चर्चा में

स्मृति विशेष: पूर्वांचल की माटी युगों-युगों तक याद करेगी राजकुमार राय को

(गुंजन राय )
अमिला/ मऊ। पूर्वांचल की माटी युगों युगों से ऐसे महान विभूतियों की जननी रही है जिन्होंने अपने विचार और कर्म की उभय उपस्थिति की अनिवार्यता ने सर्वजन की पीड़ा को दूर करने के लिये अपना पूरा जीवन सामाजिक,सांस्कृतिक एवं राजनैतिक आंदोलनों के माध्यम से समर्पित कर राजनीति की गंदी गलियों में भी शुद्ध राजनीति एवं आचरण की बात करते रहे।
एक जनवरी 1939 को अत्यंत ही गरीबी में सूरजपुर में जन्में राजकुमार राय की 8 वर्ष की अल्प आयु में ही माँ बाप का साया सर से उठ जाने के बावजूद भी शिक्षा एवं संस्कार को ही आधार बना निरन्तर अपनी पढ़ाई पूरी करने के उपरांत अपने पैरों पर खड़ा होने का दृढ़ संकल्प लिये तार्किक दृष्टिकोण एवं सर्व जन की पीड़ा को हृदय की गहराइयों से समझ वकालत में अपनी कला, कौशल एवं काबिलियत का लोहा मनवा एक ख्यातिलब्ध वकीलों में शुमार हो गए ।उन दिनों स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी एवं प्रख्यात राजनीतिक पंडित अलगू राय शास्त्री से प्रभावित होकर कांग्रेस के प्रति समर्पित हुये जिसका परिणाम 1980 के दशक में विधान सभा एवं 1984 में लोक सभा भेज जनता ने विश्वास जताया। राजनीतिक उतार चढ़ाव की सीढ़ियों को चढ़ते उतरते आप ने घोसी लोक सभा की जनता की अंतरात्मा की आवाज के सम्मान में कांग्रेस सरकार के खिलाफ संघर्ष करने का एलान कर दिया। 2 मई 1987 को गठित जन मोर्चा के टिकट पर 1989, 1999 चुनाव लड़ा किन्तु दिग्गज कांग्रेसी नेता स्व कल्पनाथ राय से मामूली वोटों से हार गए। बेबाक छवि एवं विद्रोही तेवर के चलते अधिक समय तक जनता दल में नहीं रह सके।
महान समाजवादी चिंतक डॉ लोहिया एवं जनेश्वर मिश्रा के विचारों से प्रभावित हो आपने समाजवादी पार्टी से जुड़ सड़क से लेकर संसद तक गरीबों, शोषितों ,पिछड़ों एवं मजलूमों की आवाज बुलंद करते रहे। दर्जनों शिक्षण संस्थाओं के संस्थापक, मौलिक एवं ठेठ देसी चिंतक एवं कुडहनिया वंश के लाल राजकुमार राय ने एक लंबी बीमारी के बाद 24 सितम्बर 2012 को अंतिम सांस ली ।

अल्लाम इकबाल का ये शेर ….
हजारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पर रोती है !
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा !!

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