कभी इस डाल कभी उस डाल फुदकते दारा, दर्द बहुत है पर कहें किससे!
@ आनन्द कुमार मऊ…
मऊ। उत्तर प्रदेश की सियासत में एक के बाद एक राजनैतिक भूचाल आता जा रहा है इधर 2022 का विधानसभा चुनाव सर पर है और पार्टी के बड़े नेता ही अपने-अपने दल में दगावाजी करते जा रहे हैं । कोई भाजपा छोड़ सपा में जा रहा है तो कोई सपा, कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम रहा है। ऐसे में राजनीति में नेताओं के गिरते स्तर पर ये नेता दलों से चाहे जैसी भी दिल्लगी कर लें लेकिन जनता अभी चुप है। कल तक भारतीय जनता जनता पार्टी के कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य का इस्तीफा देने की बात अभी चर्चा का विषय बनी ही हुई थी कि तब तक बुधवार को वन एवं पर्यावरण उद्यान मंत्री तथा मऊ जनपद के मधुबन विधानसभा के विधायक दारा सिंह चौहान ने भारतीय जनता पार्टी से अपना किनारा कर लिया।
उन्होंने अपना इस्तीफा उत्तर प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल को सौंपते हुए लिखा है कि “उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के मंत्री मंडल में वन पर्यावरण एवं जंतु उद्यान मंत्री के रूप में मैंने पूरे मनोयोग से अपने विभाग की बेहतरी के लिए कार्य किया, किंतु सरकार के पिछड़ों, वंचित, किसानों, दलितों और बेरोजगारों तथा नौजवानों के प्रति घोर उपेक्षात्मक रवैये के साथ-साथ पिछड़ों और दलितों के आरक्षण के साथ जो खिलवाड़ हो रहा है, उससे आहत होकर मैं उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल से इस्तीफा देता हूँ।” दारा के इस्तीफे के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाजपा के लिए एक नया संकट खड़ा हो गया है। वैसे तो चर्चा यह कल से ही थी कि दारा इस्तीफा दे सकते हैं लेकिन आज उन्होंने स्वयं राज्यपाल को पत्र लिखकर अपनी बातें सच कर दीं।
पूर्वांचल में चौहान मतों में अपनी पकड़ बनाते हुए वे धीरे-धीरे पूर्वांचल में चौहानों के नेता के रूप में आगे बढ़ते रहे, लेकिन वे भले ही दो बार राज्यसभा एक बार लोकसभा और वर्तमान में विधायक से मंत्री बनने में सफलता पा लिए, लेकिन वे मऊ आजमगढ़ से लेकर पूर्वांचल में पहले चौहान समाज के नेता के रूप में तीसरे नंबर पर थे, लेकिन वर्तमान में घोसी के विधायक फागू चौहान को भारतीय जनता पार्टी द्वारा बिहार का राज्यपाल बना देने के बाद तथा घोसी लोकसभा के पूर्व सांसद बालकृष्ण चौहान के बसपा ,सपा वाया कांग्रेस में राजनैतिक यात्रा के दौरान और उनका अपने समाज पर कम होते प्रभाव के चलते दारा अपने समाज के नंबर एक के नेता में शुमार तो हो गए हैं,
लेकिन सच्चाई यह भी है कि वर्तमान में चौहान मतों पर अपनी मजबूत पकड़ बनाने वाली क्षेत्रीय दल जनवादी पार्टी सोशलिस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ संजय सिंह चौहान पहले ही सपा के मुखिया अखिलेश यादव के प्रति अपनी आस्था व्यक्त कर यू पी में चौहान मतों के प्रति अपनी पकड़ और गुणा गणित समझा चुके हैं । ऐसे में अगर दारा समाजवादी का दामन थामते हैं तो उसमें उनका कद अपने समाज के प्रति किस स्थान पर होगा यह उन्हें खुद तय करना होगा । वैसे सपा मुखिया अखिलेश यादव ने ट्वीट कर यह जानकारी साझा कर दी है कि दारा सिंह चौहान इस्तीफा के बाद उनसे मिले और उनका सपा में स्वागत है।
अब तक का राजनीतिक सफर…
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद के गलवारा में 25 जुलाई 1963 को रामकिशुन चौहान के घर में जन्मे दारा सिंह चौहान हाईस्कूल परीक्षा पास करने के बाद आईटीआई किए हैं और उसके बाद से राजनीति की तरफ दिलचस्पी रखकर अपना कदम राजनीति में धीरे-धीरे आगे बढ़ाने लगे। दारा के पिछले इतिहास की बात करें तो दारा सिंह चौहान ने 1996 में बहुजन समाज पार्टी की मायावती से नज़दीकियां बढ़ाकर राज्यसभा सांसद बनने में सफलता हासिल किए और 2000 तक इस पद पर बने रहे। इसी बीच मऊ के लोक निर्माण डाक बंगले में उनका सिटी मजिस्ट्रेट से विवाद हो गया और उनके खिलाफ एफ़आईआर भी दर्ज कर दी गई। मायावती ने इस घटना के बाद उन्हें बसपा से निष्कासित कर दिया। जिसके बाद उन्होने सपा का दामन थाम लिया। अभी उनका कार्यकाल बचा ही था कि 1999 के लोकसभा चुनाव में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने उन्हें घोसी लोकसभा का प्रत्यासी बना दिया किन्तु वे चुनाव हार गए।
