‘चाहती हूं पीस दूं….पुराना भारत’
चाहती हूँ पीस दूँ
सिल पर लोढ़े से
चटनी की तरह
पुराना भारत
इमाम दस्ते में कूट दूँ
नारा यह नया भारत
किसी अदरक की तरह !
ठेला लगा लूं मैं भी
किसी लौहपथगामिनी के सीने पर
गजगामिनी की तरह…..!
पक गये हैं कान न्यू न्यू सुनते सुनते
थक गये हैं हाथ
धर्म पताकाओं को सलाम करते करते !
उन्हें ना शर्म आती है ना दया
बेरोज़गार फिरते युवाओं पर !
उन्हे होती नहीं है कोफ़्त
अशिक्षित / कुरोषित भारत पर !
यहॉ टूटती हैं सॉस बिना ऑक्सीजन
महामारी में होते शिकार….
नन्हें नौनिहाल…!
बहनों का बेटियों का
होता बलात्कार..!
बोलो भारत माता की जै..!
वो क्या है
इंडिया नया है
बिना रोजगार बिना स्वास्थ्य …!
न्यू इंडिया इज़ शाइनिंग
शाइनिंग इज़ न्यू इंडिया….!
बोलो भारत माता की जै….!
बोलो भारत माता की जै….!
लेखिका- प्रतिमा राकेश का साहित्य के प्रति विशेष लगाव है और मऊ के पूर्व जिलाधिकारी राकेश कुमार की धर्म पत्नी हैं।