खास-मेहमान

“बन जाऊं कलम का सिपाही”

मेरी कलम से…

अखिलानंद यादव

हे मां स्वर दे ..
भर दे.. तू स्याही…

मैं भटका हूं एक राही….!!

ना सोना चांदी कि इच्छा
बस दे दे स्याही की भिछा

इस दुनिया में तनहा हूं
मां बन जा मेरी हमराही….

मै भटका हूं एक राही………!!

नहीं चाहत हैं धनवान बनू
तेरी दृष्टि से इन्सान बनू

बस इतनी कृपा कर देना मां
बन जाऊ कलम का सिपाही…..

मैं भटका हूं एक राही ……! !

तेरे शब्द से मां सविता निकले
मेरे कलम से भी कविता निकले

मुझे तख्त की कोई तलब नहीं
मेरे पास हो तेरी परछाई……

मैं भटका हूं एक राही……!!

मैं अखिल गुणों से हिन हूं मां
बस “आनंद” का शौकीन हूं मां

तेरी कृपा हमेशा पास रहे
मेरे मन की दूर हो तन्हाई…..

मैं भटका हूं एक राही…….!!

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