चुनाव हारने के बाद भी मुलायम सिंह यादव ने उन्हें 2000 में समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सांसद बनाया। 6 साल राज्यसभा में रहने के बाद वह पुनः उसी पद पर आसीन होना चाहते थे, लेकिन सपा से उनकी बात नहीं बनी। फिर दारा ने कांग्रेस का दामन थाम लिया लेकिन वहां बमुश्किल चार से पाँच महीने ही टिक सके। उसके बाद दारा ने समाजवादी पार्टी छोड़ 2009 में पुनः बसपा सुप्रीमो मायावती के प्रति अपनी आस्था व्यक्त कर बहुजन समाज पार्टी का दामन थामा और 2009 में मऊ जनपद के घोसी लोकसभा से बहुजन समाज पार्टी का उम्मीदवार बने और चुनाव जीत लोकसभा के सदन में पहुंचे। मायावती ने इन्हें नेता सदन बनाकर मुलायम सिंह यादव की बगल में बैठाकर मुलायम को तगड़ा झटका दिया ।
इस दौरान बसपा सरकार में उनकी खूब पूछ रही और वह मायावती के नजदीकी नेताओं में शामिल रहे। सूत्रों की माने तो 2014 में भाजपा ने उन्हें कमल के सिंबल से घोसी का प्रत्याशी बनाना चाहा, उन्हें आफर भी दिया लेकिन वे बसपा में ही हाथी की सवारी करते रहे। बसपा मुखिया मायावती द्वारा 2014 में उन्हें पुनः घोसी लोकसभा का प्रत्याशी बनाया, लेकिन मोदी लहर के चलते हुए भारतीय जनता पार्टी के हरिनारायन राजभर से भारी मतों के अंतर से हार गए। लेकिन 2009 के मुकाबले अपना वोट बढ़ाने में कामयाब रहे। बसपा का सूर्य अस्त होता देख उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव में ठीक पहले 2016 में अमित शाह से मिलकर अपने राजनीतिक महत्व को बताते हुए भारतीय जनता पार्टी का दामन थाम लिया और मऊ जिले के मधुबन विधानसभा से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर विधानसभा पहुंचने में कामयाब हो गए।
योगी सरकार के मंत्री बनते ही इन्हें पहली बार में ही वन एवं पर्यावरण विभाग का कैबिनेट मंत्री बनाकर इनका कद और पद दोनों ऊंचा कर दिया गया, फिर क्या था दारा को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने भाजपा पिछड़ा प्रकोष्ठ का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर उन्हें और महत्व दे डाला। मंत्री बनने के बाद क्षेत्र में गायब होने के दारा के चर्चे होते रहे। मऊ से भी उनका राजनीतिक रूप से बहुत कुछ रिश्ता नहीं रहा, सांसद व विधायक, मंत्री तो रहे लेकिन क्षेत्र में उतना समय नहीं दे सके। ऐसे में दारा बुधवार को भारतीय जनता पार्टी सरकार में मंत्रीपद से इस्तीफा देते हुए राजनीति की नई पारी खेलने की घोषणा कर दी है। भाजपा छोड़ अब किस नए दल को अपना नया साथी बनाते हैं, किसे अपना ठिकाना बनाते हैं, किस विधानसभा से जोर आजमाइश करते हैं, यह देखना होगा। वैसे तो अखिलेश ने ट्वीट कर अपना होने का संदेश दे ही दिया है।
दारा सिंह चौहान में एक खास बात है कि वे लोगों से बहुत ही सरलता से मिलते हैं। सादगी के कारण उनके अपनों की संख्या काफी है।
वैसे दारा सिंह चौहान के राजनैतिक यात्रा कभी इस डाल कभी उस डाल फुदकते बीती है, दारा सिंह चौहान को भाजपा के पांच साल की यात्रा में उन्हें सम्मान तो बहुत मिला लेकिन दर्द भी बेइंतहा होगा इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। भले ही वे इस्तीफा देने में जिन बिंदुओं को इंगित किए हैं वे तो उनकी राजनैतिक समस्या है लेकिन उससे हट कर अगर बात करें तो सरकार में कैबिनेट मंत्री होते हुए उनकी पीड़ा अपनों के अनदेखी की कम नहीं होगी। खैर अब तो सभी बातें आएगी सामने धीरे-धीरे।