तुझे जाना बहुत दूर है….
हार कर तू हार को
क्यों अपनी हार मानता है।
बीच राह में क्यों ठिठक कर
लक्ष्यहीन हो तू खड़ा है।
लक्ष्य को आयाम दे
पंखों को उड़ान दे
तेरा लक्ष्य बहुत दूर
तुझे जाना बहुत दूर है।
उपवनों को देखकर
क्यों रुके तेरे क़दम
साथियों की महफ़िलों में
कहाँ खो गए पथिक तुम
हे ! पथिक चलो बढ़ो
लक्ष्य बहुत दूर है।
तेरा लक्ष्य बहुत दूर
तुझे जाना बहुत दूर है।
कंटकों का पथ है आगे
तम से ना डरो पथिक
तुम निरंतर बढ़ चलो
पर्वतों पर चढ़ चलो
तुम अजेय बनो पथिक
तुम बनो शूर
तेरा लक्ष्य बहुत दूर
तुझे जाना बहुत दूर है।
कल जो तुझमे लालसा थी
वह कहाँ गई पथिक
क्यों रुके तेरे क़दम
चल पड़ो तुम हे ! पथिक
कंटकों से, उपवनों से
पर्वतों से आगे
लक्ष्य बहुत दूर है।
तेरा लक्ष्य बहुत दूर
तुझे जाना बहुत दूर है।
सौजन्य से अबुज़ैद अंसारी
अबुज़ैद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया (नई दिल्ली) में जनसंचार मीडिया / पत्रकारिता के छात्र हैं। आप आप युवा कवि और ग़ज़लकार हैं साथ ही जीवनमैग डॉट कॉम नामक द्विभाषी पत्रिका के सह -संपादक होने के साथ-साथ भारतीय विज्ञान कांग्रेस (कोलकाता), और नेशनल एसोसिएशन फॉर मीडिया लिटरेसी एजुकेशन (न्यूयॉर्क) के सदस्य हैं। और नवाबों के शहर लखनऊ से ताल्लुक़ रखते हैं।