पुलिस की लाठी व बूटों की शिकार, नवरात्र में देवी रूपी भूखी प्यासी इन बेटियों का दर्द कराहेगा तो पाप का भागीदार कौन होगा
(आनन्द कुमार)
बीएचयू लाइव। छात्रों का कोई आंदोलन नहीं यह आंदोलन था अपने रक्षा के लिए, अपनी अस्मिता के लिए, अपनी सुरक्षा के लिए, मालवीय जी के आंगन में पढ़ रही इन बेटियों ने जब एडमिशन कराया होगा तो उन्हें गर्व महसूस हुआ होगा कि वह देश ही नहीं बल्कि विश्व की प्रसिद्ध बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में शिक्षा ग्रहण कर रही हैं। अपनी कुछ जायज मांगों के लिए आंदोलनरत छात्राओं का असल में कोई छात्र राजनैतिक आंदोलन नहीं था। मेरे समझ से इसे आंदोलन का नाम देना मजाक होगा यह मात्र इंसाफ की मांग थी, अपने हक और हुकूक की मांग थी। लेकिन इन बेटियों पर लाठी चार्ज कर अपनी नाकामियां जिस प्रकार से विश्वविद्यालय व जिला प्रशासन ने छुपाई है वास्तव में क्षमा योग्य नहीं है और कुछ जरूरी मांगों को विश्वविद्यालय प्रशासन ने बेवजह आंदोलन का रूप दे दिया। बीएचयू के इतिहास में नवरात्र के पवित्र माह में दुर्गा रूपी देवियों पर लाठी चार्ज कराना काशी को कलंकित करना व मालवीय जी की सोच को आईना दिखाने के बराबर है। ऐसे में लाठी और पत्थर की शिकार ये बेटियां अपनी दर्द कह कर द्रवित तो हैं लेकिन उनके हौसले पस्त नहीं हैं। हां यह जरूर है कि जिस विषय को बीएचयू प्रशासन व वाराणसी का जिला प्रशासन मिल बैठ कर हल करा सकता था। उस विषय को हल न कराकर आधी रात को दुर्गा रूपी बेटियों पर लाठी चार्ज कराना, मामले को बीएचयू गेट से बाहर की तरफ रूख करा दिया। हो न हो यह थोड़ी सी चूक की वजह से कहीं अब यह आंदोलन अन्य जिलो की ओर रूख कर जाये तो इसका जिम्मेदार कौन होगा।
बीएचयू व जिला प्रशासन को मात्र एक ही विषय पर गंभीरता से सोच लेना चाहिए था कि आखिर ऐसी कौन सी विवशता थी कि एक बेटी ने अपनी मांग के लिए अपना सिर मुडवा ली।
इस मामले को हल्के में लेना उसके सिर मुडवाने के दर्द व बेचैनी को न समझना ही सबसे बड़ी भूल है।
कोई बेटी अगर सिर मुडाये तो यह मजाक नहीं है यह एक गंभीर विषय है। क्योंकि उसने इंसाफ के लिए अपने ऋंगार को छेड़ा है।
विश्वविद्यालय व जिला प्रशासन माने या न माने लेकिन यह सच है कि उनकी थोड़ी सी ना समझदारी व चूक की वजह से वाजिब समस्या का हल नहीं निकाला जा सका और बेटियों पर लाठी चार्ज कराकर उन्होनें काशी व बीएचयू को तो कलंकित किया ही किया है। नवरात्र में देवी रूपी भूखी प्यासी इन बेटियों का दर्द अगर कराहेगा तो पाप का भागीदार कौन बनेगा।
आधी रात को छात्राओं के ऊपर पुलिस के लाठी के बूते सत्य को जिस प्रकार से सड़कों पर दौड़ा-दौड़ाकर पीटा गया, उन्हें पुलिस के जवानों के बूटों से रौंदा गया। वह भी पुरूष पुलिस के जवानों द्वारा आखिर क्यों। हर मासूम से चेहरे का यह सवाल है कि आखिर मेरा कसूर क्या है। कानून के अपने हाथ हैं वह अपने लिए कानून का चाहे जिस रूप से इस्तेमाल कर ले बस इतना ही कहना चाहूंगा कि,
काशी भी है, गंगा भी है,
नवरात्र में देवी, नवरूपा भी है,
न्याय करना, नहीं तो आह लगेगी,
घायल बेटी, मां दुर्गा भी है।
इसकी जरूर जाँच होनी चाहिए
किसी के अस्मत से खिलवाड़
और पुलिस प्रसासन की ऐसी बर्बरता
छी
क़ानूनी कार्वाही से आप सच को दबा नहीं सकते है
इंसाफ़ जरूर मिलब चाहिए।