कहीं यह बच्ची देश तो नहीं बदल रही है!
आनन्द कुमार…
तोतली ज़ुबान, पैरों में चप्पल नहीं, दो चोटी में यह नन्ही तूलिका हाथों में लाल व नीले रंग का कलम लेकर नोएडा में बोटिनकल गार्डेन मेट्रो के बाहर आपको उसी मूल्य पर बेच रही है जिस मूल्य पर दुकानदार बेचते हैं। एक दूसरे रूप में देखें तो इस बेटी का इस उम्र में यह कार्य अच्छा नहीं है! लेकिन अगर इसके दूसरे पहलू को सोचे तो इस बेटी के इस प्रयास का जितना तारीफ़ किया जाए कम है। क्योंकि यह भीख तो नहीं माँग रही। छोटे बच्चों से काम न कराया जाए और उनको पढ़ाया जाए, सरकार इस पर तो काफ़ी कार्य व प्रचार प्रसार करती है! लेकिन ऐसे बच्चों के भविष्य निर्माण के लिए मसौदे तैयार करने वाले अफ़सरों व मंचों पर जनता को ज्ञान देने वाले जनप्रतिनिधियों के घरों में ऐसे बच्चे आपको चाय-पानी परोसते या झाड़ूँ पोछा लगाते मिल जाएँगे!
ऐसे में भीख माँगने वाली प्रवृत्ति में कमी लाने के लिए यह नन्ही तूलिका जो कर रही है उसको बढ़ावा देने की जरुरत है! क्योंकि भीख माँगने वालों की संख्या तो हम कम नहीं कर पाएँ अलबत्ता वे गूगल-पे और पेटीएम ज़रूर लेकर चलने लगे हैं!
ऐसे में यह नन्ही सी जान, हर आने जाने वालों को रोक कर पेन ख़रीदने के लिए निवेदन करती है, बहुतेरे गुज़र जाते बहुतेरे ख़रीद लेते। बदलाव समाज में हो रहा है थोड़ा सा सिस्टम को भी अपने में बदलाव कर लेना चाहिए। ऐसे मासूम चेहरों पर शासन व प्रशासन की नज़र भी बार-बार पड़नी चाहिए! अगर यह बच्ची भीख न माँग कर कलम बेच कर कुछ रुपए इकट्ठा कर रही है तो, बामुश्किल उसके घर चार रोटी की जुगाड़ हो जाए लेकिन यह बच्ची दरअसल भारत का चेहरा बदल रही है। अपने माननीयों का नतमस्तक ऊँचा कर रही है, लो देखो हम भी बदलाव का दम रखते हैं। यह तो मात्र दो चोटी वाली एक बच्ची की हक़ीक़त है ऐसे हज़ारों बच्चे आपको मिल जाएँगे, भारत में परिवर्तन लाने की इस मुहिम में और आप जानते हो यह मुहिम किसी संसद या आला अफ़सर ने तैयार नहीं किया है यह किसी गरीब, अनपढ़, गँवार व अशिक्षित की पहल होगी जो देश बदल रही है।
अगर आपको यह बच्चे आपके ऐसे ज़रूरत के समान बेचते मिल जाएँ तो ज़रूर ख़रीदिएगा, क्योंकि वास्तव में यह बच्ची पेन दे नहीं रही देश का पेन कम कर रही।