मैं केवल और केवल प्रेम चाहती हूँ
( राज़ अग्रवाल कवि )
एक नारी की पुकार…..
क्या घूर रहे हो?
वक्ष मेरे??
लब मेरे
या कमर मेरी?
इन्हें देख
उत्तेजित हो रहे?
क्या मन कर रहा
मुझे दबोचने का?
नोचने-खखोरने का??
एक बात पूछती हूँ
सच-सच बताना
तुम्हारे घर में भी तो
खूबसूरत-सुडौल वक्षों की
कई जोड़ियाँ होंगी
क्या उन्हें भी
ऐसे ही
भूखे भेड़ियों की तरह
घूरा करते हो?
क्या उन्हें भी देख
अपनी लार टपकाते हो?
वासनाएँ चरम पर
पहुँचती हैं तुम्हारी??
आसानी से न
मिल पाने पर
हिंसक हो जाते हो???
क्या हुआ?
क्रोध आ गया?
खून खौल गया??
इज़्ज़त पर
आँच आ गई?
तुम्हारी आखों में
अपने लिए
प्रेम चाहती हूँ
सम्मान और
मर्यादा चाहती हूँ
वासना नहीं
कोई हिंसा नहीं
निश्छल, निस्वार्थ प्रेम
मैं केवल और केवल
प्रेम चाहती हूँ ।