मैं नाविक हूँ
( आशा साहनी )
मुझे गर्व है मै नाविक हूँ अपने भूजबल से लहराता हूँ,
हाथों में पतवार लिए मै अपनी नाव चलाता हूँ।
माना की मैं नहीं जानता दुनिया के व्यभिचारों को,
अपने भूजबल से मिलने वालों पूूर्ण अधिकारों को,
मुझे दिशा तो मिली मगर मैं सदा छला भी जाता हूँ,
अपने बांहों का भुजबल फिर भी मै बढ़ाता हूँ,
मुझे गर्व है, मैं नाविक हूँ अपने भूजबल से लहराता हूँ।
कहते हैं लोग हमें तुम पानी के ही कीड़ा हो,
और किसी भी कार्य हेतु तुम जैसे मानों पीड़ा हो,
मारो मछली जल में जाकर और कार्य के योग्य नहीं,
मैंने भी तो हंस कर कह दी, मैं तेरी तरह अयोग्य नहीं,
रोज कमाता रोज मै खाता बेसक नहीं बचाता हूँ,
रातों की स्वनिर्मित नींद की आगोश में सो जाता हूँ,
मुझे गर्व है मैं नाविक हूँ अपने भूजबल से लहराता हूँ।
कम नहीं हूँ किसी क्षेत्र में, थोड़ा भम्र तुम्हें हो जाता है,
मेरा भी इतिहास गवाह है, पत्थर भी पिघलता है,
बहुत हुआ है छलकपट, देख खोल इतिहासों को,
कभी नहीं कम देखोगे तुम, मेरे इन प्रयासों को,
जातिवाद को हथियार बना कर, लूट देखते आये हैं,
पर हम भी जिद्दी हैं थोड़ा, इतिहास बनाते आये है,
मुझे पता है मै पानी में भी राह बनाता हूँ,
मुझे गर्व है मै नाविक हूँ, अपने भूजबल से लहराता हूँ,
हाथों में पतवार लिए मैं, अपनी नाव चलाता हूंं,
दृढ़ देख संकल्प मेरा था, मन का भाव देख विकल था,
अदभुत रुप लिए प्रभु आये, मेरा भी संकल्प अटल था,
राम नाम की धुन सुनाई, राम सिया संग तट पर आये,
पहले मैं खुद को तारा, मेरे वंशज भी तर पाये,
अपने मन का भाव संभालें, सब संभव कर जाता हूँ,
मुझे गर्व है मैं नाविक हूँ, अपने भूजबल से लहराता हूँ,
हाथों में पतवार लिए मैं, अपनी नाव चलाता हूँ।
मुझे गर्व है मै नाविक हूँ अपने भूजबल से लहराता हूँ,
हाथों में पतवार लिए मै अपनी नाव चलाता हूँ।।
लेखिका आशा साहनी मऊ उत्तर प्रदेश की निवासी हैं।