर कल्पनाथ,
कर दो मेरे शहर का नाम कल्पनाथ!

मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
ना जाने क्यों धिक्कारती है,
मन बार-बार यह पुकारती है,
कहां हो गया मेरे शहर का मसीहा,
आवाज़ उसके ओर मेरी भागती है।
क्या-क्या उसने मुझे नहीं दिया,
शहर भी बदला, सूरत भी बदला,
मऊ का हर एक जरूरत भी बदला।
आज कहां हम खड़े हुए हैं,
जो नाम दिया वहीं बेनाम है,
विकास की इमारतें खड़ी करके,
देखो कहीं गुमनाम है।
हर एक ईंट पर जिसका नाम है,
आज वही कहीं खो गया है।
गुनहगार हम सभी हैं उस शिल्पी के,
जिसके विकास को भूल गये हैं।
अब भी वक्त है उठो जागो प्यारे,
अपने अस्तित्व को पहचानो प्यारे,
हर एक जनता का दायित्व है प्यारे,
आओ फर्ज निभा लो प्यारे,
ना रूपया, ना पैसा देना है,
कल्पनाथ के नाम का हुंकार लगा दो प्यारे।
करो गर्जना करो गर्जना, तेरी गूंज उठे तुम गरजो ना,
आनन्द की है बस यही पुकार,
स्मृति रच दो तुम बनके कल्पनाथ,
जय-जय कल्पनाथ, अमर कल्पनाथ,
कर दो मेरे शहर का नाम कल्पनाथ।।
मेरे जनपद का नाम बदल दो! एक मुहिम, एक प्रयास, आप भी दिजीए अपना यथासंभव साथ!
शहर के नाम के साथ शहर का इतिहास जुडा होता है आनंद जी, आप जनपद का नाम परिवर्तित करने की हुंकार भरें, सबका सहयोग मिलेगा।
जी जनपद का ही हुंकार है कविता में शहर लिखा है वही सेट हो रहा था, मतलब जिला ही है